पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४३०

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मानकलह २७२१ मानव मानकलह-संशा पुं० [सं०] (1) ईर्ष्या । डाह। (२) प्रतिद्वंद्विता। जैसे,---उनका गाना-बजाना अकले अकछे उस्ताद मानते थे। चढ़ा-ऊपरी । (३) दक्ष समझना । पारंगत समझना । उस्ताद समझना । मानक्रीड़ा-संज्ञा स्त्री० [सं०] सूदन के अनुसार एक प्रकार का (५) धार्मिक दृष्टि से श्रद्धा या विश्वास करना । जैसे,- छंद । उ०-दन सुत चाइकै । भरतपुर जाइक। थपितु शिव को माननेवाले शव कहलाते हैं। (५) देवता आदि विरदार कौं । जतन पितरार की।-सूदन । की भेंट करने का प्रण करना । चढ़ावा चढ़ाने आदि का छ मानगृह-संगा पुं० [सं.] रूठकर बैठने का स्थान । कोरभवन । संकल्प करना । मनन करना । जैसे,--11 के लड्डू गणेश- उ.-बैठी जाय एकांत भवन में जहाँ मानगृह चार ।-- जी को मानो तो इम्तहान में पास हो जाओगे। (६) ध्यान सूर। में लाना। समझना। जैसे,--यह तो किपी को कुछ भी नहीं मानग्रंथि-संशा स्त्री० [सं०] अपराध । जुर्म । मानता। (७) स्वीकृत करके अनुकूल कार्य करना । जैसे,- मानचित्र-संवा पुं० [सं०] किमी स्थान का बना हुआ नकशा । शिवरात्रि किया ने आज मानी है और किवी ने कल। (८) जैगे, एशिया का मानचित्र । फिी पर बहुत अनुरक्त होना । किसी के साथ बहुत प्रेम मानज-संक्षा पुं० [सं०] क्रोध । करना । ( बाजारू) वि० मान में उत्पन्न । माननीय-वि० [सं०] [बी० माननीया ) जो मान करने के योग्य मानतरु-संज्ञा पुं० [सं० ] खेतपापड़ा। हो। पूजनीय । आदरणीय । मान्य । मानता-संज्ञा स्त्री० [हिं० मानना+ता (प्रत्य॰)] मनौती । मनत। मानपात-सा पु० दे० "मानकंद"। क्रि० प्र०-उतारना । —चढ़ाना।-मानना। मानभाव-संका पुं० [सं०] चोचला । नखरा । मानदंड-संशा पुं० [सं०] वह डंडा या रू.कढ़ी जिसमे कोई मानमंदिर-संक्षा पुं० [सं०] (1) स्त्रियां के रूठकर बैठने का एकांत चीज़ नापी जाय। स्थान । (२) यह स्थान जिसमें ग्रहों आदि का वेध करने मानद-संज्ञा पुं० [ स० ] विष्णु। के यंत्र तथा सामग्री हो । बेधशाला । मानम-संशा पुं० [सं० ] मेमल का पेड़ ।

मानमनौती-संज्ञा स्त्री० [हिं० मान+मनीता ] (१) मानता।

मानधन-संश। पुं० [सं०] वह जो बहुत यदा अभिमानी हो। मन्नत । मनौती । (२) पारस्परिक प्रेम । (३) रूठने और मानधाता-संशा गुं० दे० "मांधाता"। मनाने की क्रिया। मानधानिका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] ककड़ी। मानमरर-संज्ञा स्त्री० [हिं० मान-मगेर । मन-मुटाव । रंजिश । मानना-कि० अ० [सं० मानन 1 (1) अंगीकार करना । स्वीकार उ.-राधे सुजान इत चित दैहित में कत काजतु मानमरोर करना । मंजूर करना । जैसे,—(क) हम मानते हैं कि आप है।-धनानंद। उगी बुराई नहीं कर रहे हैं। (ख) मान न मान, मैं तेरा मानमान्यता-संशा स्त्री० सं०] इज्जत । प्रतिष्ठा । मेहमान । (कहा०) (२) कल्पना करना । फर्ज करना। मानमंचन-मशः पुं० [सं०] साहित्य के अनुसार रूठे हुए प्रिय समझना । जैसे,—मान लीजिए कि हम लोग वहाँ न जा को मनाना जो नीचे लिग्ते छ: उपायों के द्वारा बतलाया सके तो फिर क्या होगा ? (३) ध्यान में लाना। समझना। गया है-(१) साम, (२) दाम, (३) भेद, (४) प्रणाति, जैसे, बुरा मानना । भला मानना । (५) उपेक्षा, और (६) प्रसंग-विश्वंय । संयोग क्रि०-जाना 1--लेना। मानरंध्रा-मंशा स्त्री० [सं०] जल-घड़ी जिसका व्यवहार प्राचीन (४) ठॉक मार्ग पर आना । अनुकूल होना । जैसे,-यह . काल में समय जानने के लिए होता था। लड़का सीधी तरह से नहीं मानेगा । विशप-इसमें एक छोटा कटोरा होता था जिसके पंदे में एक संयो० क्रि०-जाना। छोटा सा छेद होता था। यह कटोरा किसी बड़े जल-पात्र क्रि० स० (१) कोई बात स्वीकृत करना । कुछ मंजूर करना। में छोड़ दिया जाता था और उस छेद के द्वारा धीरे धीरे जैसे, आप किनी का कहना ही नहीं मानते। (२) किसी कटोरे में पानी भरने लगता था। वह कटोरा ठीक एक दंड को पूज्य, आदरणीय या योग्य समझना । किमी के घड़प्पन या घड़ी में भर जाता था और पानी में डूब जाता था। या लियाकत का कायल होना । आदर करना । जैसे, फिर उसे निकालकर खाली करके उसी प्रकार पानी में छोड़ (क) उन महात्मा को यहाँ के बहुत से लोग मानते हैं। देते थे और इस प्रकार समय का निरूपण करते थे। (ख) लड़ाई झगड़ा लगाने में मैं तुम्हें मानता हूँ। मानव-संका पुं० [सं०] (1) मनु से उत्पन्न, मनुष्य । आदमी । विशेष--कभी कभी कर्ता को छोड़कर उसके गुण या कार्य के मनुज । (२) १४ मात्राओं के छेदों को संज्ञा। इनके ६.. संबंध में भी इस शब्द का इस अर्थ में प्रयोग होता है।