पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४१

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मार्गवती २७३२ माल मार्गवती-संशा स्त्री० [20] वह देवी जो मार्ग चलनेवालों की दही, चीनी, शहद और मिर्च आदि को मिलाकर और रक्षा करनेवाली मानी जाती है। उसमें कपूर डालकर बनाया जाता था। मार्गवेद-संशा पुं० [सं०] एक वैदिक ऋषिकुमार का नाम । माता-संथा पुं० [सं० ] (1) सूर्य । (२) आक का वृक्ष । (३) मर्गशिर-संज्ञा पुं० [सं० मार्गशीर्ष ] अगहन का महीना। मार्ग- सूअर । (४) सोनामकात्री।। शीर्ष। मातंरवल्लभा-संज्ञा स्त्री० [सं०] सूर्य की पत्री, छाया । मार्गशिरस-संशा पु० दे. "मार्गशी"। मार्तिकावत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पुराणानुसार चेदि राज्य का मार्गशीर्ष-संज्ञा पुं० [सं०] अगहन का महीना। एक प्राचीन नगर । (२) उप देश का निवासी । मार्गिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पथिक । यात्री। (२) मृगों को मार्दव-संज्ञा पुं० [सं०] (१) अहंकार का त्याग । अभिमान-रहित मारनेवाला, व्याध । होना । (२) दूसरे को दुःखी देखकर दुःखी होना । (३) मार्गी-संशा स्त्री॰ [सं०] संगीत में एक मूर्छना जिसका स्वर सरलता । (३) एक प्राचीन संकर जाति । इस जाति के ग्राम इस प्रकार है-नि, स, रे, ग, म, प, ध। म, प, लोग बहुत मृदु स्वभाव के होते थे। ध, नि, स, रे, ग, म, प, ध, नि, स। मार्दीक-संज्ञा पुं॰ [सं.] अंगर की शराब । संज्ञा पुं० [ मागिन् ] मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति। रारता मार्फत-अव्य० [अ०] द्वारा । ज़रिए से। जैसे,—आपकी मार्फत चलनेवाला । घटोही। सब काम हो जायगा। मार्गीयव-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सामगान । मार्मिक-वि० [सं०] मर्म स्थान पर प्रभाव डालनेवाला। जिसका मार्च-संज्ञा पुं० [अ०1 (1) अंगरेज़ी तीसरा मास प्रायः प्रभाव मर्म पर पड़े। विशेष प्रभावशाली। जैसे, मार्मिक फागुन में पता है । फरवरी के बाद और अप्रैल के पहले व्याख्यान । मार्मिक कवित्त । पड़नेवाला अँगरेज़ी महीना। (२) गमन । गति । (३) मार्मिकता-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) मार्मिक होने का भाव । (२) सेना का कूच । सेना का प्रस्थान । किसी वस्तु के मर्म तक पहुँचने का भाव । पूर्ण अभिशता । मार्ज-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मार्जन । (२) विष्णु । (३) धोवी । जैसे,-संगीत के संबंध में आपकी मार्मिकता प्रसिद्ध है। मार्जन-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) साफ करने का भाव । स्वच्छ मार्ष-संज्ञा पुं० दे० "मारिष"।। करना । (२) सफाई । (३) सोध का वृक्ष । (५) लोध। माल-संज्ञा पुं० [सं०] (३) क्षेत्र । (२) कण्ट । (३) बन जंगल । मार्जना-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) सफाई । (२) क्षमा । मार्फः। (४) हरताल । (५) विगु । (६) एक प्राचीन अनार्य मार्जनी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) झाप । पहारी। (२) मध्यम जाति । भागवत में इसे ग्लेच्छ रिगा है। (७) एक देश स्वर की चार श्रुतियों में से अंतिम श्रुति । (संगीत) का नाम । मार्जनीय-संज्ञा पुं० [सं०] अनि।

  • संज्ञा यु० [सं० मल ] कुश्ती लड़नेवाला । दे. "मल्ल" ।

वि० मार्जन करने योग्य । उ.-(क) कहुँ माल देह बिमाल सैल समान अति बल मार्जार-संहा पुं० [सं०] [स्त्री० मार्जारी ] (१) बिलार । दिल्ली । गर्जही।-तुलसी । (ख) योगी घर मेले सब पाछे । उतरे (२) लाल चीता (वृक्ष)। (३) पूतिमारवा । माल आये रन काछे । —जायसी । मार्जारक-संशा पुं० [सं०] मोर । संज्ञा स्त्री० [सं० माला ] (1) माला । हार । उ०—(क) मार्जारकर्णिका-संशा स्त्री० [सं०] चामुंडा का एक नाम । विनय प्रेम-बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी । माजीरगंधा-संशा स्त्री० [सं०] मुद्गो । -तुलसी। (ख) पहिरि लियो छन माझ असुर बल औरउ मार्जारपाद-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का बुरे लक्षणवाला नम्बन विवारी। रुधिर पान करि आँत माल धरि जय जय घोड़ा। शब्द पुकारी। सूर । (ग) चंदन चित्रित रंग, सिंधुराज मार्जारी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] (1) कस्तूरी । (२) गंधनाकुली । यह जानिए। बहुत बाहिनी संग, मुकुता माल बिसाल उर। मार्जारी टोड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० मार्जारी+हिं० टोकी ] संपूर्ण जाति --केशव । (घ) कितने काज चलाइयतु चतुराई की चाल । की एक रागिनी जिसमें सब कोमल स्वर लगते हैं। कहे देत गुन रावरे सब गुन निर्गुन माल ।-बिहारी। मार्जारीय-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बिल्ली । (२) शूद्र । (२) वह रस्सी वा सूत की डोरी जो चरखे में मूबी वा मार्जालीय-मंशा पुं० [सं०] (1) बिल्ली। (२) शूद । (३) बेलन पर से होकर जाती है और टेकुए को घुमाती है। शिव । (४) एक ऋषि का नाम । (३) पक्ति। पाँती। उ०—(क) सेवक मन मानस मराल मार्जित-वि० [सं० ] स्वच्छ किया हुआ । साफ किया हुआ। से । पावन गंग तरंग माल से।तुलसी । (ख) बालधी संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का प्राचीन वाद्य पदार्थ जो बिसाल किराल ज्वाल माल मानो लक लीलिये की काल