पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२३

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माचीक २७१४ माड़ना सपना सामान सकता है। (३) बैठने की वह पीदी जो को जहाँ न अपनो कोय । माटी खाय जनावरां महा महो- खाट की तरह बुनी हुई होती है। छव होय। (ग) काल भाइ दिखराई सौटी । उठि जिउ माचीक-संशा पुं० [सं०] देवदार । चला छाँदि के माटी !-~-जायसी । (४) शरीर। देह । (५) माचीपत्र-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साग जिसे सुरपर्ण भी पाँच तत्वों के अंतर्गत पृथ्वी नामक तरख । उ.--पानी कहते हैं। पवन आग अह माटी । सत्र की पीठ तोर है सौटी।- माछा-संज्ञा पुं० [सं० मरस्य ] मछली । उ०-चारा मेलि धरा जायसी । (१) धूल । रज । उ.--(क) गढ़ गिरि दि जय माछु ।--जायसी। भये सब माटी । हस्ति हेरान तहाँ का चाँटी।-जायसी। माछर-f-संथा पुं० दे. "मछल"। (ख) महँगि माटी मग हु की मृगमद साथ जू।-तुलसी। संमा पुं० [सं० मत्म्य ] मछली। उ०-वह कैलारस इंद्र कर (मुहा० के लिए दे "मिट्टी"।) प्रासू । जहाँ न अम न मार मांसू । - जायसी 1 माठ-संज्ञा पुं० [हिं० मीठा ] एक प्रकार की मिठाई। माछी-सका स्त्री० [सं० मक्षिका ] (1) मक्वी। उ०-काँची रोटी. विशेष--मैदे की एक मोटी और बड़ी पूरी पकाकर शक्कर के कुचकुची परती माळी बार । फूहर वही सराहिये परसत पाग में उसे पाग लेते हैं। इसी को माठ कहते हैं। यही टपकै लार ।-गिरधर । (२) बंदक की मछिया। मिठाई जब छोटे आकार में बनाई जाती है, तब उये 'मठरी' वि०-दे० "मछिया"। का 'टिकिया' कहते हैं। उ.--भइ जो मिठाई कही न +-सं। सी. | सं० मत्स्य ] मछली । (क.)। जाई। मुख मेलत पत्रत जाय बिलाई । मतलब छाल और माजग-सका पु० / अ. 1 (3) हाल । वृत्तांत । (२) घटना। मरकोरी । माट पिरोंके और बुंदौरी।—जायसी।। माज--411 पु. [ 10 ] एक प्रकार की नाड़ी जो यूनान और संज्ञा पुं० [हिं० मटका ] मिट्टी का पात्र जिसमें कोई तरल फारस आदि देशों में बहुतायत में होती है। इसकी आकृति पदार्थ भरा जाय । मटकी । उ.-(क) मानो मजीठ की य को सी होती है । इस्पकी बालियों पर में एक प्रकार : माठ दुरी इक और ते घाँदनी अोरत भावत ।-शंभु कवि। का गांद निकलता है जो "माजूफल" कहलाता है और (ग्य) धरत जहाँ ही जहाँ पग है सुप्यारी तहाँ, मंजुल जिसका व्यवहार रंग तथा ओषधि के लिए होता है। मजीठ ही की माठ सी ढरत जात ।—पनाकर । (ग) माजन-सशास्त्री० [अ० (1) औषध के रूप में काम आनेवाला स्वामिदसा लखि लम्बन सम्वा कपि पघिले हैं आँच माठ कोई मीठा अवलेह । (२) वह बरफी या अवलेह जिसमें मानो घिय के।-तुलसी । (घ) टूट कंध सिर परै निरारे। भांग मिली हो। माठ मजीठ जानु रण ढारे।-जायपी। माजूफल-संज्ञा पुं० [फा० माजू+फल } माजू नामक शादी का ! विशेष-कविता में यह शब्द प्रायः स्त्रीलिंग ही मिलता है। गोटा या गोंद जो ओषधि तथा रंगाई के काम में आता है। ! माठर-संचा पुं० [40] (1) सूर्य के एक पारिपाक जो यम पर्या-याफला । माईफल । सागरगोटा । माने जाते हैं। (२) व्यास । (३) ब्राह्मण । (४) कलाल । माट-संभ पुं० हिं० मटका ] (१) मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार । माठा-संज्ञा पुं० दे. "मट्ठा" या "मठा"। का बड़ा बरतन जिसमें रंगरेज लोग रंग बनाते हैं। इसे संज्ञा पुं० [हिं०] कृपण । कंजूस ।। 'मठोर' भी कहते हैं। माठी-संशा स्त्री० [देश. ] एक प्रकार की कास जो बंगाल, महार-माट रिगड़ जाना-किसी के स्वभाव का ऐसा बिगड़ जाना, आसाम और संयुक्त प्रदेश में अधिकता से होती है। आज- कि उसका सुधार असंभव हो। कल यह कपास बहुत निम्न कोटि की मानी जाती है। उ.- (२) बड़ी मटकी जिसमें दही रखा जाता है। उ०—खिर सूर प्रभु को और अतिही भई अवेर री, बेग चलि सजि दधि माखन के माट गावत गीत नये। कर माँझ मृदंग । अंगार कादिमाठी खग धारो आइकै साज-सूर । बजाइ सब नँद भवन गये।-सूर ।। । मार-संज्ञा पुं० [सं० ] ताड़ की जाति का एक पेड़। माटा-संशा पुं० [हिं० मटा ] लाल च्यूँ टा जिसके झुंड के झुर: ___ संज्ञा पुं.दे. "मार"। भाम के पेड़ों पर रहते हैं। माड़ना-क्रि० अ० [सं० मंडन ] ठानना । मचाना । करना । माटी*+-संशा स्त्री० [हिं० मिट्टी] (१) दे० "मिट्टी"। (२) उ.--(क) निरखि यदुवंश को रहस मन में भयो देखि पाल भर की जोताई या उसकी मेहनत । जैसे,—यह बैल अनिरुद्ध सों युद्ध मापयो।-सूर । (ख) मधुसूदन यह धार माटी का चला है। (३) मृत शरीर । शव । लाश । विरह अरु अरि नित माइत रार। कहनानिधि अब यहि उ.-(क) कहता सुनता देखता लेता देता प्रान । दाव सो समय अपनो बिरद बिचार । रसनिधि । (ग) ताते कठिन कतहुँ गया माटी धरी मसान। (ख) मरनो भलो विदेस कुठार भत्र रामहि सों रण मादिकेशव । (घ) हौं तुम