पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४३३

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nनिकखंभ २७२४ मान्य स्थान निकखंभ-संज्ञा पुं० । हिं, मानिक+खंभा (6) वह ग्यूँ टा जो अनुसार प्रमाण के दो भेदों में से एक । इसके तीन उपभेद कातर के किनारे गड़ा रहता है और जिसमें धुचे को रस्सी है-लिखित, भुक्ति और साक्षी । से बांधकर जाठ के सिरे पर अटकाते हैं। मरवम । (२) मानुषक-वि० [सं०] मनुष्य-संबंधी । मनुष्य का। वह खंभा जो विवाह में मंडप के बीच में गाड़ा जाता है। मानुषता-संज्ञा स्त्री० [सं०] मनुष्य का भाव या धर्म (३) मालखंभ । मलखम । मनुष्यता । आदमीयत । गनिकचंदी-सज्ञा स्त्री० [हिं० भाभिवाचंद ] साधारण छोटी सुपारी। मानुषिक-वि० [सं० ] मनुष-संबंधी । मनुष्य का । गनिफजाह-संज्ञा पु. [हिं० मानिया+जोड । एक प्रकार का मानुषिघुद्ध-संज्ञा पुं० स०] मनुष्य शरीरधारी बुद्ध । जैसे, गौतम बमा बगुला जिसकी चोंच और टॉग लदा होती हैं। बुद्ध आदि । ( ये ध्यानी बुन्द्र से पृथक होते हैं). गनिकजोर-संज्ञा पुं० दे. “मानिफजोड़" । मानुपी-संत्रा स्त्री० [सं०] (1) खी। औरत । (२) तीन प्रकार मानित-संज्ञा स्त्री० [हि., मानिक रेत मानिक का चूरा जिसम्म की चिकित्साओं में से एक । मनुष्यों के उपयुक्त चिकिया। गहने साफ किए जाते हैं और उन पर चाकलाई जाती है। (शेप दो चिकित्साएँ आसुरी और देवी कहलाती हैं।) गनिका-संशा सी० [सं०] (१) मद्य । (२) आठ पल या साठ वि० [सं० मानुषीय ] मनुष्य-संबंधी। मनुष्य का । उ.- तोले का एक मान । दूरि जब लं, जरा रोगह चलत द्री भाई । आपनो कल्याण मानिटर-संज्ञा पुं० [अं०] पाठशाला की कक्षा में वह प्रधान करि ले मानुषी तनु पाई।- सूर ।। छात्र जो अन्य छात्रों पर कुछ विशिष्ट अधिकार रखता हो। मानुषीय-वि० [सं०] मनुष्य संबंधी । मनुष्य का । गानित-वि० सं० ] सम्मानित । प्रतिष्ठिन । आहत । मानुप्य-वि० [सं०] मनुष्य संबंधी । मनुष्य का गानिता-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मानिव । सम्मान । आदर। मानुष्यफ--वि० [सं.] मनुष्य संबंधी । मनुष्य का । (२) गौरव । (३) अहंकार । गर्व। मानुस-संज्ञा पुं० सं० मानुष ] मनप्य । आदम।। उ.-का मानिनी-वि० स्त्री० [सं०] (१) मानवता । गर्ववती । अभिमान निचिंत रे कानुस अपनी चिन्ता आछ । लेहु सग होइ अग- युक्त । (२) मान करने वालो । रुष्टा। मन पुनि पछतासि न पाछ । --जायसी संज्ञा स्त्री साहित्य में वह नायिका जो नायक के दोष को यौ०-भला मानुस । देखकर उससे रूठ गई हो। उ०मान करत बरजत नहीं मान-संशा पुं० अ० माना ] अर्थ । मतलब । आशय । उलट दिवावत मोह । करी रिमोंही जायेंगी सहज हसींहीं मानों-अव्य [ हिं. मानना ] जैसे । गोया । उ०—(क) मयन भौंह । मदन पुर दहन गहन जानि आनि के पर्व को सारु धनुप पानी-वि० [सं० मानिन् ] [ स्त्री० मानिना] (1) अहंकारी। गढ़ायो है। जनक सदसि जहाँ भले भले भूमिपाल कियो घमंडी। (२) सम्मानित । गौरवान्वित । (३) मनोयोगी । बलहीन बल आफ्नो बढ़ायो है। कुलिस कठोर कूर्म पीठ ते सशा पु० () सिंह । (२) साहित्य में वह नायक जो कठिन अति हठनि पिनाक काई चपरि चढ़ायो है। सुलसी नायिका में अपमानित होकर रूठ गया हो। सो राम के सरोज पानि परसत टूट्यो मानों बारे ते पुरारि संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) कुंभ । घड़ा । (२) प्राचीन काल ही पढ़ायो है।- तुलसी । (ख) तिलक भाल पर परम का एक प्रकार का मान-पात्र जिसमें दो अंजुली चा माठ मनोहर गोरोचन की दीन्हों। मानों तीन लोक की शोभा पल आता था । (३) की के ऊपर के पाट में लगी हुई अधिक उदय सो कान्हों।-सूर । (ग) प्रिय पठ्यो मानों यह लकदी जिसके बीच के छेद में कीली रहती है। जमा सखि सुजान । जगभूषण को भूषण निधान । निज आई हम न होने पर यह लकड़ी ऊपर के पाट के छेद में जड़ी रहती। को भीख देन । यह किधों हमारो भस्म लेन । केशव । है। (५) कुदाल, वसूले आदि का वह बेद जिसमें बंट मानांखी-संज्ञा स्त्री० [ देश एक प्रकार की चिड़िया। लगाई जाती है। (५) किसी चीज़ में बनाया हआ छेद मानौ*-अन्य दे० "मानों"। जिसमें कुछ जदा जाय । (६) अन्न का एक मान जो मोलह मान्य-वि० । स०] [स्त्री. मान्या ] (1) मानने योग्य । मान- सेर का होता है । (७) साधारण छेद । नीय । (२) आदर के योग्य । सम्मान के योग्य । पूजनीय । संज्ञा . [ #० ] (1) अर्थ। मतलब । तापर्य। (२) । पूज्य । (३) प्रार्थनीया तत्व । रहस्य । (३) प्रयोजन । (४) हेतु । कारण । संज्ञा पुं० (१) विष्णु । (२) शिव । महादेव । (३) मैत्रावरुण । मानुख*-संशा पु० दे. "मनुष्य" । संज्ञा पुं० दे. "मान" । मानुष-वि० [सं०] [स्त्री० भानुपा ] मनुष्य संबंधी। मनुष्य का। मान्य स्थान-संक्षा पुं० [सं०] आदर या मान का कारण । सक्षा पुं० [सं० ] (1) मनुष्य । (२) याज्ञवल्क्य स्मृति के विशेष-मनु जी ने पांच मान्यस्यान लिखे है-वित्त, बंधु,