पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फोट फोटोग्राफी - क्रि० प्र०-लेना। फोट-संज्ञा पुं० दे० "स्फोट"। फोटो-संज्ञा पुं० [अ० ] फोटोग्राफी के यंत्र द्वारा उतारा हुआ चित्र । छायाचित्र । प्रतिधिय । क्रि० प्र०--उतारना ।-खींचना । मुहा०-फोटो लेना-फोटोग्राफी के यंत्र द्वारा किमी का फोटो वा ___ छायाचित्र ग्वींचन।। फोटोग्राफ-संज्ञा पुं॰ [ अं० ] फोटो । छायाचित्र । दे. "फोटो"। फोटोग्राफर-संज्ञा पुं० [सं०] फोटोग्राफी का काम करनेवाला ।। फोटोग्राफी-संज्ञा स्त्री० [ अं०] प्रकाश की किरनों द्वारा रासा- यनिक पदार्थों में उत्पन्न कुछ परिवर्तनों के सहारे वस्तुओं की आकृति या प्रतिकृति उतारने की क्रिया। विशेष-प्रकाश की सहायता से चित्र उतारने की कला वा युक्ति। यह काम संदफ के आकार के एक पत्र के सहारे से किया जाता है जिग्मे केमरा कहते हैं। इसके आगे की और बीच में गोल. लंबा चोंगा सा निकला रहता है जिसमें एक गोल उन्नतोदर शीशा लगा रहता है जिसे लेंस कहते हैं। दूसरी ओर एक शीशा और एक किवाद : होता है जो खटके से खुलता और बंद होता है। केमरे के . श्रीच का भाग भाथी की तरह होता है जो यथेच्छ घटाया और बढ़ाया जा सकता है। लेंस के सामने चोंगे के बंद करने का ढक्कन होता है। कमरे के भीतर अँधेरा रहता है और उसमें सिवाय आगे से लेंग की ओर से और किसी ओर से प्रकाश आने का मार्ग नहीं होता है। जिस वस्तु की प्रतिकृति लेनी होती है वह सामने ऐसे स्थान पर होता है जहाँ उस पर सूर्य का प्रकाश अच्छे प्रकार पड़ता हो। उसके सामने कुछ दूर पर केमरे का मुँह उसकी ओर करके रखते हैं। फिर लेंस का ढक्कन खोलकर चित्र लेनेवाला दूसरी ओर के द्वार को खोलकर सिर पर काला कपड़ा (जिसमें कहीं से प्रकाश न आवे) डालकर देखता है कि उस वस्तु की प्रतिकृति ठीक दिखाई देती है कि नहीं। इसे फोकस लेना कहते हैं। इसके बाद लेंस के सामने के ठक्कन को फिर बंद कर देते हैं और दूसरी ओर लकड़ी के । यंद चौकठे में रखे प्लेट को, जिसमें रासायनिक पदार्थ लगे रहते हैं, बड़ी सावधानी से, जिसमें प्रकाश उसे स्पर्श न करने पाए लगा देते है, फिर लेंस के मुँह को थोड़ी देर तक के लिए खोल देते हैं जिसमें प्लेट पर उस पदार्थ की। छाया अकित हो जाय । ढक्कन फिर बंद कर दिया जाता है और अंकित प्लेट बड़ी सावधानी से बंद चौखटे में बंद करके रख दिया जाता है । उस प्लेट को अँधेरी कोठरी में ले जाकर लाल लालटेन के प्रकाश में रासायनिक मिश्रणों में कई बार डुबाते है और अंत में फिटकरी के पानी में डालकर ठंडे पानी की धार उस पर गिराते हैं। इस क्रिया से प्लेट काले रंग का हो जाता है और उसपर पदार्थ अकित दिखाई पड़ने लगता है, इसे निगेटिव कहते है। इसी निगेटिव पर सपायनिक पदार्थ लगे हुए कागज़ के टुकड़ों को अंधेरी कोठरी के भीतर सटा कर प्रकाश दिखाते और रासायनिक मिश्रणों में धोते हैं। इस प्रकार कागज़ पर प्रतिकृति अफित हो जाती है। इसी को फोटो कहते हैं। प्रकाश के प्रभाव से वस्तुओं के रंगों में परिवर्तन होता है। इस बात का कुछ कुछ शान लोगों को पहले से था। चमड़ा सिझाते समय सूर्य का प्रकाश पाकर चमड़े का रंग बदलता हुआ बहुत से लोग देखते थे । सोलहवीं शता. ब्दी के उत्तरार्द्ध में इटली के एक मनुष्य को, जिसका नाम पोर्टी था, वृक्ष के सघन पत्तों में से होकर सूर्य की किरणों का प्रकाश छनते देवकर उत्सुकत्ता हुई। उसने अपने घर की कोठरी की दीवार में एक छोटा सा छेद किया। फिर बाहर की ओर दीपक जलाकर दूसरी ओर एक पदार्थ टाँगकर परीक्षा करने लगा। दीपशिखा उसे पर्ने पर उलटी लटकी दिखाई पड़ी। वह इस प्रकार दूसरे पदार्थों की प्रतिकृतियाँ भी पर्दे पर लाने का यत करने लगा। सुबीते के लिए उसने एक नतोदर शीशा उस छेद में लगा दिया। उसी समय फ्रांस देश के एक और वैज्ञानिक ने परीक्षा करके नाइट्रेट आफ सिलबर ( Nitrate of silver ) नामक रासायनिक मिश्रण बनाया जो यद्यपि सफेद होता है पर सूर्य की किरन पड़ते ही धीरे धीरे काला होने लगता है। सन् १७२० में स्विजरलैंड के एक विद्वान चार्ल्स ने अँधेरी कोठरी में नाइट्रेट आफ सिलवर के सहारे से चित्र बनाने की चेष्टा की। चित्र तो खिंच गया पर स्थायी न हो सका । बहुत से वैज्ञानिक चित्र को स्थायी करने की चेष्टा करते रहे। अंत को सौ बरस पीछे, एमन्योपस नामक एक वैज्ञानिक की सहायता से उगर साहेब ने पार के रासायनिक मिश्रण द्वारा चित्र को स्थायी करने में सफलता प्राप्त की। डगर ने चित्र को पहले पोटास प्रोमाइड में डया डुबा कर देखा पर अंत में उसे हाइपो सल्फाइट सोडा द्वारा पूरी सफलता हुई । इसी समय एक अंग्रेज ने गैलिक एडिस और नाइड्रेट आफ सिलवर की सहायता से कागज़ पर चित्र छापने की विधि निकाली। धीरे धीरे यह विद्या उन्नति करती गई और सन् १८५० में प्लेट पर चित्र लिए जाने लगे। १८७२ में रा. मैडाक्ष ने जेलेटीन की सहायता से प्लेट बनाने की प्रथा जारी की जो उत्तरोत्तर उमस होकर अय तक प्रचलित है। अब आई प्लेट का बहुत कम व्यवहार होता है, प्राय: सब जगह शुष्क प्लेट काम में लाया जाता है।