पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४

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फोड़ना फोनोग्राफ फोड़ना-क्रि० स० [सं० स्फोटन, प्रा० फोहन ] (1) स्वरी या ही साथ चले थे तुम इन्हें कहाँ कोड कर ले धले ? (९) करारी वस्तुओं को दवाव या मापात द्वारा तोड़ना। भेदभाव उत्पन्न करना । मैत्री या मेलजोल से अलग कर खरी वस्तुओं को खंड खंर करना । दरकाना। मन करना। देना । फूट डालकर अलग करना । (10) गुप्त बात सहसा विदीर्ण करना । जैसे, (क) मा फोड़ना, पने फोरना, प्रकट कर देना। एकबारगी भेद खोलना । जैसे, यात बरतन फोबना, चिमनी फोदना, पस्थर फोरना। (ख) फोड़ना, भंडाफोड़ना। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता । 30-रोवहिरानी फोड़ा-संज्ञा पुं० [सं० स्फोटक वा पिडिका, प्रा० फोड] [स्त्री० अल्प. तजै पराना । फोरहि धुरी, करहि खरिहाना ।—जायसी।। फोबिया ] एक प्रकार का शोथ या उभार जो शरीर में कहीं . संयो० कि०-डालना-देना। पर कोई दोष संचित होने से उत्पन्न होता है और जिसमें यौ०-तोड़ना फोकना। जलन और पीदा होती है तथा रक्त सड़फर पीव के रूप मुहा०-उँगलियाँ फोड़ना-उँगलियों को खींच या मोड़कर में हो जाता है। प्रण। आपसे आप होनेवाला उभरा उनके जोड़ों को खटखट बुलाना । उँगलियों चटकाना। हुआ घाव। विशेष-इस क्रिया का प्रयोग खरी या करारी वस्तुओं के विशेष-सुश्रुत के अनुसार प्रण या घाव दो प्रकार के होते हैं- लिए होता है, चमड़े, लकड़ी आदि धीमर वस्तुओं के शारीर और आगंतुक । चरकसंहिता में भी निज और आगे- लिए नहीं। सुक ये दो भेद कहे गए हैं। शारीर वा निज प्रण वह धाव (२) ऐसी वस्तुओं को आघात या दबाव से विदीर्ण करना है जो शरीर में आपसे आप भीतरी दोष के कारण उत्पन्न जिनके भीतर या तो पोला हो अथवा मुलायम या पतली होता है। इसी को फोड़ा कहते हैं। वैधक के अनुसार बात, चीज़ भरी हो। जैसे, कटहल फोड़ना, फोरा फोड़ना, पित्त, कफ या सन्निपात के दोष से ही शरीर के किसी सिर फोड़ना । उ०-सूर रहै रस अधिक कहे नहिँ गुलर स्थान पर शारीर व्रण या फोड़ा होता है। दोषों के अनुसार को सो फल कोरे।—सूर । वण के भी वातज, पित्तज, कफज तीन भेत किए गए हैं। महा०-आँख फोड़ना आँख नष्ट करना । आंख को ऐसा कर वातज व्रण करा या खुरखुरा, कृष्णवर्ण, अल्पनावयुक्त होता डालना कि उससे दिखाई न दे। है और उसमें सूई चुभने की सी पीड़ा होती है। पित्तज (३) केवल आघात या दवाव से भेदन करना । धक्के से व्रण बहुत दुर्गंधयुक्त होता है और उसमें दाह, प्यास और दरार गलकर उस पार निकल जाना । जैसे, (क) पसीने के साथ उबर भी होता है। कफज व्रण पीलापन पानी बाँध फोड़कर निकल गया। (ख) गोली दीवार लिए, गीला, चिपचिपा और कम पीडावाला होता है। फोरकर निकल गई। फोड़िया-संज्ञा पुं० [हिं० फोड़ा, वा सं० पिटिका ] छोटा फोदा । विशेष-किसी धारदार वस्तु (तलवार, तीर भाला)के फुनसी। चुभ या धंस कर उस पार होने को फोड़ना नहीं कहेंगे। फोता-संशा पुं० [फा०] (1) पटुका । कमरवंद। (२) पगड़ी। उ.-(क) पाहन फोरि गंग इक निकली चहुँ दिसि पानी सिरबंद। (३) वह रुपया जो प्रजा उस भूमि या विस के पानी । तेहि पानी दुइ परबत बुड़े दरिया लहर समानी। लिए जो उसके अधिकार या जोत में हो राजा वा जिमीदार -कबीर । (ख) ब्रह्मरंध्र फोरि जीव यों मिल्यो बिलोकि को दे। पोत । उ.-साँचो सो लिम्बधार कहावै। काया जाय । गेह चूरिज्यों चकोर चंद्र में मिल्यो उड़ाय। केशव। ग्राम मसाहत करिकै जमा बाँधि ठहरावै । मन्मथ कर कैद (४) शारीर में ऐसा विकार या दोष उत्पन्न करना जिससे अपनी में जान जहतिया लावै। माँदि मोदि खलिहान स्थान स्थान पर घाव या फोड़े हो जायें। जैसे,—पारा कोध को फोता भजन भरावै ।—सूर । (४) थैली। कोष । कभी मत खाना, शरीर फोड़ देगा। (५) जुड़ी हुई वस्तु थैला । (५) अंडकोश। के रूप में निकालना । अवयव, जोड़ या वृद्धि के रूप में | फोतेदार-संज्ञा पुं० [फा०] (8) खजांची। कोषाध्यक्ष । (२) प्रकट करना । अंकुर, कनखे, शाखा आदि निकालना। तहवीलदार । रोकड़िया । जैसे, पौधे का कनखे या शाखा फोड़ना । (६) शाखा फोनोग्राफ-संज्ञा पुं० [अ० ] एक यंत्र जिसमें पूर्व में गाए हुए के रूप में अलग होकर किसी सीध में जाना । जैसे, राग, कही हुई बातें और बजाए हुए बाजों के स्वर आदि नदी कई शाखाएँ फोरकर समुद्र में मिली है। (७) पक्ष धूदियों में भरे रहते हैं और ज्यों के स्यों सुनाई पड़ते हैं। छुपाना । एक पक्ष से अलग करके दूसरे पक्ष में कर लेना। यह संदूक के आकार का होता है। इसके भीतर चक्कर लगे जैसे,—उसने हमारे दो गवाह फोर लिये। (6) साय रहते हैं जो चाबी देने से मापसे आप घूमने लगते हैं। छुवाणा। संग में न रहने देना । जैसे, हम लोग साम | इसके बीच में एक खूटी या धुरी होती है जिसकी एक नोक