पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४७१

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मुँड़ाई २७६२ मुंसरिम एक प्रकार की लिपि जिसमें मात्राएँ आदि नहीं होती और वह ऊपरी भाग जो सबसे ऊपर की छत के चारों ओर कुछ जिसका व्यवहार प्रायः कोठीवाल करते हैं। कोठीवाली कुछ उठा हुआ होता है। (२) किसी प्रकार का बांधा (६) एक प्रकार का जूता जिसमें नोक नहीं होती और जो हुआ पुश्ता। प्राय: सिपाही लोग पहना करते हैं। क्रि०प्र०-बैंधना।-बाँधना। सज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी। | मुंडरी-संशा स्त्री० दे "मुंडेर"। संज्ञा पुं० [ देश. ] छोटा नागपुर में रहनेवाली एक असभ्य मुंडो-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुहना+ओ (प्रत्य॰) 1(1) वह स्त्री जिसका जाति। सिर मुंडा गया हो। (२) स्त्रियों की एक प्रकार की गाली मुंड़ाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंडना-+आई (प्रत्य॰)] (1) मुंबने या जिससे प्रायः विधवा का बोध होता है। रॉड़। मुँबाने की क्रिया अथवा भाव । (२) मूंडने या मुंडाने के मुहा--मुंडो का--एक प्रकार की बाजारी गाली जिसका अर्थ बदले में मिला हुआ धन । हरामी या वर्णसंकर आदि होता है। विधवा स्त्री के गर्भ से उसके मुंडाख्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी। वैधव्य काल में उत्पन्न पुरुष । मुंडासन-संज्ञा पुं० [सं०] योग के अनुसार एक प्रकार का आमन। दया।-संज्ञा स्त्री० [हि. मोढ़ा+इया (प्रत्य०) बैठने का छोटा मंडासा -संज्ञा पु० [हिं० मुंड-सिर+आसा (प्रत्य०)] सिर पर मोड़ा। बाँधने का साफा। | मुंतकिल-वि० [अ० j एक स्थान से दूसरे स्थान पर गपा हुआ। क्रि० प्र०-कसना । बाँधना । मुहा--मुंतक्किल करना एक के नाम से हटाकर दूसरे के नाम डालाबंद-संज्ञा पुं० [हिं० मुँडासा+वंद (प्रत्य.) ] वह जो कपड़े न करना । दूसरे को देना । जैसे, जायदाद मुंतक्किल करना। में पगड़ी बनाने का काम करता हो। दस्तारबंद । मुंतज़िम-संशा धुं० [अ० ] वह जो इंतजाम करता हो । प्रबंध मुंडा हिग्न-संज्ञा पुं० [हिं० मुंडा-+हिरन ] पाठी मृग । करनेवाला । व्यवस्था करनेवाला । मुंडित-संज्ञा पुं० [सं०] लोहा । | मुंतज़िर-वि० { अ.] इंतजार करनेवाला । प्रतीक्षा करनेवाला । वि. मुंडा हुआ। राह देखनेवाला । मुंडितिका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] गोरखमुंडी । क्रि० प्र०—रखना ।-रहना ।—होना। मुंडिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] कस्तूरी मृग। मैंदना-क्रि० अ० [सं० मुद्रण ] (१) खुली हुई वस्तु का ढक मुंडिभ-संक्षा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋपि जो वाजस्नेय संहिता । जाना । बंद होना । जैसे, ऑस्त्र मुंदना । (२) लुप्त होना। के कई मंत्रों के द्रष्टा या कर्ता कहे जाते हैं। छिपना। जैसे, दिन मुंदना । सूर्य मुँहना। (३) छिद्र मुँडिया -संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंड=सिर का स्त्री० ] मूड । सिर । आदि का पूर्ण होना । केन्द्र, बिल आदि बंद होना। संज्ञा पुं० [ हि मुंडना+इया (प्रत्य॰)] वह जो सिर मुंडा- संया०क्रि०-जाना। कर किसी साधू या जोगी आदि का शिष्य हो गया हो। मैंदग-संज्ञा पुं० [हिं० मुंदरी] (1) एक प्रकार का कुंडल जो संन्यासी । उ०—जिनके जोग जोग यह ऊधो, ते मुंडिया जोगी लोग कान में पहनते हैं। (२) एक प्रकार का आभू. यसै कासी । -सूर। पण जो कान में पहना जाता है। मुंडी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भूडना+ई (प्रत्य॰)] (१) वह स्त्री जिसका मुंदरी-संज्ञा स्त्री० [सं० मुद्रा ] (१) उँगली में पहनने का साक्षा सिर मुंडा हो । (२) विधया । राँड । ( गाली) (३) एक , छल्ला । (२) अँगूठी । प्रकार की शिना नोकवाली जूती । मुंशियाना-वि० [अ० मुंशो+हिं. श्याना (प्रत्य॰)] मुंशियों का संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी। सा। मुंशियों की तरह का । संज्ञा पुं० [सं० मुंडिन् } (8) वह जिसका मुंडन हुआ हो। मुंशी-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) लेख या निबंध आदि लिखनेवाला। मुँडा हुआ। (२) नापित । हजाम । (३) संन्यास : लेखक । (२) लिखा-पढ़ी का काम या प्रतिलिपि आदि मुंडिया। करनेवाला । मुहरिर । लेखक। (३) वह जो बहुत सुदर मुंडीरिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] गोरखमुंडी। अक्षर, विशेषतः फारसी आदि के अक्षर, लिखता हो। मुँडेर-संज्ञा स्त्री० [हिं० मुंडेरा ] (1) मुंडेरा । (२) खेत के चारों मुंशीखाना-संज्ञा पुं० [अ० मुंशी+फा० खाना ] वह स्थान जहाँ ओर सीमा पर अथवा क्यारियों में का उभरा हुआ अश। मुंशी या मुहरि र आदि बैठकर काम करते हों। दफ्तर । मेंड। डोला। मुंशीगिरी-संज्ञा स्त्री० [अ० मुंशी+का. गिरी (प्रत्य॰)] मुंशी का कि० प्र०-बँधना ।—बाँधना। । काम या पद। मुँडेरा-सज्ञा पुं० [हिं० भू-सिर+एरा (प्रत्य॰)] (1) दीवार मंसरिम-संज्ञा पुं० [अ०] (१) प्रबंध या व्यवस्था करनेवाला ।