पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४६२

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मिश्रणीय मिसरी अधिक पदार्थों को एक में मिलाने की क्रिया। मेल। मिटभाषी-संशा पुं० [सं० मिष्टभाजि ] यह जो मीठा बोलता मिलावट । (२) जोड़ लगाने की क्रिया । जोड़ना । (गणित) हो। मधुरभाषी। मिश्रणीय-वि० [सं०] जो मिश्रण करने योग्य हो। मिलाने । मिष्टवाताद-संज्ञा पुं० [सं०] मीठा बादाम । योग्य । मिष्टान्न-संग पुं० [सं०] मिठाई । मिश्रता--संज्ञा स्त्री० [सं०] मिश्रित होने का भाव । मिलने या मिस-म! पुं० [सं० मिष 1 (9) बहाना। होला । जैसे,उन्होंने मिलाने का भाव । उपदेश के मिस ही उन्हें बहुत कुछ खरी-खोटी कह सुनाई। मिथधान्य-संज्ञा पुं० [सं० एक में मिलाए हुए कई प्रकार के (२) नकल । पापं । उ०-भाँड पुकार पीर-घस, मिस धान्य। गमुझे सब कोय ।--वृद। मिश्रपुष्पा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मेथी । म-10[फा०] तौबा । मिश्रवन-संज्ञा पुं० [सं०] भंटा। यौन-भियगर-नावे का काम करनेवाला । तगेरा। मिश्रवर्ण-संशा पुं० [सं०] (1) काला अगरु । (२) गना । पोंदा। समी० [अ० ] कुँआरी लड़की । कुमारी । मिश्रव्यवहार-संज्ञा पुं० [सं० ] गणित की एक किया। मिसकीन-वि० [अ० मिकीन 1 (१) जिसमें कुछ भी सामर्थ्य या मिश्रशब्द-संज्ञा पुं० [सं०] खच्चर । चल न हो । बेचारा । दीन । (२) गरीव । निधन । (३) मिश्रित-वि० [सं०] एक में मिलाया हुआ। मिश्रण किया हुआ। मीधा-मादा। मिश्रिता-संज्ञा स्त्री० [सं० ] मंदा आदि सात प्रकार की संक्रांतियां मिसकीनता*-संज्ञा बा | अ० गिमकीन+ता (सं, प्रत्य॰)] में से एक प्रकार की संक्रांति । वह सूर्य-संक्रमण जो दानता । ग़रीबी । नम्रता । उ०—पही दरबार है गरय ते कृत्तिका और विशाखा नक्षत्र के समय हो। सरथ हानि, लाभ जोग टेम को गरीवी मिस कीमता। मिश्री-संशा पुं० [सं० मिश्रिन् ] (१) मिलानेवाला । मिश्रण करने --तुलन्पी । वाला । (२) एक नाग का नाम । मिसकीनी-संशा ग्री० [अ० मिसकीन होने का भाव । दीन संशा स्त्री० दे. “मिसरी"। या दरिद्र होने का भाव। मिश्रीकरण-संज्ञा पुं० [सं०] मिलाने की क्रिया। मिश्रण मिनन-शा F10 [हिं० गिसना=मिलना ] ऐसी भूमि जिसकी करना। मिट्टी में वार भी मिली हो। बाद मिली हुई मिट्टी की मिश्रीतुत्थ-संश। पुं० [सं०] खपरिया। खपर । संग बसरी। जमीन । मिश्रेया-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मधुरिका । मोरी। (२) एक मिसना-वि.० अ० [सं. मिश्रा ] मिश्रित होना । मिलना । प्रकार का साग । (३) शतपुष्पा । तालपर्ण। नि० अ [हिं० मीसना का अक० रूप मजा या मला मिश्रोदन-संशा पुं० [सं०] खिचड़ी। जाना । मीसा जाना। मिप-संज्ञा पुं० [सं०] (1) छल । कपट । (२) बहाना । होला। मिसर-संज्ञा पुं० दे० "मिस्र"। मिस । (३) ईर्ष्या । डाह। (४) पर्दा। होद । (५) दर्शन। संज्ञा पुं० दे. "मिश्र" । (६) सेचन । सींचना। मिसरा-संज्ञा पुं० [अ० मिसरभ ] कविता, विशेषतः उर्दू या मिपि-संशा स्त्री० [सं० ] (1) जटामांसी । (२) सोभा। (३) फारसी आदि की कविता का एक चरण । पद । सौंफ । (४) अजमोदा । (५) खस । उशीर । महा०—मिसरा लगाना- किमी एक मिसरे में अपनी ओर से मिषिका-संशा स्त्री० [सं०] (1) सोआ। (२) सौंफ। (३) रचना करके दूमरा मिसरा जोड़ना। जटामांसी । बालछन् । यो०-मिसरा तरह। मिपी-संज्ञा स्त्री० दे० "मिषि"। मिसग तरह--संज्ञा पुं० [अ० मिसरा+का० तरह } वह दिया मिए-संशा पुं० [सं०] मीठा रस । हुआ मिसरा जिसके आधार पर उसी तरह की गजल कही वि० (१) मीठा । मधुर । (२) सेंका, भूना या पकाया जाती है। पूर्ति के लिए दी हुई (उर्दू या फारसी कविता हुआ। की) समस्या । मिष्टनिंब-संज्ञा पुं० [सं०] मीठी नीम । मिसरी-संज्ञा स्त्री० [मिन देश से] (1) मिश्र देश का निवासी। (२) मिष्टनिंधु-संज्ञा पुं० [सं०] मीठा नीबू । जमीरी नीबू । मित्र देश की भापा । (३) दोबारा बहुत साफ़ करके जमाई मिष्टपाक-संज्ञा पुं० [सं० ] मुरब्बा। हुई दानेदार था रवेदार चीनी जो प्रायः कूजे या कतरे के मिष्टपाचक-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो बहुत अच्छा भोजन बनाता रूप में बाजारों में बिकती है। यह वैद्यक में स्निग्ध, हो। जिसका बनाया भोजन बहुत स्वादिष्ट होता हो। धातुवर्धक, मुखप्रिय, बलकारफ, दस्तावर, हलकी, तृप्तिकारी,