पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४६

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फ्राबारा २३३९ बंकवा फौलादी जिरह । (२) । कठिन । मज़बूत । जैसे, फ्रीमेसनरी-संज्ञा स्त्री० [ अं० ] एक प्रकार का गुप्त संघ या सभा फौलादी बदन । जिसकी शाखा-प्रशाखाएँ युस्प अमेरिका तथा उन सब संज्ञा स्त्री० बल्लम की छड़ । भाले की लकड़ी। स्थानों में हैं जहां पूरोपियन है। नौवारा-संज्ञा पुं० दे. "फुहारा"। विशेष—इस सभा का उद्देश्य समाज की रक्षा करनेवाले सत्य, फ्याहुर-संज्ञा पुं० [सं० फेरु ] गीदड़ । शृगाल । दान, औदार्य, भ्रातृभाव आदि का प्रचार कहा जाता है। फ्रांसीसी-वि० [फांस ] (1) फ्रांस देश का। झांस देश फ्रीमेसनों की समाएँ गुप्त हुआ करती है और उनके बीच में उत्पन्न । (२) फ्रांस देश में रहनेवाला । फ्रांस । कुछ ऐसे संकेत होते हैं जिनसे वे अपने संघ के अनुयायियों देशवासी। को पहचान लेते हैं। ये संकेत कोनिया, परकार आदि फ्राक-संशा पुं० [अ० फ्राक ] लंबी आस्तीन का ढीला ढाला राजगीरों के कुछ औज़ार के चिह्न कहे जाते हैं। प्राचीन कुरता जिसे प्रायः बच्चों को पहनाते हैं। काल में पूरोप में उन कारीगरों या राजगीरों की इसी नाम यौ०-गंजी फ्राक-बनियान।। की एक संस्था थी जो बड़े बड़े गिरजे बनाया करते थे। फिस्केट-संशा स्त्री० [अं०] लोहे की चदर का बना हुआ चौखटा । इन्हीं संकेतों के कारण जो असली कारीगर होते थे वे ही जो हाथ से चलाए जानेवाले प्रेस के गले में जदा रहता भरती हो पाते थे। इसी आदर्श पर सन् १७१७ ई. में है। छापने के समय कागज़ के तख्ते को हाले पर रख फ्रीमेसन संस्थाएं स्थापित हुई जिनका उद्देश्य अधिक कर इसी चौखटे से उपर से बंद कर देते हैं, फिर बाले को ध्यापक रखा गया। गिरा कर प्रेस में दबाते हैं। कागज़ के तस्ते पर उन उन फ्रेंच-वि० [ अं०] फ्रांस देश का। जगहों पर जो फिस्फेट के छेद से खुली रहती हैं मैटर छप- फ्रेंच पेपर-संज्ञा पुं० [अं०] एक प्रकार का हलका पतला और जाता है और शेष अंश ढके रहने से सादा रहता है। चिकना काग़ज़ । फ्री-वि० [अं०] (१) स्वतंत्र । जिसपर किसी की दाब न हो। फ्रेम-संज्ञा पुं॰ [ अं० ] धौकला । (२) कर या महसूल से मुक्त । मुक्त। जैसे, फ्री स्कूल, फ्लाईवाय-संज्ञा पुं० [अ० ] प्रेस में वह लड़का जो प्रेस पर से फ्री पढ़ना । छपे हुए कागज़ जल्दी से झपट कर उतारता है और उन की संज्ञा पुं० [ अं०] वह वाणिज्य जिसमें माल के आने जाने पर आँख दौड़ा कर छपाई की त्रुटि की सूचना प्रेसमैन को पर किसी प्रकार का कर या महसूल न लिया जाय । देता है। फ्रीमेसन-संज्ञा पुं० [अ०] फ्रीमेसनरी नाम के गुप्त संघर्धा फ्लूट-संज्ञा पुं० [अं०] बंसी की तरह का एक अंगरेजी बाजा का सभ्य। ! जो फेंक कर बजाया जाता है। ब-हिंदी का तेईसवाँ व्यंजन और पवर्ग का तीसरा वर्ण। यह लोगों को ऋण देती है, लोगों की हरियाँ लेती और भेजती ओष्ठय वर्ण है और दोनों होठों के मिलाने से इसका उच्चा है तथा इसी प्रकार के दूसरे महाजनी के कार्य करती है। रण होता है। इसलिए इसे स्पर्श वर्ण कहते हैं। यह अल्प- ! बंकट-वि० [सं० वंक] वक। टेदी। उ०(क) ठठकति घलै प्राण है और इसके उबारण में संवार, नाद और घोष मटकि मुंह मोरे बंकट भौंह मरोरै।-सूर । (ख) भृकुटि नामक वान प्रयत्न होते हैं। ___ बंकट चारु लोचन रही युवती देखि। -सूर । बँउखा-संशा पुं० [सं० बाहु ] काले धागे का एक बंध जिसमें झम्बे। संशा पुं० [ ? ] हनुमान । (डि.) सोरहते हैं और जिसे त्रियाँ बाँह में कोहनी के ऊपर बांधती है। बंकनाल-संशा स्त्री० [हिक+नाल ] सुनारों की एक नली जो बंक-वि० [सं० वक्र, वंक ] (1) टेवा । सिरछा । (२) पुरुषार्थी। बहुत बारीक टुकड़ों की जोमाई करने के समय चिराग की विक्रमशाली । (३) दुर्गम। जिस तक पहुँच न हो सके। लौ फेंकने के काम आती है। बगनहा। उ.-(क)जो बंक गढ़ लंक सो ढका ढकेलि दाहिगो।- बंकराज-संज्ञा पुं० [सं० बंकराज ] एक प्रकार का सर्प । उ.- तुलसी । (ख) लंक से बंक महागढ़ दुर्गम गहिये दाहिये को। पातराज, दधराज, संकराज, शंकरपूर और मणिचूर आदि कही है।-तुलसी साँप बड़े कनवालों में हैं।-सर्याचात-चिकिरसा। संज्ञा पुं० [सं० बैंक) वह कार्यालय या संस्था जो लोगों का बंकवा-संशा पुं० [सं० बंक ] एक प्रकार का धान जो अगहन में रुपया सूद देकर अपने यहाँ जमा करती अथवा सूब से कर तैयार होता है। इसका चावल सैकड़ों वर्ष तक रह सकता है।