पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४३१

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मानवक २७२२ मानसिक मानवक-संज्ञा पुं० [सं० मानव ] (१) छोटे कद का आदमी। कि० वि० मन के द्वारा । उ.-रहै गंडकी सुत मुख धीचा । वामन । बौना । (२) सुच्छ आदमी । पूज्यो मानस शिर करि नीचा ।-विश्राम । मानवत-संा पुं० [सं० 1 [श्री. मानवती ] वह जो मान करता मानसचारी-संशा पुं० [सं० मानसचारिन् । एक प्रकार का हंस हो । रूठा हुआ। __ जो मान सरोवर में होता है। मानवपति-मंशा पुं० [सं० ] राजा। मानस तीर्थ-संज्ञा पुं० [सं०] वह मन जो राग द्वेष आदि से मानवर्जित-वि० [सं०] नीच । अप्रतिष्ठित । नितांत रहित हो गया हो। मानवत्तिक-संज्ञा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक प्राचीन देश का मानसपुत्र-संशा पुं० [सं०] पुराणानुसार वह पुत्र या संतान नाम जो पूर्व दिशा में था। जैनों के हरिवंश के अनुसार जिसकी उत्पत्ति इच्छामात्र से ही हुई हो। जैग, सनक, यह देश वर्तमान मानभूमि है। सनंदन आदि अह्मा के मानस-पुत्र हैं। मानव शास्त्र-संज्ञा पुं० [सं० ] वह शास्त्र जिसमें मानव जाति की मानस पूजा-संका मी० [सं०] पूजा के दो प्रकारों में से एक। उत्पत्ति और विकास आदि का विवेचन होता है। इस शास्त्र वह पूजा जो मन ही मन की जाय और जिसमें अर्य, में यह भी जाना जाता है कि संसार के भिन्न भिन्न भागों।। पाद्य आदि बाह्य उपकरणों की आवश्यकता न रहे। में मनुष्य की कितनी जातियाँ है, सृष्टि के अन्यान्य जीवों मानसर-संचा पुं० दे. "मान सरोवर"। में मनुष्य का क्या स्थान है, मनुष्यों की सृष्टि कब और मान सरोवर-संज्ञा पुं० [सं० मानम+सरोवर ] हिमालय के कैग हुई, उसकी सभ्यता का कैमे विकास हुआ, इत्यादि उत्तर की एक प्रसिद्ध बड़ी झील जिसके विषय में यह इत्यादि। प्रसिद्ध है कि ब्रह्मा ने अपनी इच्छामात्र से ही इसका मानवाचल-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का निर्माण किया था। इस सरोवर का जल बहुत ही सुदर, नाम। स्वच्छ और गुणकारी है तथा इसके चारों ओर की प्राकृतिक मानवास्त्र-संक्षा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का शोभा बहुत ही अदभुत है। हमारे यहाँ के प्राचीन ऋषियों अस्त्र । ने इसके आस-पास की भूमि को स्वर्ग कहा है। मानवी-सं० मी० [सं० ] (1) स्त्री। नारी। औरत । (२) मानस व्रत-संज्ञा पुं० [सं० ] अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य पुराणानुसार स्वायंभुव मनु की कन्या का नाम । आदि प्रत। वि० [सं० मानवीय ] मानव-संवैधी । मनुष्य का। मानस शास्त्र-संज्ञा पुं० [सं० ] वह शास्त्र जिसमें इस बात का मानवीय-वि० [सं०] मानव संबंधी । मनुष्य का । विवेचन होता है कि मन किस प्रकार कार्य करता है और मानवेंद्र, मानवेश-संज्ञा पुं० [मं० ] राजा । उसकी धृत्तियाँ किस प्रकार उत्पन्न होती है। मनोविज्ञान । भानव्य-संगा . दे. "मानव"। मानस संन्यासी-संज्ञा पुं० [सं०] दशनामी संन्यात्रियों के मानस-संशा पुं० [सं०] (1) मन । हृदय । उ०-मांगत अंतर्गत एक प्रकार के संन्यासी। ऐसे संन्यानी मन में सच्चा तुलम्पिदाय कर जोरे । यसहिं राम सिय मानस मोरे।- वैराग्य उत्पन्न होने पर गृहस्थाश्रम का त्याग करके जंगल. तुलमी। (२) मान मरांवर । उ०—ोष महामारी परतोष में जा रहते हैं और वहीं तपस्या करते हैं। ये लोग गैरिक महनारी दुनी देखिये दुबारी मुनि मानस मरालि के। वस्त्र आदि नहीं धारण करते । (३) कामदेव । (४) संकल्प-विकल्प । (५) एक नाग का मानस सर-संक्षा पुं० [सं०] मानस सरोवर । मान सरोवर । नाम । (६) शालयली द्वीप के एक वर्ष का नाम । (७) मानस हंस-संज्ञा पुं० [१०] एक वृत्त का नाम । इसके प्रत्येक पुष्कर द्वीप के एक पर्वत का नाम । (८) मनुष्य । आदमी। चरण में 'स ज ज भ र' होता है। इसका दृपरा नाम उ०-कोमल मृणालका सी मल्लिका की मालिका सी मानहस या रणहंस है। बालिका जुडारी माड मानस कै पशु है। केशव । (९) मानसा-संहा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार एक नदी का नाम । दूत । घर। 30-(क) मानस पठाए सुधि लाए साँच : कहते है कि तृणविदु नामक एक ऋषि इसे मान सरोवर आँच लगी करो साष्टांग बात मानी भाग फले हैं। -प्रिया से लाए थे। दास । (ग्व) दैकै बहु भाँति सों पठाए संग मानसहू आवो मानसालय-संज्ञा पुं० [सं०] हंग। पहुँचाइ तब तुम पर रीझिये ।-प्रियादास । | मानसिक-वि० [सं०](१) मन की कल्पना से उत्पन्न । (२) मन वि० (१) मन से उत्पन्न । मनोभव । (२) मन का विचारा संबंधी। मन का । जैसे, मानसिक कष्ट । मानसिक हुआ । उ.---कलि कर एक पुनीत प्रतापा। मानस पुन्य चिंता। होइ नहिं पापा ।-सुलसी। संवा पुं० [सं०] विष्णु।