पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२२

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माक्षिक माखी माक्षिक-संज्ञा पुं० [सं० 1(1) शहद । मधु । (२) सोनामक्खी। मागधक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मागध । भाट । (२) मगध देश (३) रूपामक्खी । का निवासी। माक्षिकज-संशा पुं० [सं०] मोम । मागधपुर-संज्ञा पु० [सं०] मगध की पुरानी राजधानी, राजगृह । माक्षिकांत-संशा पुं० [सं.] माधवी नामक मण । महुए की। मागधिक-वि० [सं० ] मगध देश संबंधी। मगध का। शराब। मागधिका-संशा स्त्री० [सं० पिपली । पीपल । माक्षिकाश्रय-सश। पुं० [सं०] मोम । मागधी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मगध देश की प्राचीन प्राकृत माक्षीक-संशा पुं० [सं०] (1) मधु । शहद । (२) सोनामक्खी भाषा । (२) जूही। यूधिका । (३) शकर । चीनी । (४) (३) रूपामक्खी । छोटी पीपल । पिप्पली । (५) छोटी इलायची । माख-संज्ञा पुं० [सं० मक्ष ] (1) अप्रसन्नता । नाराजगी। माघ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) ग्यारहवाँ चांद्र मास जो पूरप के बाद नास्वुवी। भोध । रिस । उ०-(क) देखेउँ आय जो कछ। और फागुन मे पहले पड़ता है। उ०—माघ मकरगत रवि कपि भाग्वा । तुम्हरे लाज न रोपन माखा।-तुलसी। जब होई । तीरथपतिहि आव सब कोई । —तुलसी । (२) (ख) लीबे को लाख कर अभिलाष कर कहुँ माख पर संस्कृत के एक प्रमिन्द्र कवि का नाम । (३) उपर्युक्त कवि कबई हसि।—बेनी । (२) अभिमान । धर्म । (३)। का बनाया हुआ एक प्रसिद्ध काव्यग्रंथ जिसमें कृष्ण द्वारा पछतावा । (४) अपने दोष को ढकना । शिशुपाल का वध वर्णन किया गया है। माखन-संज्ञा पुं० दे० "मक्खन"। उ0-(क) माखन ते मन संज्ञा पुं० [सं० माध्य ] कुंद का फूल। उ.-मुसुकान कोमल है यह बानि त जानति कीन कठोर है। -आनंदधन।। कदाहि' रद माघ से फालान यो जोधा महत :-गोपाल । (ख) ता खिन ते इन आँखिन ते न कहो वह माखन चाखन- माघी-संज्ञा स्त्री० [सं० माघ+ई ] माघ मास की पूर्णिमा जो मघा हारो।--पद्माकर । (ग) माखन सो मेरे मोहन को मन नक्षत्र मे युक्त होती है। कहते हैं कि कलियुग का आरंभ काठ सी नेरी कठेठी ये बातें। केशव । इसी तिथि को हुआ था। यौ०-वनचोर--श्रीकृष्ण । वि० माघ का । जैसे, आधी मिर्च। माखना*1-क्रि० अ० [हिं० माख ] अप्रसन्न होना । नाराज माध्य-संशा पुं० [सं०] कुंद का फूल। होना । क्रोध करना । उ.---(क) अब जनि कोउ माखद माच*1-संशा पुं० दे० "मचान"। उ०—जय यदुपति कुल कंसहि भट मानी। बीर-बिहीन मही मैं जानी। तुलसी । (ख): मान्यो। तिहुँ भुवन भयो सोर पसायो। तुरत माच ते माखे लखन कुटिल भई भौंहैं । रदपुट फरकत नैन : धरनि गिरायो पेसहि मारत बिलम न लायो।-सुर । रिसौहैं।—तुलसी । (ग) पत्र सुनत रतनावती मुंडन : संज्ञा पुं० [सं०] मार्ग । रास्ता। कीन्यो केश । सुनत मावि मारन चहौ रतनावतिहिं : माचना-क्रि० स० दे० "मचना"। उ०-(क) इमि संगर नरेश । -रघुराज । (घ) कळू न थिरता लहै छनक रीझै । माचत भयो मधुबन के सब ओर ।-गोपाल। (ख) द्वादन छन माखे ।-व्यास । दिवस चहुँ दिसि माच्यो फागु सकल ब्रज मांझ-सूर। माखी* --संज्ञा स्त्री० [सं० माक्षिक ] (१) मक्खी । उ-(क) (ग) बंदी कौसल्या दिखि प्राची। कीरति जासु सकल जग दूध की माखी उजागर बीर सो हाय मैं ऑखिन देखत : माची।-तुलसी। (घ) कहै पदमाकर स्यों तिनकी अवाइन खाई। ठाकुर । (ख) चंदन पास न बैठे माखी।- के, माचि रहे जोर सुरलोकन में सोर है।-पदमाकर । जायमी। (ग) भामिनि भइउ दृध कर मावी । तुलसी।माचल* -वि० [हिं० मचलना ] (1) मचलने वाला जिद्दी। हठी। (२) सोनामक्खी । उ.-महा माचल मारिये की सकुच नाहिन मोहि । पर्यो मागध-संशा पुं० [सं०] (9) एक प्राचीन जाति जो मनु के हौं प्रण किये द्वारे लाज प्रण की तोहि सूर। (२)मचला। अनुसार वैश्य के वीर्य से क्षत्रिय कन्या के गर्भ से उत्पन्न । सज्ञा पुं० [सं०] (1) ग्रह । (२) रोग। बीमारी। (३) है। इस जाति के लोग घंशक्रम से विख्यातली का वर्णन वंदी। कैदी । () चोर। करते हैं और प्रायः "भार" कहलाते हैं। उ०—(क) मागध , माचा-संज्ञा पुं० [सं० मंच } बैठने की दी जो खाट की तरह बंदी सूत गण बिरद बदहिमतिधीर।-तुलसी। (ख)। खुनी होती है। बड़ी मचिया। मागध वंशावली बखाना ।-रघुराज । (२) जरासंध का माचिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मक्त्री। (२) अमड़े का वृक्ष । एक नाम । 30-मागध मगध देश ते आयो लीन्हें फौज माची-संशा की० [सं० मंच ] (1) हल जोतने का जुआ। वह अपार । —सूर । (३) जीरा । (४) पिप्पलीमूल। जुआ जो हल जोतते समय बैलों के कंधे पर रखा जाता है। वि० [सं० मगध ] मगध देश का। (२) बैल-गाड़ी में वह स्थान जहाँ गादीवान् बैठता और ६७९