पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महोना २७०६ महाना-संज्ञा पुं० [हिं० मुंह ] पशुओं के एक रोग का नाम जिसमें जननी । उ.-दोउ भया जैवत माँ आगे। पुनि लै दधि उनके मुँह और पैर पक जाते हैं। खात कन्हाई और जननि पै मोगे।-सूर । महाषा-संज्ञा पुं० [देश. ] बुंदेलखंड का एक प्राचीन नगर । पह यौ०-माँ-जापा-सगा भाई । महोदर । हमीरपुर जिले में है और इस नाम की तहसील और परगने * अव्य • [सं० मध्य ] में । उ०—(क) इन युग माँ को का प्रधान नगर है। यहाँ बहुत काल तक चंदेल राजाओं थर सुखरासी । बोले तब रघुनाथ उपासी।-रघुनाथ । की प्रधान राजधानी थी और इस वंश के मूल पुरुष । (स्व) कहु गुरु द्रोह केर फल का है। सेरी गति सत्र शासन चंद्र वर्मा की छतरी का घिर अय तक रामकुंड के किनारे माँ है। रघुराज । (ग) लख चौरासी धार गौतहाँ दीन मिलता है। यहाँ प्राचीन दुर्ग अब तक वर्तमान है। जिउ यास । चौदह जम रखवारिया धारि वेद विश्वास।-- पृथ्वीराज के समय में यहाँ परमाल नामक चंदेल राजा था कबीर। जिसके यहाँ आल्हा और उदयन वा ऊदल नामक दो प्रसिद्ध | माँकड़ी-संगा स्त्री० [हिं० मक। ] (1) दे. "मकड़ी"। (२) वीर योद्धा थे। यहाँ का पान बहुत अच्छा होता है। कमखाय खुननेवालों का एक औजार जिसमें वेद डेढ़ महोबी-वि० [हिं० महोवा+ई (प्रत्य॰)] महोबे का । थालिस की पांच तीलियाँ होती है और नीचे तिरछे महदिया-वि० दे० "महोबी"। पल में इतनी ही बड़ी एक और तीली होती है। यह महोबिहा-वि० दे० "महोयी"। ठाठ सवा गज़ लंबी एक लकड़ी पर चढ़ा हुआ होता महारग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बड़ा साँप । (२) तगर का पेत्र ।। है जो करघे के लग्धे पर रखी जाती है। (३) पतवार के (३) जैनियों के एक प्रकार के देवताओं का नाम । यह अपरी सिरे पर लगी हुई और दोनों ओर निकली हुई यंतर नामक देवगण के अंतर्गत है। यह लकड़ी जिसके दोनों सिरों पर वे रपियाँ बँधी महारस्क-वि० [सं०] जिसका वक्षःस्थल विशाल हो। होती है, जिनकी सहायता से पतवार घुमाते हैं। (ल.श०) महाला--संज्ञा पुं० [अ० मुहल ] (1) होला । बहाना । उ. (४) जहान में रस्मे बाँधने के खूटे आदि का वह बाहर क्या देखराये अंतर जपिये राम । कहा महोला खलक ! धनाया हुआ उपरी भाग जिसमें र.कड़ी या लोहा दोनों सों परेउ धनी मे काम । -कबीर । (२) धोखा | चकमा । या चारों ओर इस अभिप्राय से निकाला हुआ रहता है, उ.--सती शूर तन ताइया तन मन कीया धान । दिया जिसमें उस खूटे में बाँधा हुआ रस्सा ऊपर न निकल महोला पीव को तब मरहट फरै बखान । —कबीर । आवे । (ल.) महोविशीय-संशा पु० [सं०] एक प्रकार का साम । माँखण-संज्ञा पुं० [हिं०] मक्खन । नवनीत । महौघ-मक्षा पुं० [सं०] समुद्र की बाद । तूफान । मांखना-कि० अ० [सं० मक्ष ] कुछ होना । क्रोध करना । महौज-वि० [सं० महीजम् ] अनि तेजस्वी । गुस्सा करना । वि०-३० "माखना"। संज्ञा पुं० काल के पुत्र एक असुर का नाम । मांखी*-संज्ञा स्त्री० दे० "मखी"। महौजस्क-वि० [सं०] अति तेजस्वी । बहुत तेजवान् । माँग-संज्ञा स्त्री० [हिं० मांगना ] (१) माँगने की क्रिया या भाव । महोदवाहि-संज्ञा पुं० [सं० } आपलायन गृह्यसूत्र के अनुसार (२) विक्री या खपत आदि के कारण किसी पदार्थ के लिए एक आचार्य का नाम । होनेवाली आवश्यकता या चाह । जैसे,—आजकल बाजार महौषध-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भूम्याहुल्य । भुजित खर । (२) में देशी कपड़ों की मांग बढ़ रही है। सोंठ। (३) लहसुन । (४) बाराहीकंद गेठी। (५) वत्स संज्ञा स्त्री० [सं० मार्ग ? ] (1) सिर के बालों के बीच की नाम । बछनाग । (६) पीपल । (७) अतीस । यह रेखा जो बालों को दो ओर विभक करके बनाई जाती महीपधि-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) दूब । (२) लजालू । (३) संजी है। सीमंत । वनी । (४) कुछ विशिष्ट औषधियों का समूह जिनका चूर्ण विशेष-हिंदू पौभाग्यवती स्त्रियां मांग में सिंदूर लगाती हैं महामान वा अभियेकादि के जल में मिलाया जाता है। । और इसे सौभाग्य का चिह्न समझती हैं। महौषधी-सं. स्त्री० [सं०] (1) सफेद भटकट या । श्वेत केटका। यौ-माँग चोटी स्त्रियों का केशविन्यास । माँगजली विधवा । (२) माझी । (३) कुटकी। (४) अतिबला । (५) हिल. रॉज। मोचिका। मुहा०-मांग कोख से सुखी रहना या जुहाना स्त्रियों का मात्तर-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक जाति का | सौभाग्यवता और संतानवती रहना । उ.-आनंद अवनि राज नाम। रानी सब माँगहु कोखु जुबानी । तुलसी । मांग पट्टी मां-सा स्त्री० [सं० अंबा या माता ] जन्म देनेवाली, माता।। करना। केश विन्यास करना । बालों में कंघी करना । मांग पारना