पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४५०

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माहली २७४१ माही मरातिव पकरण मुहा०-माहर का फल-जो देखने में सुंदर हो, पर दुर्गुणों से ! माहिषवल्लरी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] काला विधारा । कृष्ण वृद्धदारक। भरा हो।

माहिपवल्ली-संज्ञा स्त्री० [सं०] छिरहटी।

वि०-दे. "माहिर"। माहियस्थली-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्राचीन जनपद का नाम । माहली-संभा पुं० [हिं० महल ] (1) वह पुरुष जो अंत:पुर में माहिषाक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] भैंपा गुग्गुल । आता जाता हो। महली। खोजा । (२) सेवक । दास । माहिषिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) व्यभिचारिणी खी का पति । उ.--तुलसी सुभाइ कह नहीं किए पक्षताप कौन ईसा (२) भैस से जीविका निर्वाह करनेवाला व्यक्ति। कियो, कीस भालु खास माहली।तुलमी । माहिपिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक नदी का नाम । माहवार-क्रि० वि० [फा०] प्रतिमास । महीने महीने । माहिष्मती-संशा स्त्री० [सं०] दक्षिण देश के एक प्रसिद्ध, प्राचीन वि० हर महीने का । मासिक । नगर का नाम । इसका उल्लेख पुराणों, महाभारत और बौद्ध संशा पुं० महीने का वेतन । ग्रंधों में आया है। यह माहिपमंडल नामक जनपद की माहवारी-वि० [फा०] हर महीने का । मासिक । राजधानी थी । पुराणों में इस नर्मदा नदी के किनारे लिया माहाँ-अन्य० दे० "महँ"। है । सहस्रार्जुन यहीं का रहनेवाला था। महाभारत में माहात्म्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) महिमा । गौरव । महत्व । माहिरमती और त्रिपुर का नाम साथ आया है। त्रिपुर को बड़ाई। (२) आदर । मान । आजकल त्रिपुरी कहते हैं; पर माहिष्मती का अब तक ठीक माहिं*-अन्य० [सं० मध्य, प्रा. मज्झ ] (1) भीतर। अंदर । पता नहीं है । पुरातत्वविद् कनिंघम माहब ने 'माहिपमंडल' उ.-कर कमान सर साधिके वंचि जो मारामाहि भीतर के 'मंडल.' शब्द को लेकर 'मंदला' नगर को माहिती विधे सोमारिहै जीव पै जीव नाहि। कबीर। (२) अधिकरण लिखा है। कारक का चिह्न, में था पर । उ.--अनचर देह धरी छिति माहिष्य-संता पुं० [सं०] स्मृतियों के अनुसार एक संकर जाति । माहीं । अतुलित बल प्रताप तिन्ह पाहीं।-तुलसी। विशेप-याशवल्क्य इर्म क्षत्रिय पिता और वैश्या माता की माहिक-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक जाति औरस संतान मानते हैं। आश्वलायन इसे सुवर्ण नामक का नाम। जाति के करण जाति की माता में उत्पन्न मानते हैं। सह्याद्रि माहित-संशा पुं० [सं० ] महित ऋषि के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । खंड में इसको यज्ञोपवीत आदि संस्कारों का वेश्यों के माहित्थ-संज्ञा पुं० [सं०] शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक ऋषि ' समान अधिकारी कहा है; पर आश्वलायन इस यज्ञ करने का नाम। का निषेध करते हैं। इस जाति के लोग अब तक बालि माहित्य-संज्ञा पुं० [सं०] महित ऋषि के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । द्वीप में मिलते है और अपने को माहिथ्य क्षत्रिय कहते हैं। माहि त्र-संज्ञा पुं० [सं०] मनुस्मृति के अनुसार एक ऋचा : संभवतः ये लोग किसी समय माहिपमंडल देश के रहने का नाम । वाले होंगे। माहियत-संज्ञा स्त्री० [अ० ] (8) तस्व । भेद । (२) प्रकृति । माहीं*-अव्य० दे. "माँहिं"। (३) विवरण । माही-संज्ञा स्त्री० [फा० ] मली। माहियाना-वि० [फा०] माहवार । यौ०-माहीगीर । महीपुश्त । माही-मरातिय । संशा पुं० मासिक वेतन । संज्ञा स्त्री० [सं० माहेय ] दक्षिण देश की एक नई का नाम माहिर-वि० [अ० ) ज्ञाता। जानकार । तस्वज्ञ। उ०-सूधी जो खंभात की खाड़ी में गिरती है। सुधा सी सुभाय भरी वैखरी रति केलि कलान में माहिर माहीगीर-संशा पुं० [फा०] मछली पकड़नेवाला । मछुवा । -जवाहिर। i माहीपुश्त-वि० [फा० ] जो ममी की पीठ की तरह बीच में संशा पुं० [सं०] इंद्र। उभरा हुआ और किनारे किनारे ढालुओं हो। माहिला*-संज्ञा पुं० [अ० मल्लाह ] माँझी । मल्लाह । उ.-: संज्ञा पुं० एक प्रकार का कारचीबी का काम जो बीच में कबिरा मन का माहिला अबला बहै असोस । देखत ही। उभरा हुआ और इधर उधर ढालुओं होता है। दह में पद देह किसी को दोस।-कबीर। माही मरातिब-संज्ञा पुं० [फा०] राजाओं के आगे हाथी पर माहिष-वि० [सं०] (1) भैंस का ( दूध आदि) (२) भैंस . चलनेवाले सात झंडे जिन पर अलग अलग मछली, सातों संबंधी। ग्रहों आदि की आकृतियाँ कारचोबी की बनी होती हैं। इस माहिषक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्राचीन देश का नाम । प्रकार के सडों का आरंभ मुसलमानों के राजस्व काल में (२) इस देश में रहनेवाली एक जाति का नाम । हुआ था।