पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४१२

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महीप २७०३ बैसाख मेल मिलाने के लिए लौंद का काल नहीं जोड़ा जाता; इस महीर-संज्ञा स्त्री० [हिं० मही ] वह तलछट जो मक्खन तपाने में लिए प्रति तीसरे वर्ष सौर वर्ष से लगभग एक महीने नीचे बैठ जाती है। (२) मह में पकाया हुआ चावल । का अंतर पड़ जाता है। देशी महीनों के नाम इस | 8 की खीर । प्रकार हैं- महीरण-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पुराणानुसार धर्म के एक पुत्र का संस्कृत हिंदी नाम । यह विश्वेदेवा के अंतर्भूत है। महीराघण-संज्ञा पुं॰ [सं० ] अद्भुत रामायण के अनुसार रावण वैशाख के एक पुत्र का नाम । वि० दे० "महिरावण"। ज्येष्ठ महीरुह-संज्ञा पुं० [सं०] वृक्ष । पेर। आषान असाड़ महीलता-संज्ञा स्त्री० [सं०] केंचुआ। श्रावण सावन महीश-संज्ञा पुं० [सं०] राजा। भाद्वा भाद्रपद भादों महीसुत-संज्ञा पुं० [सं०] मंगल ग्रह । आश्विन कुआर, आसोज वा आपों | महीसुर-संज्ञा पुं० [सं०] बाह्मण । कार्तिक कातिक । महीसनु-संज्ञा पुं० [सं०] मंगलाह । मार्गशीर्ष अगहन वा मैंगसर । म*-अव्य. दे. "मह"। महुअर-संज्ञा स्त्री० [हिं० महुआ ] (1) वह भेग जिसका ऊन माघ माघ वा माह कालापन लिये लाल रंग का होता है । (२) वह रोटी जो फाल्गुन फागुन महुआ मिलाकर पकाई गई हो। अरबी महीनों के नाम इस प्रकार है---मुहर्रम, सकर, संज्ञा पुं० [सं० मधुकर, प्रा. महुअर ] (1) एक प्रकार का रबी-उल-अन्वल, रबी-उस-सानी, जमदिउल अम्बल, जमा बाजा जिसे तुमड़ी वा तूंबी भी कहते हैं। यह करवी दिउम्पानी, रजब, शाबान, रमजान, शौवाल, जीफ़ाद, ! पतली बी का होता है जिसमें दोनों ओर दो नालियां लगी जिलहिज्ज । अंगरेजी महीनों के नाम इस प्रकार है- होती है। एक ओर की नली को मुँह में लगाकर और जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, जून, जूलाई, अगस्त, ! दूसरी ओर की नली के छेद पर उँगलियाँ रम्बकर इये सितंबर, अक्तवर, नवंबर, दिसंबर । (२) वह वेतन जो बजाते हैं। प्राय: मदारी लोग साँपों को मस्त करने के महीना भर काम करने के बदले में काम करनेवाले को। लिये इस बजाते हैं। (२) एक प्रकार का इंद्रजाल का खेल मिले। मासिक वेतन । दरमाहा । (३) स्त्रियों का रजोधर्म । जो महुअर बजाकर किया जाता है। इसमें दो प्रतिद्वंदी वा मासिक धर्म । खेलावी होते हैं जिनमें से प्रत्येक महुअर बजाकर दूसरे को मुहा०-महीने से होना-सियों का रजस्वला होना। रजोधर्म मूर्छित अथवा चलने-फिरने में असमर्थ करने का प्रयत्न से होना। करता है। महीप-संज्ञा पुं० [सं०] राजा । महुअरी-संज्ञा स्त्री० दे० "महुअर" । महीपति-संशा पुं० [सं०] राजा । महुअरी -संज्ञा स्त्री० [हिं० महुआ ] वह रोटी जो आटे में महुआ महीपाल-संज्ञा पुं० [सं०] राजा। मिलाकर बनाई जाती है। महीपुत्र-संज्ञा पुं० [सं० ] मंगल ग्रह । महश्रा-संज्ञा पुं० [सं० मधूक प्रा० महुअ । एक प्रकार का वृक्ष महीप्राचीर-संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र । जो भारतवर्ष के सभी भागों में होता है और पहाड़ों पर महीप्राधर-संज्ञा पुं० [सं०] समुद्र । तीन हजार फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। महीमा-संशा पुं० [सं० महाभर्तृ ] [ स्त्री० महीभत्री ] राजा। विशेष—इसकी पत्तियाँ पाँच-सात अंगुल चौड़ी, दस बारह महीभुक, महीभुज-संज्ञा पुं० [सं०] राजा । अंगुल लंबी और दोनों ओर नुकीली होती है। पत्तियों महीभृत्-संज्ञा पुं० [सं०] (१) राजा । (२) पर्वत । का ऊपरी भाग हलके हरे रंग का और पीठ भूरे रंग की महीमंडल-संज्ञा पुं० [सं०] पृथ्वी । भूमंडल। होती है। हिमालय की तराई तथा पंजाब के अतिरिक्त महीम-संज्ञा पुं० [देश॰] एक प्रकार का गमा जो पीलापन लिए। सारे उत्तरीय भारत तथा दक्षिण में इसके जंगल पाए जाते हरे रंग का होता है इसे पूने का पौंदा भी कहते है। हैं जिनमें यह स्वच्छंद रूप से उगता है। पर पंजाब में महीमृग-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का जैतु। यह सिवाय बागों के, जहाँ लोग इसे लगाते हैं और कहीं महीयस-वि० [सं०] बहुत बड़ा। नहीं पाया जाता । इसका पेड़ ऊँचा और उसनार होता है