पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४२८

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माधषक २७१९ माध्यमिक वैशाख मास । उ-फियो गवन जनु दिननाथ उत्तर (४) पांचाली रीति के अंतर्गत काम्य का एक गुण जिसके सन साधु माधव लिये ।-तुलप्पी । (३) वसंत ऋतु । द्वारा चित्त बहुत ही प्रसन्न होता है। यह ऐगार, करुण (४) एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में जगण और शांत रस में ही अधिक होता है। ऐसी रचना में होते है। इसी का दूसरा नाम 'मुक्तहरा है। (५) एक राग प्राय: द, , र, और ण नहीं रहते; क्योंकि इनसे जो भैरव राग के आठ पुत्रों में से एक माना जाता है। माधुर्य का नाश होना माना जाता है। "उपनागरिका" (६) एक प्रकार का संकर राग जो मल्लार, बिलावल और वृत्ति में यह गुण अधिकता से होता है। (५) साविक नायक नट नारायण को मिलाकर बनाया गया है। (७) मधूक : का एक गुण । बिना किसी प्रकार के श्रृंगार आदि के ही वृक्ष । महुआ। (0) काला उर्द। नायक का सुदर जान पड़ना। (६) वाक्य में एक से अधिक माधवक-संज्ञा पुं॰ [सं०] महुए की शराव । अर्थों का होना । वाक्य का श्लेष। माधधिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] माधवी लता। माधुर्य-प्रधान-संज्ञा पुं० [सं० ] गाने का एक प्रकार । वह गाना माधवी-संशा पुं० [सं०1 (9) एक प्रसिद्ध लता जिसमें इसी जिपमें माधुर्य का अधिक ध्यान रखा जाय और उसके शुद्ध नाम के प्रसिद्ध सुगंधित फूल लगते हैं। यह चमेली का : एक भेद है। पैथक के अनुसार यह कटु; तिक्त, कषाय, । माधक-संज्ञा पुं० [सं०] मनु के अनुसार एक वर्ण संकर जाति मधुर, शीतल, लघु और पित्त, खांसी, ण, दाह आदि का नाम । इस जाति के लोग मधुर शम्दों में लोगों की की नाशक मानी जाती है । (२) ओनव जाति की एक प्रशंसा करते हैं। इसीलिए ये "माधूक" कहलाते हैं। कुछ रागिनी जिसमें गांधार और धैवत वर्जित है। (३) सवैया लोग “धन्दी" को ही "माधूक" मानते है। द का एक भेद। (४) एक प्रकार की शराय । (५) माधैया*-संज्ञा पुं० दे० "माधव"। उ.--हरि हित मेरी तुलसी । (६) दुर्गा । (७) माधव की पत्नी । (८) कुटनी।। माधैया । देहरी पढ़स परत गिरि गिरि कर पालव जो गहन (९) शहद की चीनी। हैरी मैया । —सूर । माधवीलता-संशा स्त्री० [सं०] माधवी नामक सुगंधित फूलों की | माधो-संज्ञा पुं० सं० माधव ) (1) श्रीकृष्ण । उ०—(क) जब लता वि. दे. "माधर्वा (१)"। माधो होइ जात सकल तनु राधा बिरह दहै ।----सूर। (ग्व) माधवोभव-संशा पुं० [सं०] खिरनी का पेड़ । शीश नाद कर जोरि कह्यो तब नारद पभा पहेय । तरक्षण माधी-संशा पुं० [देश॰] भैरव राग के एक पुत्र का नाम । (संदिग्ध) भीम धनंजय माधो धन्य द्विजन को भेस ।-सूर । (२) माधुक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) मैत्रेयक नाम की वर्ण संकर जाति । श्री रामचंद्रजी। उ०-आधो पल माधो जू के देवे दिन (२) महुए की शराब। सोई शशि सीता को बदन कहूँ होत दुखदाई है।--केशव माधुपार्किक-संज्ञा पुं० [सं०] वह पदार्थ जो मधुपर्क देने के माधौ-संशा पुं० दे० "माधव"। समय दिया जाता है। | माध्यंदिन-संश पु० [सं० ] दिन का मध्य भाग। मध्याह्न। माधुर-संज्ञा पुं० [सं० ] मल्लिका । चमेली। दोपहर। माधुरई*-संज्ञा स्त्री० [सं० माधुरी ] मधुरता । मिठास । उ०- माध्यंदिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] शुक्ल यजुर्वेद की एक शाखा __एअलि या बलि के अधरानि में आनि मद्री कछु माधुरई का नाम । सी।-पनाकर माध्यंदिनीय-संज्ञा पुं० [सं० ] नारायण । परमेश्वर । माधुरता*-संज्ञा स्त्री० [सं० मधुरता ] मोठापन । मिठास। माध्यम-वि० [सं०] मध्य का । जो मध्य में हो। बीचवाया। उ०-जिती चारुता कोमलता सुकुमारता माधुरता अधरा संज्ञा पुं० वह जिसके द्वारा कोई कार्य संपन्न हो। कार्यसिद्धि का उपाय या साधन । माधुरिया*--संज्ञा स्त्री० दे० "माधुरी"। उ०-लक्षण को घकसै : विशेष--इस अर्थ में इस क्षम्द का प्रयोग बहुत हाल में होने कछु धाखि सुभाखि कै माधुरिया अधिकाई ।-रघुराज । लगा है। माधुरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] () मिठास । (२) माधुर्य । शोभा। माध्यमिक-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) बौद्धों का एक भेद । इस वर्ग सुदरता। उ०-(क) भायप भलि चहुँ बंधु की जल माधुरी के बौद्धों का विश्वास है कि पय पदार्थ शून्य से उत्पन्न सुवास ।-तुलसी । (ख) रामचंद्र की देखि माधुरी दर्पण होते हैं और अंत में शून्य हो जाते हैं। बीच में जो कुछ देख दिखा। सूर । (३) मय । शराय । प्रतीत होता है, वह केवल उसी समय तक रहता है; पश्चात् माधुर्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मधुर होने का भाव । मधुरता। सब शून्य हो जाता है। जैसे 'चट' उत्पत्ति के पूर्व न तो (२) सुदरता ।लावण्य । (३) मिठाई। मिठास । मीठापन।। था और न टूटने के पयात् ही रहता है। बीच में जो ज्ञान