पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४०

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मारीच २७३१ मार्गव प्लेग, चेचक इत्यादि। दे. "मरी"130--(क) इति भीति और नैनीताल में अधिकता से पाया जाता है। इसकी ग्रह प्रेत चौरानल म्याधि बाधा समन घोर मारी।-तुलसी। लकड़ी केवल जलाने और कोयला बनाने के काम में आती (ख) सब जदपि अमारीधर तदपि अमारी सम परदल है। इसके पत्ते और गोंद चमका रंगने में काम आते हैं। धंसत ।-गोपाल। (२) काकरेजी रंग। संज्ञा पुं॰ [सं० मारिन् ] हत्या करनेवाला । घातक । मारूत-संज्ञा स्त्री० [हिं० मारना १] धोकों के पिछले पैरों की एक संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) चंडी। (२) माहेश्वरी शक्ति। (३) भौंरी जो मनहूस समझी जाती है। . मरी। (रोग) संज्ञा पुं० [सं० मारुति ] हनुमान । (दि.) मारीच-संज्ञा पुं० [सं०] रामायण के अनुसार वह राक्षस जिसने मारे-अव्य० [हिं० मारना] वजह से। कारण से । उ०—(क) नैन सोने का हिरन बनकर रामचंद्र को धोखा दिया था। गये फिरि, फेन बहै मुख, चैन रह्यो नहिं मैन के मारे।- मारीचपत्रक-संज्ञा पुं० [सं०] सरल वृक्ष । १माकर । (ख) परंतु आश्रम को छोड़ते हुए दुःख के मारे मारीचवल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं० ] मिर्च का पेड़ । पाँव आगे नहीं पड़ते ।-लक्ष्मण सिंह । (ग) मेरे नाम से मारीष-संज्ञा पुं० [सं०] मरसा साग । चूल्हे की राख भी रखी रहे, सौ भी लोगों के मारे बचने मारीची-संवा पुं० [सं०] एक प्रकार के देवता । नहीं पाती। दुर्गाप्रसाद मिश्र। (घ) कुँवर कयौ वे वृन्छ मारीच्य-संशा पुं० [सं०] अग्निश्वाता। विचारे। छाँडेन धर्म प्यास के मारे।-रघुनाथदास । मारुड-संशा पुं० [सं०] साँप का अंडा । (छ) तिस समय एक बड़ी आँधी चली कि जिसके मारे मारु* -संज्ञा स्त्री. दे. "मार"। पृथ्वी बोलने लगी। लल्लूलाल । मारुत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वायु । पवन । हवा । (२) वायु का ! माकंड-संज्ञा पुं० दे० "मार्कंडय"। अधिपति देवता। 'मार्कडेय-संशा मुं० [सं०] मुकर ऋषि के पुत्र जिनके विषय में यौ०-मारुतनंदन, मारुतसुत, मारुततनय-इनुमान । यह प्रसिद्ध है कि वे अपने तपोबल से सदा जीवित रहते मास्तसुत-संज्ञा पुं० [सं०1 (1) हनुमान। (२) भीम । है और रहेंगे। मारुतापह-संज्ञा पुं० [सं०] वरण वृक्ष । | मार्क-संज्ञा पुं० दे० "मार्का"। मारुताशन-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) कार्तिकेय । (२) साँप । संज्ञा पुं० [सं०] श्रृंगराज । भैगरया। मारुति-संज्ञा पुं० [सं०] (१) हनुमान । (२) भीम। मार्कर, माघ-संज्ञा पुं० [सं०] शृंगराज । भैगरैया। मारुदेव-संज्ञा पुं० [सं० j एक प्राचीन पर्वत का नाम । माळ-संज्ञा पुं० [अं0 ] कोई अंक वा चिह्न जो किसी विशेष मारुध-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का नाम । बात का सूचक हो। संकेत ।छाप । मारू-संज्ञा पुं० [हिं० मारना ] (1) एक राग जो युद्ध के समय मार्केट-संज्ञा पुं० [अ० ] बाजार । हाट । बजाया और गाया जाता है। इसमें सब शुद्ध स्वर लाते मार्ग-संज्ञा पुं॰ [सं० ] (१) रास्ता । पंथ । (२) गुदा । (३) हैं। यह श्रीराग का पुत्र माना जाता है। उ.-(क) भेरि । कस्सूरी । (४) अगहन का महीना । उ.-..-हिम ऋतु मार्ग नफीरि बाज सहनाई।मारू राग सुभट सुखदाई।-तुलसी।। मास सुखमूला । ग्रह तिथि नखत योग अनुकूला ।-रघु- (ख) सैयद समर्थ भूप अली अकबर दल चलत बजाय मारू नाथदास । (५) मृगशिरा नक्षत्र । (६) विष्णु । (७) लाल दुभी धुकान की।-गुमान । (ग) रण की टंकार गाजे अपामार्ग। दुदुभी में मारू बाजे तेरे जीय ऐसो रुद्र मेरी ओर लौगो। वि० [सं०] मृग-संबंधी। -हनु । (२) बहुत बड़ा डंका या नगाया। जंगीधौंसा। मार्गक-संज्ञा स्त्री० [सं०] अगहन का महीना । उ०-उस काल मारू जो बाजता था, सो तो मेघ सा मार्गण-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अन्वेषण । दना । (२) प्रेम । गाजता था। लल्लल । (३) याचक । भिखमंगा। संज्ञा पुं० [सं० मरुभूमि ] मरुदेश के निवासी मारवाय। उ.मार्गद-संज्ञा पुं० [सं०] केवट । -प्यासे दुपहर जेठ के थके सबै जल सोधि । मरुधर पाय मार्गधेनु-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक योजन का परिमाण । मतीरहू मारू कहत पयोधि । —बिहारी । मार्गन*-संशा पुं० [सं० मार्गण ] बाण । तीर । वि० [हिं० मारना ] (1) मारनेवाला । (२) हृदयवेधक । मार्गप, मार्गपति-संज्ञा पुं० [सं०] राज्य का वह कर्मचारी जो कटीला । उ.--काजल लगे हुए मारू नयनों के कटाक्ष मार्गों का निरीक्षण करता हो। अपने सामने तरूणियों को क्या समझते थे। दाधरसिंह। | मार्गघ-संज्ञा पुं० [सं०] एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति निषाद संज्ञा पुं० [ देश० ] (1) एक प्रकार का माहबलूत जो शिमले । पिता और आयोगवी माता से मानी जाती है।