पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४६७

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मीननेत्रा २७५८ मीमांसा मीननेत्रा- श्री. [सं०] गाहर दृश्य । करता हो। (२) वह जो मीमांसा शास का ज्ञाता हो । मीनपित्त-।। पु. ( सं०] कुटकी नामक औषधि । मीमांसा का पंभित । (३) पूर्व मीमांसा के सूत्रकार जैमिनि मीनरंक-संा पुं० [सं०] जरकौवा । मुरगात्री। ऋपि । (४) कुमारिल भट्ट का एक नाम । (५) भाष्यकार मीनगंग-सं पुं० [सं०] (1) मरंग नामक पक्षी जो सरली शवरस्वामी का एक नाम । (६) रामानुज का एक नाम | खाता है। (२) जल-कीआ। (७) माधवाचार्य का एक नाम । मीनर- संपुं० सं० ] शाग्योट वृक्ष । सहोरा । मीमांसन-संशा पुं० [सं०] [वि० मीमांसित ] किसी प्रक्ष की मीनाडी-सशास्त्री० [सं० ] एक प्रकार की शक्कर । मीमांसा या निर्णय करने का कान । मीना-संशा स० [सं० ] ऊपा की कन्या का नाम जिसका विवाह | मीमांसा-संशा सी० [सं०] (1) किसी तश्व का विचार, कश्यप में हुआ था। निर्णय या विवेचन । अनुबान, तर्क आदि द्वारा यह स्थिर मंा पुं० [10] राजपूताने की एक प्रसिद्ध योद्वा जाति । करना कि कोई बात कैसी है । (२) हिंदुओं के छः दर्शनों इस जाति के लोग बहुत वीर होते हैं और युद्ध में इनकी में से दो दर्शन जो पूर्व मीमांया और उत्तर मीमांसा कह- बहुत प्रवृत्ति होता है। किसी समय ये बहुत घल-शाली थे लाते है। ( साधारणत: 'मीमांसा' शब्द से पूर्व मीमांसा और प्राय: लूटमार करके अपना निर्वाह करते थे। महाराणा का ही ग्रहण होता है। उत्तर मीमांसा 'चंदांत' के नाम से प्रताप को अपने युद्धों में इनमें बहुत सहायता मिली थी। ही अधिक प्रसिद्ध है ।) (३) जैमिनि कृत दर्शन जिने पूर्व मशा गुं० [ 0] (1) रंग थिरंगा शीशा । (२) एक प्रकार मीमांसा कहते हैं और जिसमें वेद के यज-परफ वचनों की का नीले रंग का कीमती पत्थर । (३) की सिया। (४) सोने, व्याख्या बड़े विचार के साथ की गई है। चाँदी आदि पर किया जानेवाला रंग बिरंग का काम।। विशेष—सून जैमिनि के हैं और भाष्य शबर स्वामी का है। यौ०-मीनाकारी। मामांच्या पर कुमारिल भट्ट के "कातंत्रवासिक' और 'इलोक- (५) शराब रम्बने का कैंटर या सुराही । वार्तिक' भी प्रसिद्ध है। माधवाचार्य ने भी "जैमिनीय मीनाकार-संशा ५० [ 410 ) वह जो चाँदी या सोने आदि पर न्यायमाला विस्तार" नामक एक भाष्य रचा है। मामांसा- गान काम बनाता हो। मना करनेवाला। शास्त्र में यज्ञों का विस्तृत विवंचन है, इसमें इसे "यज्ञ-विद्या" मीनाकारी-IN. [ फा ] (1) सोने या चाँदी पर होनेवाला भी कहते हैं। बारह अध्यायों में विभक्त होने के कारण यह रंगीन काम । (२) कि काम में निकाली या की हुई बहुत मीमांसा 'द्वादशलक्षणी' भी कहलाती है। बड़ी बारीकी। न्यायमाला-विस्तार में माधवाचार्य ने मीमांसा-सूत्रों के महा०—मीनाकारी छोटना भ्यर्थ का छिद्रान्वेषण करना । निरर्थक विषय को संक्षेप में इस प्रकार बतलाया है-पहले अध्याय दोष निकलना । बाल का माल निकालना। में विधि, अर्थवाद, मंत्र, स्मृति और नामधेय की प्रमाणता मीनाक्ष-वि० सं०] मछली के समान सुदर आँखोवाला। का विचार है। दूसरे में अपूर्व कर्म और उसके फल का संजा पुं० [सं०] एक राक्षस का नाम । प्रतिपादन तथा विधि और निषेध की प्रक्रिया है। तीसरे में मीनाक्षी-संवा श्री० [सं० 1 (1) कुबेर की कन्या का नाम । (२) अतिलिंग वाक्यादि की प्रमाणता और अप्रमाता कही गई गादर दृव । (३) बाबा की। (४) शक्कर । चीनी । । है; चौथे में नित्य और नैमित्तिक यज्ञों का विचार है; पाँच मीनाभ्रीण-सं. ५० म० ] खंजरीट पक्षी । ममोना । में यज्ञों और श्रति-वाक्यों के पूर्वापर संबंध पर विचार खंजन। किया गया है। छठे में यज्ञों के करने और करानेवालों के मीनार-सशा 0 1 0 मना । (१) ईंट, पत्थर आदि की वह अधिकार का निर्णय है; सातवें और आठवें में एक यज्ञ युनाई जो प्राय: गोलाकार चलती है और ऊपर की ओर की विधि को दूसरे यज्ञ में करने का वर्णन है; नवें में मंत्रों बहुत अधिक ऊँचाई तक चली जाती है । यह प्राय: किसी के प्रयोग का विचार है, दसवें में यज्ञों में कुछ कर्मों के प्रकार की स्मृति के रूप में तैयार की जाती है। स्तंभ । करने या न करने से होनेवालेदोष का वर्णन है। ग्यारह लाट । (२) मसजिदी आदि के कोनों पर बहुत ऊँची उठी में तंत्रों का विचार है और बारहवें में प्रसंग का तथा कोई हुई इन्दी प्रकार की गोल इमारत जो खंभे के रूप में इच्छा पूर्ण करने के हेतु यज्ञों के करने का विवेचन है । इसी होती है। यारहवें अध्याय में शब्द के नित्यानित्य होने के संबंध में भी मीनाग-संगा. दे. मीनार"। सूक्ष्म विचार करके शब्द की नित्यता प्रतिपादित की गई मीनालय-संा पुं० [सं०] समुद्र । है। मीमांसा में प्रत्येक अधिकरण के पाँच भाग हैं- मीमांसक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह जो किसी बात की मीमांसा विषय, संशय, पूर्वपक्ष, उत्तरपक्ष और सिद्धांत । अत: