पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६३५ फोकस पहुँचाना । जैसे, सुगंध फैलाना, त्याही फैलाना । (11) | फोकागोला-संशा पुं० [हिं० फॉक+गोला ] तोप का लंबा गोला। प्रसिद्ध करमा । बहुत दूर तकशात या विदित कराना। फोदा*-संशा पुं० दे."वना" "वना"। उ.-यमुना पुलि- चारों भोर प्रकट करना । जैसे, यस फैलामा, नाम फैलाना। नहि रच्यो रंग सुरंग हिरोनो । रमत रामश्याम संग प्रज- (१२) मायोजन करना । विस्तृत विधान करना । उपक्रम बालक सुख पावत हैसि बोलनो................"गावत- करना । धूमधाम से कोई बात खपी करना । जैसे, मलार सुराग रागिनी गिरिधरन लाल छथि सोहमोविच ढंग फैलाना, ढोंग फैलाना, आडंबर कैलाना। (१३) रंगवरन वरन पाटहि पवित्रा विच विच कोंदा गहनो।-सूर। गणित की किया का विस्तार करना । (१४) हिसाब किताब | फोफर-वि० [ अनु० ] (1) पोला । सावकाश । (२) फोक । करना । लेखा लगाना । बिधि लगाना । जैसे, म्याज फैला- नि:सार खोल। ना, हिसाव फैलाना, पड़ता फैलाना । (१५) गुणा भाग | फोफी -संज्ञा स्त्री० [अनु०] (1) गोल लंबी नली । कोटा चोंगा। के ठीक होने की परीक्षा करना । वह क्रिया करना जिससे (२) बॉस की नली जिससे सोनार लोहार आदि भाग गुणा या मागके डीक या न ठीक होने का पता चल जाय।। धींकते हैं। (३) नाक में पहनने की पोली कील । छछी । फैलाव-संज्ञा स्त्री० [हिं० फैलाना ] (1) विस्तार । प्रसार । पसार। फोक-संज्ञा पुं० [सं० स्फोट वा सं० वस्कल, हि० बोकला हिं० फोकला ] (२) लंबाई चौपाई। (३) प्रचार । (1) सार निकल जाने पर बचा हुभा अंश । वह वस्तु फैशन-संज्ञा पुं० [अं०] (1) बंग। धज । तर्ज । बजः । चाल । जिपका रस या सत निकाल लिया गया हो। सीठी। (२) (२) रीति । प्रथा । चलन । भूसी । तुष । वह वस्तु जिसमें छिलका ही छिलका रह फ़ैसला-संज्ञा पुं० [अ०] (1) वादी प्रतिवादी के बीच उप गया हो, असल चीज़ निकल गई हो। (३) बिना स्वाद स्थित विवाद का निर्णय । दो पक्षों में किसकी बात की धस्तु । फीकी या नीरस पीज़ । ठीक है इसका निबटेश। (२) किसी व्यवहार या अभि संज्ञा पुं० [देश॰] एक तृण जिसका साग, बनाकर लोग योग के संबंध में न्यायालय की व्यवस्था । फिसी मुक्कदमे खाते हैं। सूक्ष्मपुष्पी। में अदालत की आखिरी राय।। विशेष--यह मारवाद की ओर होता है और रेचक और ठंढा क्रि० प्र०--करना ।-सुनाना । —होना । माना जाता है। वैद्यक में यह रक्तपित्त और कफ का फोंक-संज्ञा पुं० [सं० पुंख ] तीर के पीछे की नोक जिसके पास नाशक कहा गया है। पर लगाए जाते हैं और जिसे रोदे पर चढ़ाकर चलाते हैं। फोकट-वि० [हिं० फोक ] तुरछ । जिसका कुछ मूल्य न हो। इस नोक पर गड्ढा या खड्डी बनी रहती है जिसमें धनुष निःसार । व्यर्थ । उ.--(क) खल प्रबोध जग सोध मन को की छोरी बैठ जाती है। उ०-(क) रति संग्राम वीररस निरोध कुल सोष । करहिं ते फोकट पचि मरहि सपनेहु माते। हरि शूरशिरोमणि अजहूं नहिन संभारत साते।। सुख न सुबोध । तुलसी । (ख) कलि में न विराग न ज्ञान ....... परिमल लुब्ध मधुप जहँ बैठत उहि न सकत तेहि कहूँ सब लागत धोकट ¥ठ जटो।-तुलसी । (ग) जोरत हाँसे । मनहुँ मदन के हैं शर पाए फोंक बाहरी बाते ।- ये नाते नेह फोकट फीको । देह के दाहक गाहक जी को। सूर । (ख) शोभन सिंगार रस की सी छींट सोहै कोंक | -सुलसी। (4) करम कलाप परिताप पाप साने सब ज्यों कामशर की सी कहौं युगतिनि जोरि जोरि । केशव । सुफल फले रूख फोकट फरनि । दंभ लोभ लालच उपासना (ग) समर में भरिगज-कुंभन में हनौ तीर फोंक लौं समात विनासिनी के सुगति साधन भई उदर भरनि ।--तुलसी। वीर ऐसो तेजधारी है। राघरे कुचन की बराबरी चहत मुहा०-फोकट का-(१) निना परिश्रम का (२) बिना मूल्य का। याते सालत है तिन्हें सेवा करत तिहारी है। -गुमान। मुफ्त । जैसे,—क्या यह फोकट का है जो योंही दे दें। (घ) बान करोर एक मुंह छूटहिं । बाजहि जहाँ कोंक कोकट में बिना श्रम और व्यय के । मुफ्त में । यों ही। लहि फूटहिं ।जायसी। फोकला-संज्ञा पुं० [सं० बल्कल, हिं० बोकला ] [ स्त्री० फोकलाई ] वि० [देश॰] दलालों की बोली में 'चार' । किसी फल आदि के ऊपर का छिलका। फोकलाय-वि० [देश॰] चौदह । (दलाल) फोकस-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) वह विदु जहाँ पर प्रकाश की फोफा-संज्ञा पुं० [सं० पुंख वा हिं० फूंकना ] (1) लंबा और पोला छितराई हुई किरने एकत्र हों। इस विदु पर साप और चाँगा। फोफी । (२) मटर मादि पोली ठसवाले शस्यों प्रकाश की मात्रा अधिक हो जाती है जैसे उन्नतोदर या की फुनगी । (३) दे. "फूका"। भातशी शीशे में दिखाई पड़ता है। (२) फोटो लेने के क्रि० प्र०-लगाना ।-मारना-देना ।-करना । लिए केस द्वारा उस वस्तु की छाया को जिसका छाया- (४) ० "सरफोका"। चित्र क्षेना है नियत स्थान पर स्थित रूप से लाने की क्रिया। rinate Library.