पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४७२

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मुंसलिक २७६३ इंतज़ाम करनेवाला । (२) कचहरी का यह कर्मचारी जो दातर का प्रधान होता है और जिसके सुपुर्द मिसलें आदि ठीक करना और ठिकाने से रखना होता है। मुंसलिक-वि० [अ० ] साथ में बांधा या नरथी किया हुआ। (कच.) मुंसिन-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) वह जो न्याय करता हो। इ-साफ करनेवाला । (२) दीवानी विभाग का एक न्यायाधीश जो छोटे छोटे मुकदमों का निर्णय करता है और जो सब-जज से छोटा होता है। मुंसिनी-संज्ञा स्त्री० [अ० मुंसिफ+ई (प्रत्य॰)] (1) न्याय करने का काम । (२) मुंसिफ का काम या पद। (३) मुंसिफ की अदालत । मुंसिफ की कचहरी । मुँह-संज्ञा पुं० [सं० मुख ] (1) प्राणी का वह अंग जिससे वह बोलता और भोजन करता है । मुख-विवर । विशेष-प्राय: सभी प्राणियों का मुँह सिर में होता है और उससे वे खाने का काम लेते हैं। शब्द निकालनेवाले प्राणी उससे बोलने का भी काम लेते हैं। अधिकांश जीवों के मुँह में जीभ, दाँत और जबड़े होते हैं; और उसे खोलने या बंद करने के लिए आगे की ओर ओंठ होते हैं । पक्षियों तथा कुछ और जीवों के मुंह में दाँत नहीं होते । कुछ छोटे छोटे जीव ऐसे भी होते हैं जिनका मुंह पेट या शरीर के किसी और भाग में होता है। (२) मनुष्य का मुख-विवर। मुहा०—मुंह आना-मुँह के अंदर छाले पड़ना और चेहरा सूजना। (प्रायः गरमी आदि के रोग में पारा आदि कुछ विशिष्ट औषध खाने से ऐसा होता है। ) मुंह का कच्चा-(१) (घोडा) जो लगाम का झटका न सह सकें। (२) जिसकी बात का कोई विश्वास न हो। सूठा । (३) जो किसी बात को गुप्त न रख सकता हो । हर एक बात सय से कह देनेवाला । मुंह का कहा=(१) (घोडा) जो हॉकनवाले के इच्छानुसार न चले । लगाम के संकेत को कुछ न समझनेवाला । (२) का । तेज । (३) उइंडतापूर्वक बातें करने- वाला। मुँह किलना मुँह का कोला या बंद किया जाना। मुंह की बात छीननाजो बात कोई दूसरा करना चाहता हो, वही आप कह देना । मुंह की मस्ती न उड़ा सकना--बहुत अधिक दुर्बल होना । मुंह कीलना-बोलने से रोकना । चुप करना । मुँह खराब करना=(१) जवान का स्वाद बिगाड़ना । (२) जवान से गंदी बातें कहना। मुँह खुलना- उइंडतापूर्वक बातें करने की आदत पड़ना । जैसे,—आजकल. तुम्हारा मुंह बहुत खुल गया है। किसी दिन धोखा खाओगे । मुंह खुलवाना-किसी को उदंडतापूर्वक बातें करने के लिए बाध्य करना । मुंह खुश्क होमा-दे० "मुँह सूखना" । मुंह खोलकर रह जाना कुछ कहते कहते लज्जा या संकोच के कारण चुप हो जाना । सहमकर चुप रह जाना । मुंह खोलना- (१) कहना । बोलना । (२) गालियाँ देना । खराब बातें कहना। (किसी को) मुँह चढ़ाना=(१) किसी को बहुत उइंड बनाना । बातें करने में धृष्ट करना । शोख करना । जैसे,-आफ्ने इप नौकर को बहुत मुंह चदा रखा है। (२) अपना पार्थवी और प्रिय बनाना । मुँह चलना=(१) भोजन होना । खाया जाना । (२) मुँह से व्यर्थ की बातें या दुर्वचन निकलना । मुँह चलाना (१) खाना । भोजन करना । (२) बोलना । बकना । (३) गालियाँ देना । दुर्वचन कहना । (४) दांत से काटना, विशेषतः घोडे का काटना । मुंह चिढ़ाना=किसी को चिढ़ाने के लिए उसकी आकृति, हाव-भाव या कथन की बहुत बिगाड़कर नकल करना । मुँह घूमकर छोड़ देना लज्जित करके छोड़ देना। शरमिंदा करके छोड़ देना । मुंह छुबाना-दे० "मुंह छूना"। मुँह छूना-[संशा मुँह-छुआई)-(१) नाम मात्र के लिए कहना। मन से नहीं, बल्कि ऊपर से कहना । जैसे,---मुँहछने के लिये वे मुझे भी निमंत्रण दे गए थे। (२) दिखौआ बात करना । मुँह जहर होना-कडुआ पदार्थ खाने के कारण मुंह में बहुत अधिक कमुआइट होना मुँह जठारना या जूठा करमा-नाम- मात्र के लिये कुछ खाना । मुंह जोड़ना=पास होकर आपस में धीरे धीरे बात करना । कानाफूसी करना । मुंह दालना- (१) किसी पशु आदि का खाद्य पदार्थ पर मुँह चलाना । (२) मुरगों का लडना या आक्रमण करना । (मुर्गबाज) मुँह तक आना- जबान पर आना । कहा जाना । मुँह थकना बहुत अधिक बोलने के कारण शिथिलता आना । मुँह थकाना=बहुत अधिक बोल- कर अपने आपको शिथिल करना 1 मुंह देना किसी पशु आदि का किसी बरतन या खाद्य पदार्थ में मुँह डालना । जैसे,—इस दूध में बिल्ली हुँह दे गई है। मुँह पकवना-बोलने से रोकना । बोलने न देना । जैसे,-कहो न, कोई तुम्हारा मुंह पकडता है ! मुँह पर न रखना-तनिक भी वाद न लेना। जरा भी न खाना । जैसे,-लबके ने कल से एक दाना भी मुंह पर नहीं रखा । मुंह पर बात आना=(१) कुछ कहने को जी चाहना । (२) कुछ कहना । मुँह पर मोहर करना बोलने से रोकना । कहने न देना । चुप कराना । मुँह पर लाना- मुँह से कहना । वर्णन करना । जैसे,—अपनी की हुई नेकी मुँह पर नहीं लानी चाहिए । मुंह पर हाथ रखना-बोलने से जबरदस्ती रोकना या मना करना । मुँह पसारकर दौड़ना कुछ पाने के लालच में बहुत उत्सुक होकर आगे बढ़ना । मुंह पसारकर रह जाना=(१) परम चकित हो जाना । इका का हो जाना । (२) लज्जित होकर रह जाना। शरमाकर रह जाना । मुंह पेट चलना=के दस्त होना । हैजा होना । मुंह फटना-चूना आदि लगने के कारण मुँह में छोटे छोटे धाव हो जाना । मुँह फाड़कर कहना बेहया बनकर