पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४०४

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महाभागा २६९५ महामाया महाभागा-संज्ञा स्त्री० [सं० } दाक्षायिणी का एक नाम । करम के फरम निदान के निदान हो।-सुलदी। वि.दे. महाभारत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक परम प्रसिद्ध प्राचीन ऐति "भृत"। हासिक महाकाव्य जिसमें कौरवों और पांडवों के युद्ध का महाभृङ्ग-संज्ञा पुं० [स0 ] नीले फूलवाला भगरा । वर्णन है । यह ग्रंथ आदि, सभा, बन, विराट् , उद्योग, महाभैरव-संज्ञा पुं० [सं० । शिव । भीम, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौतिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, महाभैरवी-संश। 10 | सं०] तांत्रिकों के अनुसार एक विद्या अश्वमेध, पाश्रमवासी, मौसल, महाप्रस्थान और स्वर्गा का नाम । रोहण इन अठारह पवों में विभक्त है। कुछ लोग हरिवंश महाभाग-संज्ञा पुं० [सं०] सौंप । पुराण को भी इसी के अंतर्गत और इसका अंतिम अंश महाभांगा-संशा स्त्री० [सं०] दुर्गा। मानते हैं। इस ग्रंथ में लगभग ८०-९० हजार श्लोक हैं। महाभांगी-संज्ञा पुं० [सं० महाभोगिन् । बड़े फनवाला साँप । ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से इस ग्रंथ का महामंत्री-संज्ञा पुं० [सं०] राजा का प्रधान या सबसे बड़ा मंत्री। महत्व बहुत अधिक है। यों तो महाभारत ग्रंथ कौरव-पांडव | महामति-वि० [सं० ] जो बहुत बड़ा बुद्धिमान हो। युद्ध का इतिहास ही है, पर इसमें वैदिक काल की यज्ञों संज्ञा पुं० (१) गणेश । (२) एक यक्ष का नाम । (३) एक में कही जानेवाली अनेक गाथाओं और आपयानों आदि के दाधिसस्त्र का नाम । संग्रह के अतिरिक्त धर्म, तत्वज्ञान, ग्यवहार, राजनीति महामद-संज्ञा पु० [सं० ] मस्त हाथी। आदि अनेक विषयों का भी बहुत अच्छा समावेश है। कहते महामयूरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] बोन्द्रों की एक देवी का नाम । हैं कि कौरव-पांडव युद्ध के उपरांत व्यासजी ने "जय" | महामह-संज्ञा पुं० [सं०] बहुत बड़ा उत्सव । महोत्पश्च । नामक ऐतिहासिक काय्य की रचना की थी। वैशंपायन ने महामहोपाध्याय-संजा पुं० [सं०] (1) गुरुओं का गुरू। बहुत उसे और बढ़ाकर उसका नाम "भारत" रवा । सब के बड़ा गुरु । (२) एक प्रकार की उपाधि जो आज कल भारत पीछे साति ने उसमें और भी बहुत सी कथाओं आदि में संस्कृत के विद्वानों को मिटिश सरकार की ओर से का समावेश करके उसे वर्तमान रूप देकर महाभारत बना मिलती है। दिया। महाभारत में जिन बातों का वर्णन है, उसके आधार | महाम.स-संधा पुं० [सं० ] (1) गोमांस । गौ का गोश्त । (२) पर एक ओर तो यह ग्रंथ वैदिक साहित्य तक जा पहुँचता मनुष्य का मांस । है; और दूसरी ओर जैनों तथा बौद्धों के आरंभिक काल के विशेष कुछ लोग मनुष्य, गौ, हाथी, घोडे, भैंस, सूभर, साहित्य से आ मिलता है। हिदू इये बहुत ही प्राणिक . ऊँट और सांप इन आठ जीवों के मांस को महामांग मानते धर्मथ मानते है। (२) कोई बहुत दया रथ। (२) है। महामांस खाना परम निषिद्ध, कहा गया है। कौरवों और पांडवों का प्रसिद्ध युद्ध जिसका वर्णन उक्त महामाई-संशा स्त्री० [सं० महा+हिं० माई (1) दुर्गा । (२) महाकाव्य में है। (४) कोई बड़ा युछ या लड़ाई-झगया। काली। जैसे---यूरोपीय महाभारत । | महामात्य-संज्ञा पुं० [सं० राजा का प्रधान या सबसे बड़ा महाभाष्य-संशा पुं० [सं०] पाणिनि के व्याकरण पर पतंजलि अमात्य । महामंत्री। का लिखा हुआ प्रसिद्ध भाष्य। महामात्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) महामास्य । (२) महावत । (३) महाभिक्षु-संज्ञा पुं० [सं०] भगवान् बुद्ध । हाथियों का निरीक्षक। महाभीत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) राजा शांतनु का एक नाम। वि० (1) प्रधान । कहा। (२) समृद्ध । संपन्न । (३) (२) शिष के मुंगी नामक द्वारपाल का एक नाम । धनवान् । अमीर । महाभीत-संज्ञा पुं० [सं०] लजाला। महामानसिका, महामानसी-संशा सी० [सं०] जैनियों की महाभीम-संज्ञा पुं० [सं०] (1) राजा शांतनु का एक नाम ।। एक देवी का नाम । (२) शिव के श्रृंगी नामक द्वारपाल का एक नाम। महामाया-संज्ञा स्त्री० [सं० ) (1) प्रकृति । (२) दुर्गा । (३) महाभीरु-संज्ञा पुं० [सं०] ग्वालिन नाम का बरसाती कीका । गंगा । (४) शुद्धोदन की पती और युद्ध की माता का नाम । महाभीष्म-संज्ञा पुं० [सं० } राजा शांतनु का एक नाम । (५) आर्या छंद का तेरहवा भेद जिसमें १५ गुरु और २७ महाभुज-संज्ञा पुं० सं०] वह जिसकी बाँहें बहुत लंबी हों।। लघु वर्ण होते हैं। आजानुबाहु। संज्ञा पुं० [सं०] (1) विष्णु । (२) शिव । (३) एक असुर महाभूत-संज्ञा पु० [सं०] पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का नाम । (४) एक विद्याधर का नाम । ये पंचतत्व । उ-काल के काल महाभूतान के महाभूत वि. मायावी।