पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२६

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मातृतीर्थ २०१७ माथा मातृतीर्थ-संशा पुं० [सं०] हथेली में सथ से छोटी उँगली के ! हाथी, घोका आदि। परिच्छद । (७) कान में पहनने का नीचे का स्थान। एक आभूषण। (८) इंद्रिय जिसके द्वारा विषयों का अनुभव मातृदेवी-संश। स्त्री० [सं० ] तांत्रिकों की एक देवी का नाम ।। होता है । (१) शक्ति। (१०) अवयव। अंग। (११)रूप । मातृनंदन-संज्ञा पुं० [सं०] (१) कार्तिकेय । (२) महाकरंज (१२) संगीत में गीत और वाद्य का समय निरूपित का पेद। करने के लिए उतना काल जितना एक स्वर के उश्चारण में मासृनंदा-संशा स्त्री० [सं०] शाक्तों की एक देवी का नाम । लगता है। मातृपालित-संक्षा पुं० [सं०] एक दानव का नाम । विशेष--एक हस्व स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता मातृपूजा-संशा स्त्री० [सं० मातृपूजन ] विवाह की एक रीति जिसमें है उमेहस्व मात्रा कहते है; दो हस्त्र स्वरों के उच्चारण में विवाह के दिन से एक या दो दिन पूर्व छोटे छोटे मीठे पूर. जितना समय लगता है, उस दीर्घ मात्रा कहते है और बनाकर पितरों का पूजन किया जाता है। इसी को 'मातृ-| तीन अथवा उसने अधिक स्वरों के उच्चारण में जितना पूजा' या 'मातृकापूजन' कहते हैं। समय लगता है, उसे प्लुत माना कहते हैं। मातृबंधु संत्रा पुं० [सं०] माता के संबंध का कोई आत्मीय । मात्रावस्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] वैद्यक का एक क्रिया जिसमें रोगी मातृभाषा-संशा स्त्री० [सं०] वह भाषा जो बालक माता की को दस्त कराने के लिए उपकी गुदा में पिचकारी आदि गोद में रहते हुए बोलना सीखता है। माता-पिता के तेल आदि मिला हुआ कोई तरल पदार्थ भरते हैं। बोलने की और मव से पहले सीखी जानेवाली भाषा मात्रासमक-संज्ञा पुं० [सं० । एक छेद जिसके प्रत्येक चरण में मातृमंडल-संशा पुं० [सं०] दोनों आँखों के बीच का स्थान । १६ मात्राएँ और अंत में गुरु होता है। चौपाई नामक छंद मातृमाता-संक्षा भी. सं० मातृमातृ । (१) मासा की माता के मत्तममक, बानवासिफा, चित्रा और विश्लोक नामक नानी । (२) दुर्गा। चार भेद इसी के अंतर्गत है। मातृयज्ञ-संज्ञा पुं० [सं० } एक प्रकार का यज्ञ जो मातृकाओं के मात्रिक-वि० [सं० । (१) मात्रा संबंधी। मात्रा का। (२) उद्देश्य से किया जाता है। मात्राओं के हिमावाला। जिसमें मात्राओं की गणना मातृरिष्ठ-संज्ञा पुं० [सं० ] फलित ज्योतिष के अनुसार एक दोष की जाय । जैसे, मात्रिक छद।। जो संतान के ऐसे बुरे लग्न में जन्म लेने में होता है जिसके मात्सर्य-संशा पु०स०] मत्सर का भाव । किमी का सुख वा कारण माता पर संकट आवे या उसके प्राण चले जायें। उम्पकी संपदा न देख सकने का स्वभाव । किसी को अच्छी मातृवत्सल-संज्ञा पुं० [सं०] कार्तिकेय । दशा में देखकर जलना । ईयों । डाह । मातृशासित-वि० [सं०] मूर्ख । मात्स्य-वि० [सं० | मछली संबंधी । मछली का। मातृष्वमा संज्ञा स्त्री० [सं० भातृष्वस ] माँ की बहन । मासी । सा पुं० एक ऋषि का नाम । मौसी। मात्स्यिक-संIt jo [स] मछली मारनेवाला । मा । मातृष्वसेय-संशा पुं० [सं०] [स्त्री० मातृष्वसेयी ] माँ को बहन । माथ-*-संज्ञा पुं० दे० "माथा"। का लड़का । मौसेरा भाई । • माथा-संज्ञा पुं० [सं० मस्तक ] (9) दिर का ऊपरी भाग । मस्तक । मातृसपनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] सौतेली माता । विमाता। मुहा०--माथा कूटना-दे० "माथा पीटना ।" माथा धिमना-- मात्र-अव्य ० [सं०] केवल । भर । सिर्फ। जैसे, नाममात्र । नम्रता प्रकट करना । मिन्नत खुशामद करना । माथा खपाना तिलमात्र । उ०—(क) रहे तुम सल्य कहावत मात्र । अबै या खाली करना-वहुन अधिक ममझाना या माचना । मिर सह सस्य करौं सब गात्र ।---गोपाल। (ख) केवल भक्त ग्वपाना । मगज-पच्ची करना । (किपी के आगे) माथा झुकाना चारि युग केरे। तिनके जे हैं चरित धनेरे। सोई मात्र कयौं या नवाना-बहुत अधिक नम्रता या अधीनता प्रकट करना । यहि माहीं। कछुक कथा उपयोगिन काहीं।-रघुराज । माथा टेकना=सिर झुकाकर प्रणाम करना। माथा ठनकना मात्रा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) परिमाण । मिकदार। जैसे,—इसमें पहले मे है। किमा दुर्घटना या विपरीत बात होने की आय होना । पानी की मात्रा अधिक है। (२) एक बार खाने योग्य औषध। माथा धुनना-दे० 'माथा पीटना" | माथा पीटना सिर पर (३) उतना काल जितना एक हस्व अक्षर का उच्चारण करने हाथ मारकर बहुत अधिक दुःख या शोक करना । माया में लाता है। छंदःशान में इसे मत्त, मत्ता, कल या कला: रगढ़ना-दे. "माथा घिमना"। माथे चढ़ाना या धरना- भी कहते है। (४) बारहखपी लिखते समय वह स्वर शिरोधार्य करना। सादर स्वीकार करना । उ०—सम आयसु तुम सूचक रेखा जो अक्षर के ऊपर या आगे-पीछे लगाई जाती । माथे धरो। छल बल करि मम कारज करौ ।—सूर । है। (५) किसी चीज़ का कोई निश्रित छोटा माग। (६)। माथे टीका होना किसी प्रकार की विशेषता या अधिकता होना।