पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४४

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मालद २७३५ मालसी मालद-संज्ञा पुं० [सं० 1 (1) वाल्मीकीय रामायण के अनुसार इसे पानव जाति का और कोई संपूर्ण जाति का राग मानते एक प्रदेश का नाम जिसे ताइका ने उजाड़ दिया था। (२) है।पाड़ब माननेवाले इसमें 'मध्यम' स्वर वर्जित मानते मार्कंडेय पुराण के अनुसार एक अनार्य जाति का नाम । है। यह रात को १६ दंड से २० दंड तक गाया जाता है। मालदह-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) भागलपुर के पास के एक नगर (३) मालव देश-वासी वा मालव देश में उत्पन्न पुरुष । का नाम जहाँ का माम अच्छा होता है। (२) उक्त नगर (४) सफेद लोध । के आस पास होनेवाला एक प्रकार का बड़ा आम जो प्रायः वि. मालव देश संबंधी । पालवे का। कलमी होता है। मालवक-वि० [सं०] मालवा देश-संबंधी। मालवे का। मालदही-संशा स्त्री० [हिं० मालदह ] (1) एक प्रकार की नात्र संशा पुं० मालव देश का निवासी । जिसमें माझी छप्पर के नीचे बैठकर देते हैं। (२) एक मालवगौड़-संज्ञा पुं० [सं०] पारव जाति का एक संकर राग प्रकार का रेशमी टोरिया (कपका) जो पहले मालदह में जिसमें पंचम स्थर नहीं लगता। इपका स्वरग्राम म, ध, बनता था और जिसके लहंगे बनाए जाते थे। नि, स, रि, ग, म है। इसका उपयोग धीर रस में किया मालदा-संशा पुं० दे. "मालदह"। जाता है। कुछ लोग इसे संपूर्ण जाति का मानते हैं और मालदार-वि० [फा०] धनवान् । धनी । संपन्न । इसके गाने का समय सायंकाल बतलाते हैं। मालदीप-संभा पुं० [सं० मलयद्वीप ] भारतीय महासागर में भारत- मालवर्ति-संज्ञा पु० [सं०] एक प्राचीन जाति का नाम । वर्य के पश्चिम ओर के एक द्वीपपुंज का नाम । इस द्वीप- मालवधी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] श्रीराग की एक रागिनी का नाम । पुंज में चार छोटे छोटे द्वीप हैं। यह संपूर्ण जाति की रागिनी है और इसके गाने का समय मालन-संज्ञा स्त्री० दे० "माली"। मायंकाल है। नारद इस मालव की रागिनी मानते हैं और मालपुआ-संध्या पुं० दे० "मालपुआ"। हनुमत् इस हिंडोल राग की रागिनी लिखते हैं। हनुमत् मालपूआ--संज्ञा पुं० [सं० पूप ] एक पकवान का नाम । गेहूँ के इमे ओसव जाति की मानने हैं और इसके गाने में धक्त आटे वा सूजी को शक्कर के रस में गीला घोलते हैं। फिर और गांधार को वर्जित लिग्यते हैं। इसे मालश्री और उसमें चिरौंजी पिस्ता आदि मिलाकर धीमी आंच पर घी मालसी भी कहते हैं। में थोड़ा थोड़ा डालकर सिझाकर छान लेते हैं। कभी कभी मालवा-संभा पुं० [सं० मालब ] एक प्राचीन देश का नाम जो पानी की जगह घोलते समय इसमें दूध वा दही भी अव मध्य भारत में है। इसकी प्रधान नगरी अवंती है जो मिलाते हैं। सप्तमोक्षदायिनी पुरियों में गिनी गई है और जिसे आजकल मालपूवा-संज्ञा पुं० दे० "मालपूना"। उज्जैन कहते हैं। इंदौर, भूपाल, धार, रतलाम, जावरा, मालबरो-संशा स्त्री० [हिं० मालाबार ] एक प्रकार की ईग्ब जो राजगढ़, नृसिंहगढ़ और ग्वालियर का राज्य न मच तक सूरत में होती है। इसी मालवा राज्य की सीमा के अंतर्गत है। यह बहुत मालभंजिका संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राचीन काल के एक प्रकार के प्राचीन देश है और अथर्व वेद की संहिता तक में इसका खेल का नाम । नाम मिलता है। मालभंडारी-संज्ञा पुं० [हिं० माल+भंडारी] जहाज पर का वह संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्राचीन नदी का नाम । कर्मचारी जिसके अधिकार में लदे हुए माल रहते हैं। (लश०) मालविका-संशा स्त्री० [सं०] निमोथ। मालभमि-संज्ञा स्त्री० [सं० मलभूमि ] एक प्रदेश का नाम जो मालविटपी-संज्ञा स्त्री० [सं०] कभी प्रक्ष। नेपाल के पूर्व में है। मालवी-संशा स्त्री० [सं०] (1) श्रीराग की एक रागिनी का मालय-संज्ञा पुं० [सं०] (७) चंदन । (२) गरुड़ के पुत्र का नाम । यह ओदव जाति की है और हनुमत् के मत से नाम । (३) व्यापारियों का झुंड। इसका स्वरग्राम नि, सा, ग, म, ध, नि है । इसमें ऋषभ वि० मलय-संबंधी। और पंचम स्वर वर्जित है। कोई कोई इसे हिंडोल राग की मालव-संशा पुं० [सं० ] (1) मालवा देश । (२) एक राग का ' रागिनी मानते हैं । (२) पादा। नाम, जिसे भैरव राग भी कहते हैं। संगीत दामोदर में वि० दे० "मालवीय" । इसका रूप माला पहने, हरित वस्त्रधारी, कानों में कुंभल मालवीय-वि० [सं०] मालव देश-संबंधी। मालवे का। (२) धारण किए, संगीतशाला में स्त्रियों के साथ बैठा हुआ। मालव देश का निवासी । मालवे का रहनेवाला । लिखा है । इसको धनश्री, मालश्री, रामकीरी, सिंधुदा, मालश्री-सज्ञा स्त्री० दे० "मालवश्री"। आसावरी और भैरवी नाम की छः रागिनियाँ हैं। कोई कोई : मालसी-संशा स्त्री० दे. "मालवश्री"।