पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२१

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मांससार २७१२ माकूल म.ससार-संज्ञा पुं० [सं०] (1) शरीर के अंतर्गत मेद नामक रघुराइ । सुख है पिता तन माइ ।-केशव । (स्त्र) मेरे धातु । (२) वह जो हृष्ट पुष्ट हो। गुरु को धनुष यह सीता मेरी माइ । केशव । म.सस्नेह-संज्ञा पु० [सं०] चर्बी। माइका-संशा पुं० [सं० मात+गृह ] स्त्री के लिए उसके माता- म.सहासा-संज्ञा पुं० [सं०] चमड़ा । पिता का घर । नहर । उ०—(क) और तो मोहि सबै सुख मसाद-संहा पुं० [सं० ] (1) वह जो मॉम ग्वाता हो। (२) से दुखरी यहै माइके जान न देत है।-पाकर । (ख) राक्षस। बैठी हुती तिय माइके में ससुरारि को काह संदेस सुनायो। म.सारि-संशा पुं० [सं०] अम्लबेत ।। -मतिराम । म सार्घद-संजा पु० [सं०] (1) एक प्रकार का रोग जिसमें लिंग के । माई-संशा स्त्री० [ मं० मातृ ] ( माता । जननी । मा। ऊपर कड़ी कुंबियाँ यी हो जाती है। (२) शरीर में मुक्के| यौ०-माई का लाल=(१) उदार चित्तवाला व्यक्ति । उ०- आदि के आघात से होनेवाली एक प्रकार की सूजन जिसमें क्या फिर कोई देवनंदन जैमा माई का लाल न जनमैगा।- वह स्थान पत्थर के समान कदा हो जाता है और उसमें अयोध्या । (२) वार । शूर । बली। शक्तिवान् । उ.- पाया नहीं होती। ऐसी सूजन असाध्य मानी जाती है। (क) क्या ऐसा कोई माई का लाल नहीं है जो मुझको म.साशन-संा पुं० दे० "मांसाशी"। इनके हाथों से बचाये।अयोध्या। (ख) एक बार एक मांसाशी-संजा पु० [सं० मांसाशिन् ] (1) वह जो मांस खाता पंजाबी हाजी को वद्दुओं ने घेर लिया। उसने अपनी हो। मांसाहारी । (२) राक्षस । कमर से रुपये निकालकर सामने रख दिये और ललकार मसाटका-संभात्री० [सं०] माघ कृष्ण अष्टमी। प्राचीन काल कर कहा कि कोई माई का लाल हो, तो इसे मेरे सामने से में इस दिन मांग के बने हुए पदार्थों से श्राद्ध करने का । ले जाय । सरस्वती। विधान था। (२) बूढी वा बड़ी स्त्री के लिए आदरसूचक शब्द । उ०- मांसाहारी-संज्ञा पुं० [सं० मामाहारिन् ] मांसभक्षी । मांस भोजन (क) सत्य कहीं मोहिं जान दे माई। तुलसी। (ख) ___ करनेवाला। कहहिं झूठ फुरि बात वनाई। ते प्रिय तुमहिं करुइ मैं मांसिका-संवा स्त्री० [सं०] जटामांसी। माई।-तुलसी । (ग) मीय स्वयंवरु माई दोउ भाई आये मांसी-वि० [सं० माष ] उर्द के रंग का । देखन ।-तुलनी। संक्षा पुं० उर्द के रंग के समान एक प्रकार का हरा रंग। माउल्लहम--संज्ञा पुं० [अ० ] हिकमत में मांस का बना हुआ एक मसी-संग 10 [सं०] (1) जटामासी । (२) काकोली । (३): प्रकार का अरक जो बहुत अधिक पुष्टिकारक माना जाता है मायरोहिणी । (४) चंदन आदि का तेल । (५) इलायची। और जिसका व्यवहार प्रायः जादे के दिनों में शरीर का माँसु-संभा पुं० दे. "मांस"। उ.-जेहि तन पेम कहाँ तेहि बल बढ़ाने के लिए होता हो। मौसू । कया न रकत न नैनन आँसू । —जायसी। माकंद-संज्ञा पुं० [सं०] (१) मा का वृक्ष । (२) दे० "मानद"। माह*--अव्य० [सं० मध्य ) में। बीच । अंदर । भीतर। माकंदी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) आँवला । (२) महाभारत काल माहा*--अव्य. दे. "माँ"। के एक गाँव का नाम । माँहि, माहीं अन्य० दे. "माह"। विशेष-युधिष्ठिर ने दुर्योधन से जो पाँच गाँव मांगे थे, उनमें माँ* -अन्य० दे० “मोह"। से एक यह भी था। मा-संशा मी० [सं०] (1) लक्ष्मी उ.-सिंधु सुता मा इंदिरा (३) पीला चंदन। विष्णु-वल्लभा सोइ।-अने० (२) माता । (३) ज्ञान । माकरा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मरुआ। (1) दीप्ति । प्रकाश। माकरी-संशा स्त्री० [सं०] माघ शुक्ला मसमी जी एक पुण्यतिथि माएँ, माई-संज्ञा स्त्री० [सं० मातृ ] छोटा पा जिससे विवाह में मानी जाती है। मातृपूजन किया जाता है। माकलि-संज्ञा पुं० [सं०] (1) चंद्रमा । (२) इंद्र के सारथी मुहा०—मान में थापना पितरों के समान आदर करना। मातलि का एक नाम । उ.-जो लौं ही जीवन भर जीवों सदा नाम सुव जषिहौं। माकुली-संशा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का साँप। दधि ओदन दोना करि दहौं अरु माइन में थपिहों।-सूर। माकूल-वि० [अ० 1 (1) उचित। वाजिब । ठीक । (२) लायक । संत्री० | अनु० ] पुत्री । लड़की । कन्या । योग्य । (३) यथेष्ट । पूरा । (४) अच्छा। बदिया । (५) संज्ञा स्त्री० [हिं० मामा ] मामा की मी। मामी। जिसने वाद-विवाद में प्रतिपक्षी की बात मान ली हो। जो माइ*-संज्ञा स्त्री० दे० "भाई"। उ०—(क) तब पूछियो। निरुत्तर हो गया हो। --