पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४०५

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महामार्ग महायोनि महामारी-मंज्ञा स्त्री० [सं०] (1) वह संक्रामक और भीषण रोग महामोदकारी-संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण' जिसमें एक साथ ही बहुत से लोग परें । बा । मरी। में ६ यगण होते हैं। इसका दूसरा नाम क्रीडाचक भी है। जैम, हैजा, चंचक, प्लग इत्यादि । (२) महाकाली का ' महामाह-संज्ञा पुं॰ [सं०] गांसारिक सुग्वों के भोग की इच्छा एक नाम । जो अविद्या का रूपांतर मानी गई है। महामाल-सा पु० सं०] शिव । । महामाहा-संहा स्त्री० [सं० 1 दुर्गा। महामादिनी-सशा सा | सं० नाराच छंद का एक नाम । महाय-वि० [सं० मह। ] महान् । बहुत । अधिक । ज़्यादा । महामाप-मशः ५० स०] समाप । यड़ा उड़द।। उ०-(क) तीसर अपनी रू.५ रचि व्यंकट शैल धराय । महामापतेल-संशः १. [ सं वैधक में एक प्रकार का नेल जो को सफल शिष्यन करहु यामें प्रति महाय । -- रघुराज । याधारण तिर के नल में चने की दाल, दशमूल और यकरी: (ख) याके सनमुख हम दोऊ बैठी रूप बनाय । हम तमक का मांस आदि मिलाकर पकाने में बनता है। नकै नहीं अचरज लगत महाय । - रघुराज । महामुंड-सज्ञा पु० [सं०] बोल नामक गंध-द्रव्य । महायक्ष-सा पुं० [सं०] (१) यक्षों का राजा । (३) एक प्रकार महामुंडनिका-शा स्त्री ! मै० | गोरखमुंडी। के बौद्ध देवता। महामुरु-स। १० स०] (1) कुंभार नामक जल-जंतु । (२) महायज्ञ-सा पु० [सं० ] हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार नित्य किये नदी का मुहाना । वह स्थान नहीं नदी गिरती है। (३) जानेवाले कर्म । जो मुख्यतः पाँच है--(१) ब्रह्मयज्ञ महादेव। संध्योपासन, (२) देवयज्ञ-हवन, (३) पितृयज्ञ-तर्पण, महामुद्रा-सशास्त्री० [स: (१) योग के अनुसार एक प्रकार की मुद्रा (४) भूतयज्ञः बलि और (५) नयज्ञ-अतिथि-परकार । या गंगों की स्थिति । (२) एक बहुत बड़ी संख्या का नाम। विशेष—इन पाँचों कम्मों के नित्य करने का विधान है। कहने महानि-सश. १० [स. (1) मुनियों में श्रेष्ठ । बहुत बड़ा है कि मनुष्य निस्य जो आप करता है, उनका नाश इन मुनि । (२) काटा व्यक्ति । ठग । धोखेबाज । (व्यंग्य) (३) यज्ञों के अनुष्ठान से हो जाता है। अगस्त्य ऋपि । (४) बुद्ध। (५) कृपाचार्य । (६) काल । ' महायम-संक्षा पुं० [सं० ] यमराज । (७) व्यास । (८) एक जिन का नाम। (९) मुंबुरु का वृक्ष। महायात्रा-संक्षा स्त्री० [सं० ] मृत्यु । मौत। महामृत्ति-स. to [ सं विष्णु। महायान-संध्या पुं० [सं०] (1) एक विद्याधर का नाम । (२) महामूल-सभा पु० [सं० | प्याज । यौद्धों के तीन मुख्य संप्रदायों में गं एक संप्रदाय जो महामूल्य-मंशा ५० | H० } माणिक । महात्मा बुद्ध देव के परिनिर्वाण के थोड़े ही दिनों बाद उनक वि० (१) जिसका मूल्य बहुत अधिक हो । बहुमूल्य । शिष्यों और अनुयायियों में मतभेद होने के कारण चला (२) महगा। था। इसका प्रचार नेपाल, तिब्बत, चीन, जापान आदि महामृग-म-1 ५० स०] हाथी । उत्तरीय देशों में है जहाँ इसमें तंत्र भी बहुत कुछ मिला महामृत्युंजय-संश पु० । स. । (१) शिव । (२) शिवजी का हुआ है। जिस प्रकार शिव की शक्तियाँ है, उसी प्रकार बुद्ध एक मंन्न । कहते हैं कि हमके जप से अकाल मृत्यु टल की कई शक्तियाँ या देवियों हैं जिनकी उपासना की जाती है। जाती और आयु बढ़ती है। महायाम-संक्षा पु० [सं० Jएक प्रकार का साम । महामंघ-म.11. [ स०] शिव । महायाम्य-संशा पुं० [सं० ] विगु । महामंद-संपु. दे. "महामेदा" । महायुग-संा पुं० [सं०] सत्य, श्रेता, द्वापर और कलि इन चारों महामंदा-संश: h० [सं०] एक प्रकार का कंद जो मौरंग देश युगों का समूह जो देवताओं का एक युग माना जाता है। में पाया गता है। यह देखने में अदरक के समान होता महायत-संज्ञा पुं० [सं०] एक बड़ी संख्या जो मौ अयुत की है । इसकी सत्ता चलता है।वैद्यक में इसे शीतल, रुचिकर, होती है। कफ और शुक्र क; बढ़ानेवाली, दाह, कपिल, क्षय और महायुध-संशा पु० [सं०] शिव । बात को नाश करनेवाली माना है। महायोगेश्वर-संशा पुं० [सं०] पितामह, पुला त्य, वषिष्ठ, पुलह, विशेष—यह जद। आजकल नहीं मिलती। एसके स्थान पर अंगिरा, ऋतु और कश्यप जो बहुत बड़े ऋषि और योगी च्यवनप्राश आदि में नपरी ओषधि डालते हैं। माने जाते हैं। पर्या-देवमणि । वसुच्छिद्रा। देवेष्ट । सुरमेदा। दिव्या। महायोगेश्वरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा । (२) नागदमनी । त्रिदता । सोमा। महायोनि-संज्ञा स्त्री० [सं०] वैद्यक के अनुसार नियों का एक महामंत्र-स। पु० [सं० ) एक बुद्ध का नाम । प्रकार का रोग जिसमें उनकी योनि बहुत बढ़ जाती है।