पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४३२

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मानसी २७२३ मानिक मानसी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) मानस पूजा । वह पूजा जो मन * कि० स० [सं० मान अथवा हिं० मापना] (1) नाना। ही मन की जाय । उ.---आभरण नाम हरि साधु-सेवा कर्ण तौलना । उ.---देखि विवरु सुधि पाय गीध से मवनि अपनो फूल मानसी सुनथ संग अजन बनाइये।-प्रियादास । घलु मायो।-तुलपी । (२) जाँचना । परीक्षा करना। (२) पुराणानुसार एक विद्या देवी का नाम ।

  • कि० अ० दे० "समाना" या "अमाना"। उ.--(क)

वि. मन का। मन में उत्पन्न उ.-मानसी सरूप में इतनी वचन श्रवण सुनि हरप्पो फूल्यो अंग न मात । लै लै अनदास जबै करत बयार नाभा मधुर संभार सों। धरन रेनु निज प्रभु की रिपु के शोणित न्हात ।-सूर । प्रियादाम। (ख) माई कहाँ यह माइगी दीपति जो दिन दो यहि भाँति मानसी गंगा-संक्षा स्त्री० [सं०] गोवर्धन पर्वत के पास के एक | बदेगी।-केशव । सरोवर का नाम । मानिद-वि० [ 10 ] समान । तुल्य । सश। जैसे,-वे भी मानसूत्र-संज्ञा पुं० [सं० ] करधनी । आपके ही मानिंद शरीफ हैं। मानसून-संज्ञा पुं॰ [ अं० मि० अ० मौसिम } (1) एक प्रकार की मानिक-संज्ञा पुं० [सं० माणिक्य ] एक मणि का नाम । यह लाल वायु जो भारतीय महासागर में अप्रैल से अक्तूबर मास तक रंग का होता है और हीरे को छोड़कर सबसे कड़ा बराबर दक्षिण-पश्चिम के कोण से चलती है और अक्तूबर से पत्थर है। रासायनिक विश्लेषण द्वारा मानिक में दो भाग अप्रैल तक उत्तर-पूर्व के कोण से चलती है। अप्रैल से अक्त अल्यूमिनम और तीन भाग आश्विजन का पाया जाता है, बर तक जो हवा चलती है, प्राय: उम्मी के द्वारा भारत में जिससे रसायन-शास्त्रियों के मत से यह कुरंट की जाति वर्षा भी हुआ करती है। का पत्थर प्रतीत होता है। इसमें एक और विशेषता यह क्रि० प्र०-आना । --उठना । दवना। भी है कि बहुत अधिक तार से सुहागे के योग से यह काँच (२) बह वायु जो महादेशों और महाद्वीपों तथा उनके आस की भाँति गल जाता है और गलने पर इसमें कोई रंग नहीं पाम के समुद्रों में पड़नेवाले वातावरण संबंधी पारस्परिक रह जाता । आजकल के रासायनिकों ने काँच में नकली अंतर के कारण उत्पन्न होती है और जो प्रायः छ: मास तक मानिक बनाया है जो अपली मानिक से बहुत कुछ मिलता एक निश्चित दिशा में और छ: मास तक उसकी विपरीत जुलता होता है। मानिक पत्थर गहरे लाल रंग से लेकर दिशा में बहती है। गुलाबी रंग और नारंगी से लेकर बैंगनी रंग तक के मिलते मानहंस-संशा पुं० [सं० ] एक वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण है। मानिक की दो प्रधान जातियाँ है.-नरम नर्म और में 'सज जभर होते हैं । इसके अन्य नाम 'मनहंस' 'रण मानिक । नरम चुनी का विश्लेषण करने से मैग्नेशियम, हंस' और 'मानमहस' भी है। अल्यूमिनम और आक्सिजन मिलते हैं। उस पर यदि मानिक मानहानि-संशा स्त्री० [ सं . ] अप्रतिष्ठा । अपमान । बेइज्जती। से रगड़ा जाय, तो लकीर पड़ जाती है। अगरत जी के मत हतक इज्जत । से मानिक के तीन प्रधान भेद है-पराग, कुरुविंद आर मानहुँ *-अव्य० दे. "मानों"। सौगंधिक । कमल पुष के समान रंगवाला पद्मराग, गाद माना-संवा पुं० [ इव. ] एक प्रकार का मीठा निर्यास जो इटली रक्तवर्ण सा ईषत् नील वर्ण पौगंधिक और टेसू के फूल के रंग और एशिया माइनर आदि देशों के कुछ विशिष्ट वृक्षों में का कुरुविद कहलाता है। इनमें सिंहल में पाराग, फालपुर से छेव लगाकर निकाला जाता है; अथवा कभी कभी उन और अंध्र में कुरुविद और तुंकर में सौगंधिक उत्पन होता घृक्षों पर कुछ कीड़ों आदि की कई क्रियाओं से उत्पन्न है। मततिर से नीलगंधिक नामक एक और जाति का होता है और जो पीछे से कई रासायनिक क्रियाओं से शुद्ध मानिक होता है जो नीलापन लिए रक्त वर्ण या लाखी रंग करके औषधि के रूप में काम में लाया जाता है। भारत के का माना गया है। इसकी खाने बरसा, श्याम, लंका, मध्य कई प्रकार के बाँसों तथा दूसरे अनेक वृक्षों पर भी यह कभी एशिया, यूरोप, आस्ट्रेलिया आदि अनेक भूभागों में पाई कभी पाया जाता है। यह रेचक होता है और इसके व्यव- । जाती है। जिस मानिक में चिह्न नहीं होने और चमक हार के उपरांत मनुष्य विशेष निर्वल नहीं होता। देखने में। अधिक होती है, वह उत्तम माना जाता और अधिक यह पीले रंग का, पारदर्शी और हलका होता है और प्रायः ! मूल्यवान् होता है। वैधक मैं मानिक को मधुर, निग्ध बहुत महंगा मिलता है। और वात-पित्त-नाशक लिखा है। सिंज्ञा पुं० [सं० मान ] अमआदि नापने का एक पात्र जिसमें पर्या०-पराग । कुरुविद । शोणरत्न । सौगंधिक । लौहि- पाव भर अन आता है । यह लकड़ी, मिट्टी या धातु का तक । तरुण । भंगारी । रविवक । बना होता है। इससे तरल पदार्थ भी नापे जाते है। संशा पुं० [सं०] आठ पल का एक मान ।