पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२०

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मांसकच्छप २७११ मांससमुद्धा संज्ञा पुं० दे. "मास"। मांसभक्षी-संज्ञा पुं॰ [सं० मांसभक्षिन् ] मांस खानेवाला । मांसा- मांसकच्छप-संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का हारी । गोश्तखोर । रोग जो तार में होता है। मासभाजी-संशा पुं० [सं० मांमभोजिन् ] मांस खानेवाला। मसकारी-संज्ञा पुं० [सं० मांसकारिन् ] रक्त । लहः । मांसाहारी। मांसकीलक-संज्ञा पुं॰ [सं०] बवासीर का मसा। मांसमंधु-संज्ञा पुं० [सं०] मांस का मोल या रसा। शोरबा। मसकेशी-संज्ञा पुं० [सं० मांसकेशिन् ] वह घोडा जिसके पैरों में । यखनी। मांस के गुठले निकलते हों। मांसमासा-संशा स्त्री० [सं०] माषण । मसखार-संशा पुं० [सं० मांस+i० खोर मांस खानेवाला । मांसयोनि-संज्ञा पुं० [सं०] रक्त-मांस से उत्पन्न जीव । मांसाहारी। म.सरक्ता-संज्ञा स्त्री० [सं०] मसरोहिणी । रोहिणी। मसप्रंथि-संशा स्त्री० [सं०] Riस की गाँठ जो शरीर के भिन्न मसरज्जु-संक्षा ली० [सं० ] सुश्रुत के अनुसार शरीर के अंदर भिन्न अंगों में निकल आती है। होनेवाले म्नायु जिनसे मांस बँधा रहता है। (२) मांस का मंसच्छ-संज्ञा स्त्री० [सं०] मांसरोहिणी या मांसी नाम की स्था । शोरया । लता। म.सरस-मंशा पुं० [सं० ] मांस का रसा । यखनी । शोरया । मांसज-संज्ञा पुं० [सं०] (१) वह जो मांस से उत्पन्न हो। (२) म.सहा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मांसरोहिणी । मांस से उत्पन्न शरीर में की थी। मांसरोहिणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का अंगली वृक्ष मसतान-संशा गुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का जिसकी प्रत्येक हाली में खिरनी के पत्तों के आकार के सात भीषण रोग जिसमें गले में सूजन होकर चारों ओर फैल सात पत्ते लगते है और जिसके फल बहुत छोटे छोटे होते जाती है और जिसमें बहुत अधिक पीड़ा होती है। इससे हैं। वैद्यक में इसे उष्ण, त्रिदोषनाशक, वीर्यवर्धक, सारक कभी कभी गले की नादी घुटकर बंद हो जाती है और और ग्रण के लिए हितकारी माना है। रोगी मर जाता है। पर्या-अतिरुहा। वृत्ता। धर्मकपा । वसा । प्रहावरवल्ली। मंसतेज-संज्ञा पुं० [सं० मांसते जन् ] धी। विकशा । वीरवती। अग्निरुहा । कशामांसी। महामामी। मांसद्रावी-संज्ञा पुं० [सं० मांसद्राविन् ] अम्लबेत । मांसरोहा। रसायनी। सुलोमा। लोमकर्णी । रोहिणी । मांसधरा-संवा स्त्री० [सं०] सुश्रुत के अनुसार शरीर के समय चंद्रवल्लभा । की सातवीं तह जो स्थूलापर भी कहलाती है। मांसल-वि० [सं०] (१) मांण से भरा हुआ । मांसपूर्ण । मसपाक-संदा पुं० [सं०] एक प्रकार का लिंग का रोग जिसमें : ( अंग ) जैसे, घूतक, जाँध आदि। (२) मांटा ताजा । लिंग का मांस फट जाता है और उपमें पीड़ा होती है। पुष्ट । (३) बलवान् । मजबूत । ढ़। मांसपिंड-संज्ञा पुं० [सं०] शरीर । देह । संज्ञा पुं० (१) काव्य में गौई। रीति का एक गुण । (२) मांसपिडी-संज्ञा स्त्री० [सं० मांसपिंड ] शरीर के अंदर होनेवाली मांस की गाँठ । (कहते हैं कि पुरुषों के शरीर में इस मांसलता-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) मांसल होने का भाव । (२) प्रकार की ५०० और त्रियों के शरीर में ५२० गाँ स्थूलता और पुष्टि। होती है।) मांसलफला-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) भिंडी । (२) तरबूज । मांसपित्त-संज्ञा पुं० [सं०] हड्डी। म.सलिप्त-संशा पुं० [सं०] हड्डी। मांसपुष्टिका संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का पौधा जिसमें म.सवारुणो संज्ञा स्त्री० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार की सुदर फूल लगते हैं और जिसे "भ्रमरारि" भी कहते हैं। मदिरा जो हिरन आदि के मांस से बनाई जाती है। मांसपेशी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१)शरीर के अंदर होनेवाला मांस-मांसविक्रयी-संशा पुं० [सं० मांसविक्रयिन् ] (1) वह जो मांस विड । वि. दे. "मांस"। (२) भावप्रकाश के अनुसार बेचता हो। कमाव । (२) वह जो धन के लिए अपनी गर्भ को वह अवस्था जो गर्भधारण के सात दिनों के बाद । कन्या या पुत्र बेचता हो। होती है और प्रायः एक सप्ताह तक रहती है। मांसवृद्धि-संज्ञा स्त्री० [सं०] शरीर के किसी अंग के मांस का मांसफल-संज्ञा पु० [सं०] तरबूज । बढ़ जाना । जैसे, धेघा, फीलपाँव आदि। मांसफला-संज्ञा स्त्री० [सं०] भिंडी। मांससंवात-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जिपमें तालू मांसभक्ष-संशा पुं० [सं०] (1) वह जो मांस खाता हो । मांसा- | में कुछ दूषित मांस बढ़ जाता है। इसमें पाया नहीं होती। हारी। (२) पुराणानुसार एक दानव का नाम । मांससमुद्भधा-संज्ञा स्त्री० [सं०] च ।