पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४४८

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माशी २७३९ मास संज्ञा पुं० [सं० महाशय ] (1) भला आदमी। सजन। मास-संशा पुं० [सं०] (1) चंद्रमा । (२) महीना । मास ।। शरीफ़ । (बंगाली) (२) वंग देश का निवासी । मास-संशा पुं० [सं०] काल के एक विभाग का नाम जो वर्ष के बंगाली। बारहवें भाग के बराबर होता है । महीना। माशी-संक्षा पुं० [हिं० माप-उड़द 1(१) एक रंग जो कालापन विशेष—मास सौर, चांद, नाक्षत्र और सावन भेद से चार लिए हरा होता है । कपड़े पर यह रंग कई पदार्थों में रंगने प्रकार का होता है । (क) सौर माय उतने काल को से आता है जिनमें हर का पानी, कसीस, हलदी और कहते हैं जितने काल तक सूर्य का उदय किसी एक राशि अनार की छाल प्रधान है। इनमें रंगे जाने के बाद कपड़े में हो; अर्थात् सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति को फिटकरी के पानी में उबाना पड़ता है। (२) ज़मीन की तक का समय सौर मास कहलाता है । यह माय प्रायः एक नाप जो २४० वर्ग गज़ की होती है। तीय, इकतीस और कभी कभी उन्तीस और श्वसीम दिन का वि० उपद के रंग का । कालापन लिए हरे रंग का । माशी भी होता है । (ख) चांद्र मास चंद्रमा की कला की वृद्धि रंग का। और हामवाले दो पक्षों का होता है जिन्हें शुक्ल और कृष्ण माशूक-संशा पुं० [अ० ] [ स्त्री माशूका ] वह जिसके साथ प्रेम पक्ष कहते हैं। यह माग्य दो प्रकार का होता है--एक किया जाय । प्रेम-पात्र । मुख्य और दूसरा गौण । जो मास शुकु प्रतिपदा ये आरंभ माशूकी-संज्ञा स्त्री० [ फा . ] माशूक होने का भाव । प्रेम-पात्रता। होकर अमावस्या को समाप्त होता है, उसे मुख्य बांद्र यौ०-आशिकी माशूकी। मास कहते हैं। इसका दूसरा नाम अमांत भी है। गौण माष--संज्ञा पुं० [सं० ] (१) उड़द । (२) मा । (३) शरीर के चांद्र मास कृष्ण प्रतिपदा से आरंभ होता और पूर्णिमा को ऊपर काले रंग का उभरा हुआ दाग या दाना । ममा। समास होता है। इसे पूर्णिमांत भी कहते हैं। दोनों प्रकार वि० मूर्व । के मास अट्ठाईस दिन के और कभी कभी घट बढ़कर

  • संज्ञा स्त्री० दे० "माख"।

उन्तीस, तीस और सत्ताईस दिन के भी होते हैं । (ग) माषक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) माशा (तील)। (२) उपद। नाक्षत्र मास उतना काल है जितने में चंद्रमा सकाईस नक्षत्रों माषतेल-संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का तेल में भ्रमण करता है। यह माम लगभग २७ दिन का होता ___जो अङ्गि, कंप आदि रोगों में उपयोगी माना जाता है। है और उस दिन से प्रारंभ होता है, जिस दिन चंद्रमा मापना*-क्रि० स० दे. "माखना"। अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है और उस दिन समाप्त मापपत्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] मापपर्णी। होता है, जिस दिन वह रेवती नक्षत्र से निकलता है। (घ) मापपर्णी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] वन माप । जंगली उबद । वैचक में सावन मास का व्यवहार व्यापार आदि व्यावहारिक कामां इसको पृष्य, बलकारक, शीतल और पुष्टिवर्द्धक माना है। में होता है और यह तीस दिन तक का होता है। यह प०-सिंहपुच्छी। ऋषिप्रोक्ता । कृष्णता । पद्ध। किसी दिन से प्रारंभ होकर तीसवें दिन समाप्त होता है। लोमपर्णी। सौर और चांद्र भेद से इसके भी दो भेद है। सौर सावन माषवटी-संज्ञा स्त्री० [ सं०] उदद की बनी हुई बड़ी । वि०- मास सौर मास की किसी तिथि से और चांद्र सावन मास चांद्र मास की किसी तिथि वा दिन से प्रारंभ होकर उसके माषभक्तबलि-संज्ञा पुं० [सं०] तांत्रिकों के अनुसार एक प्रकार तीसवें दिन समाप्त होता है। प्रत्येक संवत्सर में बारह सौर का बलि जो दुर्गा, काली आदि को चढ़ाया जाता है। इसमें और बारह ही चांद्र मास होते हैं। पर सौर वर्ष ३६५ दिन उबद, भात, दही आदि कई पदार्थ होते हैं। का और चांद्र वर्ष ३५५ दिन का होता है, जिससे दोनों में माषयोनि-संज्ञा स्त्री० [सं०] पापड़। प्रति वर्ष दिन का अंतर पड़ता है। इस पैषम्य को दूर माषरा-संज्ञा स्त्री० [सं०] माद। पीच । करने के लिए प्रति तीसरे वर्ष बारह के स्थान में तेरह चांद माषरावि-संज्ञा पुं० [सं० ] लाव्यायन सूत्रानुसार एक ऋषि का मास होते हैं। ऐसे बढ़े हुए मास को अधिमास वा मलमास नाम । ये माषराविन् ऋषि के गोत्र में थे। कहते हैं। वि०-दे. "अधिमास" और "मलमास"। माषवर्द्धक-संज्ञा पुं० [सं० ] स्वर्णकार । सुनार । वैदिक काल में माल शब्द का व्यवहार चांद्र मास के लिए माषाद-संज्ञा पुं० [सं०] कछुआ। ही होता था। इसी से संहिताओं और ब्राह्मणों में कहीं माषाश-संज्ञा पुं० [सं०] घोड़ा । बारह महीने का संवत्सर और कहीं तेरह महीने का संवरसर माषीण-संशा पुं० [सं०] माष का खेत। मिलता है। माध्य-संज्ञा पुं० [सं०] माप बोने योग्य खेस । मशार ।

  • संज्ञा पुं०० "मांस" । उ-बहक न यहि बहनापने