पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४११

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महिषी २७०२ महीना - थी और इसे दुर्गा जी ने मारा था। मार्कंडेय पुराण में । क्रम से लघु और गुरु आते हैं। उ.-सदा सुसंग धारिये इसकी सविस्तर कथा लिखी है। नहीं कुसंग मारिये लगाय चित्त सीस्व मानिये स्वरी। महिपी-संमा स्त्री० [सं०] (1) भैग । (२) रानी, विशेषतः पट ! महीध-संज्ञा पुं० [सं०] महीधर । रानी । (३) सरिध्री। (७) एक ओषधि का नाम । महीध्रक-संश्वा पुं० [सं०1 (1) महीध्र। (२) एक राजा का महिषीकंद-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कंद जिसे भैंसा । नाम। कंद भी कहते हैं। शुभालु। महीन-वि० [सं० महा+झीन (सं० क्षीण) 118) जिसकी मोटाई महिपीप्रिया-संज्ञा पु० [सं०] शूली नामक घास । या घेरा बहुत ही कम हो। "मोटा" का उल्टा । पतला। महिपश-संशा पुं० [सं०] (१) महिषासुर । उ.-महामोह : सूक्ष्म । जैसे, महीन तागा, महीन तार,म्हीन सुई आदि। महिपेश विशाला । राम कथा कालिका कराला ।-तुलसी। (२) जिसके दोनों ओर के तलों के बीच बहुत कम अंतर (२) यमराज । उ.---कह महिपेश वहाँ ले जाओ। चित्र- ! हो । जो बहुत कम मोटा हो। वारीक । मीना । पतला। गुपित्र वाहि देखाओ।-विश्राम । जैसे, महीन कपड़ा, महीन कागज़, महीन छाल । उ०- महियोत्सर्ग-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का यज्ञ । दास मनोहर आनन बाल को दीपित जाकी दि सब दी। महिष्ट-वि० [सं०] बहुत बड़ा । श्रीन सुहाये बिराजि रहे मुकुताहल संयुत ताहि समी। महिसुर-संज्ञा पुं० दे० “महीसुर"। सारी महीन सी लीन विलोकि विचारत है कवि के अवनी । मही-संशावा. [सं० ] (1) पृथ्वी । (२) मिष्टी। (३) अवकाश ।। सोदर जानि ससीही मिली सुत संग लिए मनों सिंधु की देश । स्थान । (४) नदी । (५) क्षेत्र का आधार । (६) सी।-मनोहरदास। सेना। (७) झुंड। समूह । (6) एक की संख्या । (९) मुहा०महीन काम-वह काम जिसके करने में बहुत सावधानी गाय । (१०) हुरहुर । हुल हुल । (११) एक छंद का नाम और आँख गड़ाने की आवश्यकता पड़ती हो । जैसे, सोना, जिसमें एक लघु और एक गुरु मात्रा होती है। जैसे, चित्रकारी, सूची कर्म आदि । मही, लगा, नदी इत्यादि। (३) जो बहुत कम ऊँचा या तेज हो। कोमल । धीमा। सशा पु० [हिं० महना ] मट्ठा । छाछ । उ०—(क) तुलसी मंद (इस अर्थ में यह शब्द प्रायः शश्न वा स्वर के लिए ही मुदित दूत भयो मानहुँ अमिय लाहु माँगत मही---तुलसी। आता है)। (ब) छाँदि कनक मणि रत्न अमोलक काँच की किरच गही। संज्ञा पुं॰ [सं०] राजा। ऐसतू चतुर विवकी पय तजि पियत मही। -सूर। महीना-संज्ञा पुं० [सं० मास वा माः मि. फा० मा ] (1) काल (ग) दूध दही माखन मही बच्चे नहीं ब्रज माँझ । ऐसी का एक परिमाण जो वर्ष के बारहवें अंश के यार होता है। चोरी करतु है फिरतु भोर अरु साँझ-लल्लू। . यह साधारणतया तीस दिन का होता है; पर कोई कोई महीक्षित्-संशा पु० [सं० ] राजा। महीने इससे अधिक और न्यून भी होते हैं। आजकल भारत- महीखड़ो-सशा मा० [२०] सिकलीगरों का एक औज़ार वर्ष में कई प्रकार के महीने प्रचलित है--देशी, अर्थी और जिसकी धार कुंद होती है और जिसमें लकड़ी का दस्ता अंगरेज़ी। देशी वा हिंदी महीने चार प्रकार के होते हैं, सौर लगा रहता है। इसमें यर्सन आदि खुरचकर साफ किए मास, चंद्र मास, नक्षत्र मास और सावन मासा (विवरण के जाते है और उन पर जिला की जाती है। लिये देखो "मास") अरबी महीना एक प्रकार का चान्द्रमास महीज-संक्षा पु० [सं०] (१) अदरक । आदी । (२) मंगल है जो शुक्ल द्वितीया से प्रारंभ होता है । अँगरेज़ी महीना ग्रह। सौर मास का एक भेद है जिसमें संक्रांति मे महीना नहीं महीतल-संशा पुं० [सं०] पृथ्वी । संसार । बदलता, किंतु प्रत्येक महीने के दिन नियत होते हैं। जो महोदास-संशा पु० [सं० ] ऐतरये ब्राह्मण के रचयिता एक ऋषि काल प्रचलिस घा चांद्र वर्ष में, उसे सौर वर्ष के बराबर का नाम । यह इतरा नामक दामी के पुत्र थे। करने के लिए जोड़ा जाता है, उसे लौंद कहते हैं और महीदव-संज्ञा पुं॰ [सं० याह्मण । यदि यह काल एक महीने का होता है, तो उसे; लौंद का महीधर-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) पर्वत । (२) बौद्धों के अनुसार। महीना वा मल मास कहते हैं (देखो "मल मास" )। एक देवपुत्र का नाम (३) शेषनाग । उ०-धर्म करप्त अप्ति देशी वर्षों में प्रति तीसरे वर्ष मल मास होता है और उस अर्थ बदायत । संतति हित रति कोविद गावत । संतति । समय वर्ष में बारह महीने न होकर तेरह महीने होते हैं। उपजत ही निशि वासरा साधत तन मन मुक्ति महीधर। अँगरेज़ी वर्षों में प्रति चौथे वर्ष लौंद का एक दिन अधिक केशव । (४) एक वर्णिक वृत्त का नाम जिसमें चौदह बार बढ़ाया जाता है; पर अर्बी महीनों के वर्षों में सौर वर्ष से