पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४५८

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मियानतही २७४९ मिर्च मियानतही-संज्ञा स्त्री० दे० "मियानतह"। मीर-जाया। अमीर-जादा । (२) राजकुमार । कुँवर । (३) मियाना-वि० [फा० ] न बहुत बड़ा और न बहुत छोटा । मध्यम मुगलों की एक उपाधि । (४) नैमूर वंश के शाहजादों आकार का। की उपाधि । संज्ञा पुं० (१) वे खेत जो किसी गाँव के बीच में हो। (२) वि० कोमल । नाजुक । (व्यक्ति) एक प्रकार की पालकी । (३) गादी में आगे की ओर बीच मिरजाई-संशा स्त्री० [फा०] (१) मिरजा का भाव या पद। में लगा हुआ वह बाँस जिसके दोनों ओर घोडे जोते जाते (२) मरदारी । नेतृत्व । (३) अभिमान । धमंड। (४) हैं। बम । वल्ली। दे० "मिरजई"। मियानी-संशा स्त्री० [फा० मियान+ई (प्रत्य॰)] पायजामे में वह मिरजान-संज्ञा पुं० [फा० ] प्रवाल । मूंगा। काका जो दोनों पायचों के बीच में पड़ता है। इसे कहीं | मिरजामिजाज-वि० [फा० मिरजा+मिजाज ] नाजुक दिमाग फा। कहीं रूमाल भी कहते है। मिरता-संज्ञा स्त्री० दे० "मृत्यु"। मियार, मियाला-संज्ञा पुं० [हिं० मंझार ? ] वह लकड़ी जो मिरदंग-संज्ञा पुं० दे. "मृदंग"। कुएँ के ऊपर दो खंभों पर लगी होती है और जिसमें गराडी मिरदंगी-संज्ञा पुं० [हिं० मिरदंग+ई (प्रत्य॰)] वह जो मृदंग पड़ी रहती है। बजाता हो । पखावजी। मियेध-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पशु। (२) यश । मिरा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (१) मूर्वा । (२) मदिरा। शराय । मिरंगा-संज्ञा पुं० [फा०] प्रवाल । मूंगा। मिरासी-संज्ञा पुं० दे० "मीरासी"। मिरकी-संज्ञा स्त्री . [ देश० ] चौपायों को होनेवाली एक प्रकार की | मिरिका-संशा स्त्री० [सं० ] एक प्रकार की लता। मुंह की बीमारी । (अवध) मिरिच-संज्ञा स्त्री० दे० "मिर्च"। मिरखंभ-संज्ञा पुं० दे० "मिरखम"। मिरिचिया कंद-संज्ञा पुं० [हिं० मिरिच+गंध ] रोहित घाम । मिरखम-संशा पुं० [सं० मेरुस्तम्भ, प्रा. मेरुखंभ।] कोल्हू में मिगी-संशा स्त्री. दे. "मिरगी। वह लकड़ी जो बैठकर हाँकने की जगह खड़े बल में लगी | मिर्च-संशा स्त्री० [सं० मरिच ] (1) कुछ प्रसिद्ध तिक्त फलों रहती है। और फलियों का एक वर्ग जिसके अंतर्गत काली मिर्च, लाल मिरग*-संशा पुं० [सं० मृग ] मृग। हरिन । मिर्च और उनकी कई जातियाँ है। (२) इस वर्ग की एक मिरगचिड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० मिरग--चिड़ा] एक प्रकार का .. प्रसिद्ध तिक्त फली जिसका व्यवहार प्रायः सारे संसार में छोटा पक्षी। यंजनों में मसाले के रूप में होता है और जिसे प्राय: लाल मिरगछाला -संज्ञा स्त्री० दे० "मृगछाला"। मिर्च और कहीं कहीं मिरचा, मरिचा या मिरचाई भी मिरगिया-संज्ञा पुं० [हिं० मिरगी+इया (प्रत्य॰)] वह जिसे मिरगी । कहते हैं। का रोग हो। विशेष-इस फली का क्षुप मकोय के क्षुप के समान, पर मिरगी-संज्ञा स्त्री० [सं० मृगी ] एक प्रसिद्ध मानसिक रोग देखने में उससे अधिक झाबदार होता है; और प्रायः सारे जिसका बीच बीच में दौरा हुआ करता है और जिसमें भारत में इसी फली के लिए उसकी खेती की जाती है। रोगी प्रायः मूर्छित होकर गिर पड़ता है, उसके हाथ-पैर इसके पसे पीछे की ओर चौड़े और आगे की ओर अनीदार ऐंठने लगते हैं और उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। होते हैं। इसके लिए काली चिकनी मिट्टी की अयथा याही कभी कभी रोगी के केवल हाथ-पैर ही ऐंठते हैं और उसे बांगर मिट्टी की जमीन अच्छी होती है । दुम्मट जमीन में मूछो नहीं आती । अपस्मार रोग । भी यह क्षुर होता है। पर कड़ी और अधिक बालूवाली क्रि०प्र०-आना। मिट्टी इसके लिए उपयुक्त नहीं होती। इसकी बोआई मिरघ-संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धों के अनुसार एक बहुत बड़ी संख्या।। असाह से कार्तिक तक होती है। जाड़े में इसमें पहले मिरचा-संशा पुं० [सं० मरिच ] लाल मिर्च। सफेद रंग के फूल आते हैं और तब फलियाँ लगती है। ये मिरचाई-संज्ञा स्त्री० दे० (१) "मिर्च" । (२) दे. “काला दाना", फलियाँ आकार में छोटी, बड़ी, लंबी, गोल अनेक प्रकार की मिरचियागंध-संज्ञा पुं० [हिं० मिर्च+गंध ] रूसा घास । होती है। कहीं कहीं इसका आकार नारंगी के समान गोल मिरची-संज्ञा स्त्री० [हिं० मिर्च ] छोटी, पर बहुत तेज लाल मिर्च ।। और कहीं कहीं गाजर के समान भी होता है; पर साधा. मिरज़ई-संज्ञा स्त्री० [फा० मिरजा ] एक प्रकार का बंददार अंगा रणत: यह उंगली के घराबर लंबी और उतनी ही मोटी जो कमर तक और प्रायः पूरी बाँह का होता है। होती है। इन फलियों का रंग हरा, पीला, काला, नारंगी मिरज़ा-संक्षा पुं० [फा०] (1) मीर या अमीर का लड़का।। या लाल होता है और ये कई महीनों तक लगातार फलती