पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महायौगिक २६९७ महागंग महायौगिक-संज्ञा पुं० [सं० } २९ मात्राओं के छंदों को संज्ञा । महाराणा-संज्ञा पुं० [सं० महा+दि. राणा ) मेवाड़, चित्तौर महाभ-वि० सं०] जिसका आरंभ करने में बहुत अधिक यक और उदयपुर के राजाओं की उपाधि । करना पड़े । बहुत बड़ा । उ०-पच है, छोटे जी के लोग महारात्रि-संशा स्त्री० [सं०] (1) महाप्रलयवाली रान, जबकि मोरे ही कामों में ऐसा घबरा जाते हैं मानो सारे संसार । बह्मा का लय हो जाता है और दसरा महाकल्प होता है। का बोम इन्हीं पर है। पर जो बड़े लोग हैं, उनके सब काम (२) तांत्रिकों के अनुसार ठीक आधी रात बीतने पर दो महारंभ होते हैं, तब भी उनके मुग्य पर कहीं मे व्याकुलता मुहतों का समय जो बहुत ही पवित्र समझा जाता है । नहीं झलकती।-हरिश्चंद्र । कहते हैं कि इस समय जो पुण्य-कृत्य किया जाता है, महारक्षा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] बौद्धों के अनुसार महाप्रतिसरा । उसका फल अक्षय होता है। (३) दुर्गा । महामयूरी, महासहस्रप्रमर्दिनी, महाशीतवती और महा- | महारावण-संज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार वह रावण जिसके मंत्रानुमारिणी ये पाँच देवियाँ। हज़ार मुख और दो हजार भुजाएँ थीं। अमृत रामायण महारक्त-संज्ञा पुं० [सं०] मूंगा। के अनुसार इसे जानकी जी ने मारा था। महारजत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) सोना । सुवर्ण । (२) धतूरा। महारावल-संज्ञा पुं० [सं० महा+हिं० रावल ] जैसलमेर, ईंगरपुर महाजन-संशा पुं० [सं०] (1) कुसुम का फूल । (२) सोना ।। आदि राज्यों के राजाओं की उपाधि । महारत-संज्ञा की० [फा० ] अभ्यास । मश्क । महाराष्ट्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध महारत्न-संशा पुं० [सं०] मोती, हीरा, वैदूर्य, पराग, गोमेद, प्रदेश जो अरब सागर के तट पर, गुजरात के दक्षिण, पुष्पराग (पुग्धराज), पना, मूंगा और नीलम इन नौ रत्नों कर्णाट के उत्तर और तैलंग प्रदेश के पश्चिम में है। कोंकण में से कोई रन। प्रदेश इसी का दक्षिणी भाग है। बहुत प्राचीन काल में हप महारत्नवर्षा-संज्ञा स्त्री० [सं०] तांत्रिकों की एक देवी का नाम । प्रदेश का उत्तरी भाग दण्डक वन कहलाना था। ग्रहों महारथ-संशा धुं० [सं० ] बहुत भारी पोहा जो अकेला दस सातवाहन, चालुक्य, कलधुरी और यादव आदि वंशों का हज़ार योद्वाओं मे ला सके। उ.-.-पूरण प्रकृति सात राज्य बहुत दिनों तक या । मुसलमानों के राजस्व काल में धीर बीर है विण्यात रथी महारथी अतिरथी रण साज यहाँ बहमनी, निजामशाही और कुतुबशाही आदि वंशों कै।-रखुराज । का राज्य था। पीछे सुप्रसिद्ध वीर महाराज शिवाजी ने महारथी-संज्ञा पुं० दे० "महारथ" । इस देश में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। यह प्रदेश महारध्या-संज्ञा स्त्री० [सं० ] चौड़ा रास्ता । सड़क । आधुनिक बंबई प्रांत के लगभग है और यहाँ के निवासी महारस-संज्ञा पुं० [सं०] (1) काँजी । (२) स्खजूर । (३) भी महाराष्ट्र कहलाते हैं। (२) इस देश के निवापी, कसेरू। (४) ऊख । (५) पारा । (६) कांतीसार लोहा। विशेषतः ब्राह्मण निवासी। (३) बहुत बड़ा राष्ट्र । जैसे, (७) ईगुर । (८) सोनामक्षी । (५) रूपामक्खी । (10) अमेरिकन महाराष्ट्र। अभ्रक । (11) जामुन का वृक्ष । महाराष्ट्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) एक प्रकार की प्राकृत भाषा महाराज-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० महाराना ] (1) राजाओं में जो प्राचीन काल में महाराष्ट्र देश में बोली जाती थी (२) श्रेष्ठ । बहुत बड़ा राजा। (२) ब्राह्मण, गुरु, धर्मामार्य या महाराष्ट्र की आधुनिक देशभाषा । (३) जल-पीपल । और किसी पूज्य के लिए एक संबोधन। (३) एक उपाधि महारुद्र-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । जो आधुनिक भारत में ब्रिटिश सरकार की ओर से बड़े बड़े महारूप-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । राजाओं को दी जाती है। महारूपक-संश पुं० [सं०] नाटक । महाराजाधिराज-संशा पुं० [सं०] (1) बहुत बड़ा राजा। महारुरु-संज्ञा पुं० [सं०] मृगों की एक जाति । अनेक राजाओं में श्रेष्ठ । (२) एक प्रकार की पदवी जो महारूख-संज्ञा पुं० [सं० महावृक्ष ] (1) थूहर । सहुए। स्नुही। ब्रिटिश भारत में सरकार की ओर से बड़े राजाओं को (२) एक जंगली वृक्ष जो बहुत सुंदर होता है। इसकी मिलती है। लकड़ी से आरायशी सामान बनता है। इसकी छाल में महारासिक-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार के देवता जिनकी सुगंधि होती है। मदरास और मध्य प्रदेश में यह अधिकता संख्या कुछ लोगों के मत से २२६ और कुछ लोगों के मत से पाया जाता है। महारोग-संशा पुं० [सं०] बहुत बड़ा रोग। जैसे, पागलपन, महाराशी-संशा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा । (२) महारानी। कोद, तपेदिक, क्षमा, भगंदर आदि। कहते हैं कि इस महाराज्य-संज्ञा पुं० सं०] बहुत बड़ा राज्य । साम्राज्य । प्रकार के रोग पूर्व जन्म के पापों के परिणाम स्वरूप होते