पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४५६

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मित्रबाहु २७४७ मिथ्याध्यवसिति मित्रबाहु-संशा पुं० [सं०] (१) यारहवें मनु के एक पुत्र का मित्रावरुण-संज्ञा पुं० [सं०] मित्र और वरुण नामक देवता । नाम । (२) श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम । मित्रावसु-संज्ञा पुं० [सं०] विश्वावसु के एक पुत्र का नाम । मित्रभानु-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक राज-मित्री-संज्ञा स्त्री० [सं.] दशरथ की पक्षी सुमित्रा जो लक्ष्मण और कुमार का नाम । शसुघ्न की माता थीं। सुमित्रा। मित्रभेद-संशा पुं० [सं०] वह जो दो मित्रों में लड़ाई कराया मित्रेयु-संज्ञा पुं० [सं०] राजा दिवोदास के एक पुत्र करता हो। मित्रों में झगड़ा करानेवाला। का नाम । मित्रवती-संज्ञा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार श्रीकृष्ण की एक कन्या | मिथनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मेथी। का नाम । मिथि-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार राजा निमि के पुत्र जनक मित्रधन-संशा पुं० [सं०] पंजाब के मुलतान नामक नगर का ! का एक नाम । कहते हैं कि राजा निमि को कोई पुत्र नहीं प्राचीन नाम । था । मुनियों को यह भय हुआ कि निमि के मरने के उपरांत मित्रवर्द्धन-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक राजा कहीं अराजकता न उत्पन्न हो, इसलिये उन लोगों ने निमि का नाम । के शरीर को अरणी मे मथा जिससे जनक की उत्पत्ति हुई। मित्रवान्-वि० [सं० मित्रवत् । स्त्री० मित्रवती ] जिसे मित्र हो। ये मथन से उत्पन्न हुए थे; इसलिये इनका एक नाम मिथि संज्ञा पुं० (१) एक असुर का नाम । (२) यारहवें मनु के भी था। इन्हें उदावसु नामक एक पुत्र हुआ था। एक पत्र का नाम । (३) पुराणानुसार श्रीकृष्ण के एक पुत्र | मिथिनी-संशा स्त्री० [सं०] मेथी। का नाम । मिथिल-संशश पुं० [सं०] राजा जनक का एक नाम । मित्रवाह-संशा पुं० [सं० ] बारहवें मनु के एक पुत्र का नाम । मिथिला-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) वर्तमान तिरहुत का प्राचीन मित्रपिंद-संश। पुं० [सं०] (1) अग्नि । (२) बारहवें मनु के नाम । राजा जनक इसी प्रदेश के राजा थे। (२) इस प्रांत एक पुत्र का नाम । (३) पुराणानुसार श्रीकृष्ण के एक पुत्र की प्राचीन राजधानी। का नाम । मिथु-संशा पुं० [सं०] असत्य । मिध्या। झूठ । मित्रविदा-संशा स्त्री० [सं०] पुराणानुसार श्रीकृष्ण की एक पल्ली। मिथन-संज्ञा पुं० [सं०] (9) स्त्री और पुरुष का युग्म । मर्द और का नाम । औरत का जोड़ा । (२) संयोग । समागम । (३) मेप आदि मित्रविद्-संज्ञा पुं॰ [सं०] गुप्तचर । जासूप । राशियों में से तीसरी राशि जिसमें मृगशिरा नक्षत्र के मित्रवैर-संश पुं० [सं० ] वह जो मित्र मे वैर या द्वेष करता हो।' अंतिम दो पाद, पूरा आर्द्रा नक्षत्र और पुनर्वसु के आरंभिक मित्र सप्तमी-संशा स्त्री० [सं०] मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी। कहते : तीन पाद है । इसके अधिष्ठाता देवता गदाधारी पुरुष और है कि इसी दिन कश्यप के वीर्य से अदिति के गर्भ से मित्र वीणाधारिणी स्त्री मानी गई हैं। इसका दूसरा नाम जितुम है। नामक दिवाकर की उत्पत्ति हुई थी। इसी से इसका यह (1) ज्योतिष में मेष आदि लनों में से तीसरी लग्न । कहते नाम पड़ा। है कि इस लम में जन्म लेनेवाला प्रियभाषी, द्विमात्रिक, मित्रसह-संशा पुं० [सं०] कल्माषपाद राजा का एक नाम । पात्रुओं का नाश करनेवाला, गुणी, धार्मिक, कार्यकुशल मित्रसाहसा-संज्ञा स्त्री० [सं०] महाभारत के अनुसार स्वर्ग में और प्रायः रोगी रहनेवाला होता है; और उपकी मृत्यु रहनेवाली एक देवी का नाम । मनुष्य, साँप, जहर या पानी आदि के द्वारा होती है। मित्रसेन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बारहवें मनु के एक पुत्र का मिथुनत्व-संज्ञा पुं० [सं० ] मिथुन का भाव या धर्म । नाम । (२) श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम । (३) एक बुद्ध मिथ्या-वि० [सं० ] असत्य । मठ । का नाम । मिथ्याचा -संशा स्त्री० [सं०] मुठा या कस्टपूर्ण व्यवहार । मित्रा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मित्र नामक देवता की स्त्री का मिथ्याचार-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कपटपूर्ण आचरण । (२) वह नाम । वि० दे० "मित्र (७)"। (२) शत्रुघ्न की माता जो कपटपूर्ण आचरण करता हो। सुमित्रा। (३) महाभारत के अनुसार एक अप्सरा का नाम । मिथ्यात्व-संशा पुं० [सं०] (1) मिथ्या होने का भाव । (२) (४) पराशर के शिष्य मैत्रेय की माता का नाम । माया । (३) जैनों के अनुसार अठारह दोषों में से एक । मित्राई*-संज्ञा स्त्री० [सं० मित्र+आई (हिं. प्रत्य०) ] मित्रता। मिथ्यादष्टि-संशा स्त्री० [सं०] नास्तिकता। दोस्ती। मिथ्याभ्यवसिति-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अर्थालंकार जिसमें मित्राक्षर-संशा पुं० [सं०] ईद के रूप में बना हुआ पद । कोई एक असंभव या मिध्या बात निश्रित करके तथ कोई मित्रायु-संज्ञा पुं० [सं०] राजा दिवोदास के एक पुत्र का नाम ।। दूसरी बात कही जाती है और इस प्रकार वह दूसरी बात