पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४५१

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माहुर २७४२ मिंडाई - - विशेष--(1) सूर्य, (२) पंजा, (३) तुला, (४) अजगर, (५) आक्रमण करने से प्रहप्रस्त पुरुष में माहात्म्य, शौर्य, सूर्यमुग्वी, (६) मछली और (७) गोले, ये मात शकलें हादों शास्त्र-धुद्धित्ता, भृत्यभरण आदि गुण एकाएक आ जाते है। पर होती हैं। माहेद्रवाणी-संज्ञा स्त्री० सं०] महाभारत के अनुसार एक नदी माहुर-संता पुं० [सं० मधुर, प्रा० महुर-विध ] विष । जहर का नाम । २०-(क) माँ बीछ को मंत्र है, माहुर झारे जाय। माहेद्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) इंद्राणी । (२) माय । (३) विकट नारि के पाले परा काटि करेजा खाय। कबीर । इंद्रायन । (४) सात मातृकाओं में से एक । यह स्कंद की (ग्य) दानव देव ऊँच अरु नीचू । अमिय सजीवन माहुर ।। अनुचरी है। (५) इंद्र की शक्ति। मीच।-तुलसी। माहताबा-संज्ञा पुं० [फा०] चिलमची। महा०-माहुर की गाँठ=(१) भारी विपैली वस्तु । (२) अत्यंत माहेय-वि० [सं०] मिट्टी का बना हुआ। दुध या कुटिल मनुष्य। संज्ञा पुं० भूगा । विदुम । माहुल-संजा पु० [सं०] महुल के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । माहेथी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) गाय । (२) माही नदी। माई-बाप । देश ] एक छोटा कीड़ा जो राई, सरसों, मूली | माहेल-संशा पुं० [सं० ] एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि का नाम । आदि की फसल में उनके इंटलों पर फूलने के समय या माहेश-वि० [सं०] महेश संबंधी। महेश का। उपके पहले अंड दे देता है, जिम्पसे फसल नितांत हीन माहेशी-संशा स्त्री० [सं० ] दुर्गा । होकर नष्ट हो जाती है । यह काले रंग का परदार भुनगे के माहेश्वर-वि० [सं०] महेश्वर संबंधी । महेइवर का । 'नाकार का कीड़ा होता है और जाड़े के दिनों में फसल पर संज्ञा पुं० (१) एक यज्ञ का नाम । (२) एक उपपुराण का लगता है। यदि पानी बरस जाय तो कीड़े नष्ट हो जाते हैं।। नाम। (३) पाणिनि के वे चौदह सूत्र जिनमें स्वर और प्रायः अधिक धदली के दिनों में, जब पानी नहीं बरसता, व्यंजन वर्णों का संग्रह प्रत्याहारार्थ किया गया है। इसके ये की अंड देने है और कपल के डंठलों पर फूलों के आम विषय में लोगों का विश्वास है कि ये सूत्र शिवजी के तांडव पास उत्पन्न हो जाते हैं। नृत्य के समय उनके डमरू से निकले थे। सूत्र ये हैं- महा०-माह लगना गाई का फसल के हरे टंटल पर अंटे देन।। अइउप । फलक । एओक । ऐऔच । हयवस्ट । लण। माहंद्र-वि० [सं० (१) निम्पका देवता महेंद्र हो। (२) महेंद्र अमहणनम् । झभज् । धन्ध । जबगडदश् । खफछठय- संबंधी। इंद्र संबंधी। चटतव । कपय । शपसर । हल । (४) शैव संप्रदाय का एक संगपं० [सं०] (9) जैनियों के एक देवता जी कल्पभव भेद । (५) एक अस्त्र का नाम । माहेश्वरान । नामक वैमानिक देवगण में है। (२) एक अस्त्र का नाम । | माहेश्वरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा । (२) एक मातृका का (३) वार के अनुसार भिन्न भिन्न दंडों में पढ़नेवाला एक योग | नाम । (३) एक पीठ का नाम । (४) एक नदी का नाम । जिसमें यात्रा करने का विधान है । यह योग प्रतिवार को । (५) वैश्यों की एक जाति । क्रमानुसार पंद्रह बार आता है। प्रतिदिन के दंडों में ये | माहों-संज्ञा स्त्री० दे० "माहूँ"। चार चार योग भिन्न भिन्न क्रम से आते रहते है-माहंद, मिगनी-संज्ञा स्त्री० दे० "मैंगनी"। वरुण, वायु और यम । ये चारों योग सप्ताह के प्रतिदिन | मिगी-संज्ञा स्त्री० दे. "मींगी"। इस प्रकार आया करते हैं- | मिंट-संज्ञा पुं० [ अं०] (१) वह स्थान जहाँ सिक्के चलते हों। दिन प्रथम दंड द्वितीय दंड नृतीय दंद चतुर्थ दंड टकसाल। (२) एक प्रकार का बढ़िया सोना। टकसाली रवि वायु वरुण यम माहेंद्र सोना। चंद्र माहेंद्र वायु वरुण यम + संज्ञा स्त्री० दे० "मिनट"। भीम यम माहेंद्र वायु मिडाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मीडना ] (1) मीटने या मीजने की बुध माद्र वायु वरुण क्रिया या भाव । (२) मौटने की मजदूरी । (२) देशी टीट वायु वरुण यम माहेंद्र की छपाई में एक क्रिया जो कादे को छापने के उपरांत और माहेंद्र वायु यम वरुण धोने से पहले होती है । इसके लिए पानी से भरी एक नोंद शनि यम माहेंद्र वायु वरूण में कुछ बी का तेल और बकरी की मेंगनी तथा दो एक इन चारों योगों में माहेंद्र योग विजयकारक, वरुण धन और मसाले डाले जाते हैं और उसमें छापा हुआ कपड़ा प्रद, वायु नित्य फिरानेवाला और यम मृत्युदायक कहा ! तीन चार दिन तक भिगोया जाता है। आवश्यकता पड़ने जाता है। (४) सुश्रुत के अनुसार एक देवग्रह जिसके । पर यह क्रिया दो तीन बार भी की जाती है। नाँव में से यम