पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४१८

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मांधी मांच म.डवी-संज्ञा स्त्री० [सं० माण्डवी ] राजा जनक के भाई कुशचज ! माँड़ा-संज्ञा पु० दे० "माँ"। की कन्या जो भरत को म्याही थी । उ०-मांडवी । माँत*-वि० [सं० मत्त ] (१) उन्मत्त । मस्त । मत्त । बेसुध । चित्तचातक नवांबुदवरन सरन तुलसीदास अभयदाता । (२) दीवाना । पागल । तुलम्पी। वि० [हिं० माता या सं० मंद ) (1) बे-रौनक । उदास । मांडव्य-संज्ञा पुं० [सं० माण्डव्य ] (1) एक प्राचीन ऋषि जिनको बदरंग । उ०—ा मांत गोरख कर चेला । जिव तन बाल्यावस्था के किए हुए पाप के अपराध के कारण यमराज छाँदि स्वर्ग कह रसेला ।—जायसी । (२) हारा हुभा। ने शूली चढ़वा दिया था। इस पर ऋषि ने यमराज को पराजित । मात । शाप दिया कि तुम शूद्र हो जाओ, जिसमे यमराज दासी के मांतना-क्रि० अ० [सं० मत्त+ना (प्रत्य०) ] उन्मत्त होना। गर्भ मे पंदु के यहाँ उत्पन्न हुए थे। उ०-विदुर सुधर्मा पागल होना । अवतार । ज्यों भयो कहाँ सुनो चितधार । मांडव्य ऋषि जब माता* --वि० [सं० मत्त ] मतवाला । उम्म। शूली दयो। तब सो काठ हन्यो ह गयो।सूर । (२) मांत्र-वि० [सं० ] मंत्र संबंधी । मंत्र का। एक प्राचीन जाति का नाम । (३) एक प्राचीन नगर का नाम। मांत्रिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह जो मंत्रों का पाठ करने में मांडा-संज्ञा पुं० [सं० मंद ] ऑग्व का एक रोग जिसमें उसके पारंगत हो। (२) वह जो तंत्र-मंत्र का काम करता हो। उपरी पर्दे के अंदर महान झिल्ली यी पड़ जाती है। इन माँथा-संज्ञा पुं० [सं० मस्तक ] माया। सिर । झिल्ली का रंग चावल के माँद के समान होता है और माँथबंधन-संज्ञा पुं० [हिं० माथ+बंधन ] (१) सूत या उन की इसके कारण रोगी को दिखाई नहीं पड़ता। यह औषधोप डोरी जिससे स्त्रि पाँ सिर के बाल बांधता है । परना। चार या शस्त्रक्रिया से निकाला भी जाता है। घबकी । चत्ररी । (२) सिर पर लपेटने या बाँधने का संज्ञा पुं० [सं० मंडप | मंडप । मसवा । कपदा । जैसे, पगडी, साफा आदि । संज्ञा पुं० [हिं० मोडना=गुचना । (१) एक प्रकार की बहुन । माँद-वि० [सं० मंद] (1) बेरोनक । उदास । बदरंग । (२) पतली रोटी जो मैदे की होती और घी में पकती है । लुचई।। किसी के मुकाबले में फीका, ग्वराय या हल्का । उ.-(क) मुर्दा दोजख में जाय या बिहिश्त में, हमें तो क्रि० प्र०-करना ।-पड़ना ।-होना। अपने हलुवे मांडे से काम है। (कहावत ) (ख) काकी (३) पराजित । हारा हुआ। मात । भृग्य गई धयारि भग्त्र बिना दूध घृत माहे।-सूर। (२) संशा स्त्री० [ देश] (१) गोबर का वह ढेर जो पड़ा था एक प्रकार के रोटी जो तवे पर थोड़ा घी लगाकर पकाई । सूख जाता है और जो प्रायः जलाने के काम आता है। जाती है। पराँठा । उलटा । इसकी आँच उपलों की आंच के मुकाबले में मंद या धीमी मांडी-संज्ञा स्त्री० [सं० मंद] (1) भात का पसावन । पीध। होती है। (२) हिंसक जंतुओं के रहने का विवर । दिल । माद। (२) कपड़े या सूत के ऊपर चढ़ाया जानेवाला गुफा । घर । खोह । कलफ, जो भिन्न भिन्न कपड़ों के लिए भिस भिन्न प्रकार से मांद-संज्ञा पुं० [सं०] (1) तालाब का जल । (२) ग्रहों का रवि तैयार किया जाता है। या चंद्र संबंधी नीचोध या मंदोच गति। विशेष—यह माँबी आटे, मैदे, अनेक प्रकार के चावलों तथा माँदगी-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) बीमारी । रोग। (२) थकावट । कुछ बीजों से तैयार की जाती है और प्रायः लेई के रूप में 'मौदर-संज्ञा पुं० [हिं० मर्दल ] मृदंग का एक भेद जिसे मर्दल होती है। कपड़ों में इसकी सहायता से कदापन या करा- . कहते है। उ-बाजहिं ढोल दुदु रु मेरी माँदर सूर रापन लाया जाता है। झाँझ चहुँ फेरी।-जायसी । क्रि० प्र०--देना ।-लगाना। माँदा-वि० [फा० माद] (1) थका हुआ। (२) बचा हुआ। मांडूफ-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल के एक प्रकार के ग्राह्मण : बाकी । अवशिष्ट । जो वैदिक मंडूक शाखा के अंतर्गत होते थे। ___ संज्ञा पुं० रोगी । बीमार । मांडकायनि-संज्ञा पुं० [सं०] एक वैदिक आचार्य का नाम ! मांदार-वि० [सं० ] मंदार संबंधी । मंदार का। मांडूक्य-संशा पुं० [सं०] एक उपनिषद् का नाम । मांदार्य-संशा पुं० [सं० ] वह जो विषयों या राग-द्वेष आदि से वि० मंडूक संबंधी। परे हो गया हो। वीतराग। माँसा-संज्ञा पुं० [सं० मंडप ] विवाह का मंडप । मड़वा। मांघ-संज्ञा पु० [सं०] (1) कमी। न्यूनता । घटी। (२) मंद 30-माँदी गयो रंग-मंदिर के आँगन बेद विधाना। ता! होने की क्रिया या भाव । जैसे, अग्नि-मांद्य । (३) रोग। ऊपर जएकसी रज्जु मणिमय विशद बिताना ।-खुराज। | बीमारी।