पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४५७

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मिथ्यानिरसन २७४८ मियानतह भी मिथ्या ही होती है । उ०—जो आँजै नभ-कुसुम-रस, मिनवाल-संज्ञा पुं० [अ० ] करघे में का वह बेलन जिस पर लखै मो अहि के कान । खुना हुआ कपड़ा लपेटा जाता है और जो बुननेवाले के ठीक मिथ्यानिरसन-सा पुं० [सं० } शपथपूर्वक फिसी सच्ची बात आगे रहता है। का अस्वीकार करना। मिनहा-वि० [अ०] जो काट या घटा लिया गया हो। मुजरा मिथ्यापंडित-संक्षा पुं० [सं०] वह जो कुछ न जानता हो और किया हुआ । जैसे,--अभी इसमें दो तीन रकमें मिनहा ___ झूठ मूठ पंडित बनता हो । होने को है। मिथ्यापुरुष-संशा पु० दे० "छायापुरुष मिनारा-संज्ञा पुं० दे. "मीनार"। मिथ्याभियोग-संज्ञा पुं० [सं० ] किसी पर मठ मूठ अभियोग मिन्जानिब-क्रि० वि० [ अ.] ओर से । तरफ़ से । ( कच०) लगाना । अभ्यारण्यान। मिन्जुमला-क्रि० वि० [अ० ] सब में से । कुल में से । मिथ्याभिशंसन-संक्षा पुं० [सं०] किसी पर मठ मूठ कलंक: मिन्नत-संज्ञा स्त्री० [अ०,मि० सं० विनति ] (1) प्रार्थना । निवेदन। लगाना। (२) दीनता। मिथ्यामति-संशा मी० [सं० ] भ्रांति । धोखा । भूल । गलती। यौ०-मिन्नत खुशामद-दीनतापूर्वक की हुई प्रार्थना । मिथ्यायांग-संक्षा पु० [सं०] चस्क के अनुसार वह कार्य जो; (३) एहसान । कृतज्ञता । (क.) रूप, रस या प्रकृति आदि के विरुद्ध हो। जैसे,-मल,' क्रि० प्र०-उठाना । मूत्र आदि का बैग रोकना शरीर का मिथ्यायोग है, कठोर मिमत-संशा पुं० [सं० ] एक प्राचीन ऋषि का नाम । वचन आदि कहना वाणी का मिथ्यायोग है। तीन गंध मिमियाह-संशा स्त्री० [हिं० मिमियाना+६ (प्रत्य.)] बकरी। आदि घना और भीषण शब्द आदि सुनना प्राण और संज्ञा स्त्री० दे० "मामिया" । श्रवण का मिथ्यायोग है। मिमियाना-कि० अ० [मिन मिन से अनु०] बकरी या भेद का मिथ्यावादी-संना पुं० [सं० मिथ्यावादिन् ] [स्त्री० मिथ्यावादिनी! 'मि मि' शब्द करना। भंड या बकरी का बोलना। वह जो झट बोलता हो । असत्यवादी । ठा। मियां-संज्ञा पुं० [फा०] (१) स्वामी । मालिक । (२) पति । मिथ्याव्याहार-संशा पु. [सं.] किसी विषय को न जानते हुए खसम । जैसे,-मियाँ के मियाँ गए, बुरे बुरे सपने आए। भी उनमें दखल देना । अनधिकार चर्चा । . यौ०-मियाँ-बीबी। मिथ्यासाक्षी-संज्ञा पुं॰ [सं० मिथ्यासाक्षिन् ] वह जोझठी गवाही (३) बड़ों के लिए एक प्रकार का संबोधन । महाशय । देता हो । झट गवाह । (मुसल.) (४) बच्चों के लिए एक प्रकार का संबोधन । मिथ्याहार-संशा पुं० [सं०] अनुचित या प्रकृति के विरुद्ध (५) शिक्षक । उस्ताद । (६) पहादी राजपूतों की एक भोजन करना । जैसे, मछली के साथ दूध । उपाधि । जैसे, मियाँ रामसिंह । (७) मुसलमान । जैसे, मिथ्यात्तर-संक्षा पुं० [सं० ] व्यवहार में चार प्रकार के उत्तरों में - सब मियाँ ठहरे; एफ ही में खा पका लेंगे। से एक प्रकार का उत्तर । अभियुक्त का अपना अपराध मियाँ मिळू-संशा पुं० [हिं० मियाँ+मिळू ] (1) मीठी बोली छिपाने के लिये झठ बोलना। ( याज्ञवल्क्य स्मृति) बोलनेवाला । मधुर-भाषी। मिनती-संता स्त्री० दे० "विनति"। i मुहा०-अपने मुँह मियाँ मिठू बनना अपने मुँह से अपनी संज्ञा पु. [ अनु० मक्खी के शब्द से ] मक्वी की बोली के प्रशंसा करना। समान, धीमा, कुछ नाक से निकला हुआ स्वर । (२) तोता। मिनमिन-कि. वि० [ अनु० ] मक्खी की भनभनाहट के रूप में। मुहा०—मियाँ मिट्ठू बनाना-ताते की तरह रटाना। बिना धीमे दबे हुए स्वर में। कुछ नाक से निकले धीमे स्वर समझाए पढ़ाना। में । जैसे,- वह मिनमिन बोलता है। इसी से उसे सीधा (३) मूर्ख । बेवाफ । समझते हो। मियान-संज्ञा स्त्री० दे. "म्यान"। मिनमिना-वि० [हिं० मिनमिन ] (1) मिनमिन शब्द करनेवाला। संज्ञा पुं० [फा०] मध्य भाग । बीच का हिस्सा। नाक से स्वर निकालकर धीमे घोलनेवाला । (२) मोडी' यौ०-दरमियान-मध्य में । बीच में । सी बात पर कुढ़नेवाला । (३) सुम्न । मट्ठर। मियानसह-संशा स्त्री० [फा० मियान मध्य+हिं. तह ] वह मिनमिनाना-कि.. अ० [ मिन् मिन् से अनु.] (1) मिन् मिन् साधारण कपड़ा जो किसी अच्छे कर के नीचे उसकी शब्द करना । नाक से बोलना । नकियाना । (२) कोई काम - रक्षा आदि के लिए दिया जाता है । जैसे, रजाई की बहुत धीरे धीरे करना । बहुत सुस्ती से काम करना। । मियानतह।