पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२४

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माइव २७१५ मातना सों फिर युद्धहि मायौं । क्षत्रिय वंश को बैर लै छाँछौं। (२) भाव प्रकाश के अनुसार एक प्रकार का केला । केशव । (ङ) मनोज भख माग्यो नाभि कुर में। देव । वि० सर्वश्रेष्ठ । शिरोमणि | परम आदरणीय । उ०-नृप क्रि० स० [सं० मंडन ] (1) मंडित करना । भूषित करना। माणिक्य सुदेश, दक्षिण तिय जिय भावती । काट तट सुपट (२) धारण करना । पहनना । उ०-सब शोकन छाँदी सुदेश, कल कांची शुभ मंबई ।-केशव । भूषण मापी कीजै विविध बधाये। केशव । (३) आदर माणिक्या-संज्ञा स्त्री० [सं० ] छिपकली। करना । पूजना। उ०—ताते ऋषिराज सबै तुम छाँदो। माणिबंध-संज्ञा पुं० [सं०] सेंधा नमक । भूदेव सनाम्यन के पद माहौ। केशव । माणिमंथ-संज्ञा पुं० [सं० ) सेंधा नमक । क्रि० म० [सं० मर्दन ] (१) मर्दन करना । पैर का हाथ से | मातंग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) हाथी । (२) श्वपञ्च । चांडाल । मसलना । मलना । उ०-कोउ काजर कोड बदन मावती उ.-मदमत्त यदपि मातंग यंग । अति तदपि पतित पावन हर्षहि करहि कलोल । -सूर। (२) घूमना । फिरना। तरंग। केशव । उ.---डटी वस्तु फिर ताहि न छाई। माखन हित सत्र के विशेषस उदाहरण में इलेष मे ग्रह शब्द दोनों अर्थों में घर माई।-विश्राम । प्रयुक्त है। मारच-संश पुं० दे. "माहो" वा "मंडप"। (३) एक ऋषि का नाम जो शवरी के गुरु शोर मातंगी संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णसंकर जाति जो पुराणानुसार लेट देवी के उपासक थे। ये मौन रहा करते थे। इसी लिये पिता और तीवर माता के गर्भ से उत्पन है। जिस पर्वत पर ये रहते थे, उसका नाम ऋष्यमूक ५५ गया माढा*-संगा पुं० [सं० मंडप ] (1) अटारी पर का वह चौथारा था। (५) अश्वत्थ। (५) संवर्तक मेल का एक नाम । (६) जिसकी छत गोल मंडप के आकार की हो। (२) अटारी एक नाग का नाम । पर का चौथारा (चाहे वह किमी बनावट का हो)। उ०- मातंगनक्र-संज्ञा पुं० [स० } एक प्रकार का बहुत बड़ा कुंभीर को पलंग पाई को मा। सोवनहार पराबैंद गादे (जलजंतु)। -जायसी । (३) दे. "मठा"। । मातंगी-संज्ञा स्त्री॰ [सं० ) (1) कश्यप की एक कन्या। कहते मादी*-संज्ञा स्त्री० "मढ़ी"। उ०-अगिया बनी धन सो हैं कि हाथी इसी से उत्पन्न हुए थे। (२) तांत्रिकों के मादी।--सूर । अनुसार दस महाविद्याओं में से नवीं महाविधा। संज्ञा स्त्री० [सं० ] दाँतों का मूल । मात-संशा स्त्री० दे० "माता"। उ०—तात को न मात को न माणक-संज्ञा पुं० [सं० ] मानकंद । भ्रात को कहा कियो।-पद्माकर । माणतुंडिक-संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का जलचर पक्षी। -संज्ञा स्त्री० [अ० ] पराजय । हार। उ.-रविकुल रवि माणव-संज्ञा पुं० सं०] (1) मनुष्य । आदमी। (२) बालक | प्रताप के आगे रिपुकुल मानत मात ।-राधाकृष्णदास । बच्चा । (३) सोलह लड़ी का हार। क्रि० प्र०—करना ।-देना । माणयक-संज्ञा पुं॰ [सं०] (१) सोलह वर्ष की अवस्थावाला वि० [अ० ] पराजित । उ.---(क) तुब रग सतरंज बाज युवक । (२) बीस वा सोलह लदी का हार। (३) विद्यार्थी। सो मेरो बस न बसात । पातसाह मन को कर छमि मह बटु । (५) निंदित या नीच आदमी। देकर मात । सनिधि । (ख) देक्यो बादशाह भाव, कूदि माणवक्रीड़ा-संज्ञा पुं० [सं०] एक वर्णवत्त जिसके प्रत्येक पद में परे गहे पाव, देखि करामात मात भये सब लोक है।- ____ आठ वर्ण (एक भगण, एक तगण और दो लघु) होते हैं। विधनाथसिंह । (ग) जामों मातलि मात अरूण गति जाति माणिक-संज्ञा पुं० दे० "माणिक्य"।। सदा रुक ।गोपाल। माणिक्य-संशा पुं० [सं०] (1) लाल रंग का एक रत्न जो *वि० [सं० मत्त ] मदमस । मतवाला । (क.) "लाल" कहलाता है। पद्मराग। चुन्नी। धि०-३० "लाल"। 'मातदिल-वि० [अ० मोऽतदिल ] मध्यम प्रकृति का। जो गुण के उ.--(क) परिपूरण सिंदूर पर कैधौं मंगल घट । किधौं शक्र विचार से न बहुत टंदा हो और न बहुत गरम । को छन मस्यौ माणिक मयूष पट । -केशव । (ख) अनेक विशेष-इस शब्द का प्रयोग प्रायः ओषधियों या जल-वायु राजा गणों के मुकुट-माणिक्य से सर्वदा जिनके पदतल लाल आदि के संबंध में होता है। रहते है, उन महाराज चंद्रगुम ने आपके चरणों में दंडवत मातना-क्रि० अ० [सं० मत्त ] मस्त होना। मदमत्त हो करके निवेदन किया है। जाना । नशे में हो जाना । उ०-(क)जो अँचवत मातहिं पर्या--विरमक । भंगारी । रंगमाणिक्य । तरुण । खनायक। नृप तेई । नाहिन साधु सभा जिन सेई सुलती। (ख) रन । सौगंधिक । लोहितिक । कुरुविन्द । पियत जहाँ मधु रसना मातत नैन । झुकत अतनुगति अध-