पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८२

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मुखमंडिका २०७३ मुखमंडिका-संशा स्त्री० [सं०] (1) वैद्यक के अनुसार एक आदि को मिलाकर बनाया हुआ वह चूर्ण जिससे मुँह की प्रकार का मुख-रोग। (२) इस रोग को अधिष्ठात्री देवी दुर्गंध दूर होती है और उसमें सुवाल आती है। मुखमंडितिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] बालकों का एक प्रकार मुखवासिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] सरस्वती। का रोग। मुखविपुला-संशा स्त्री० [सं०] आर्या छंद का एक भेद । मुखमला-संशा पुं० [अ० मनमसा=विकलता या कठिनता ] अगदा। मुखविष्ठा-संज्ञा स्त्री० [सं०] तेलाचट या सनकिरवा नाम का झमेला । मंझट । बखेरा। कीया। क्रि०प्र०-में परना। मुखदल-संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का मुखमाधुर्य-संज्ञा पुं० [सं०] भावप्रकाश के अनुसार श्लेष्माके कीड़ा जिसके काटने से वायु-जन्य पीया होती है। विकार से होनेवाला एक प्रकार का रोग जिसमें मुंह मीठा मुखव्यंग-संज्ञा पुं० सं०] मुंह पर पड़नेवाले छोटे छोटे दाग वैद्यक सा बना रहता है। के अनुसार अधिक क्रोध या परिश्रम करने के कारण वायु मुखमोद-संज्ञा पुं० [सं०] (१) सलई का वृक्ष । शल्लकी । (२) | और पित्त के मिल जाने से ये दाग होते हैं। इनसे कोई कार __ काला सहिजन। तो नहीं होता, पर मुख की शोभा दिगद आती है। मुखम्मस-वि० [अ०] जिसमें पाँच कोने या अंग आदि हों। मखशफ-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो कटु वचन कहता हो। मुखर । संज्ञा पुं० उर्दू या फारसी की एक प्रकार की कविता जिसमें मुखशुद्धि-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) मंजन या दातन आदि की एक साथ पाँच बरण या पद होते हैं। सहायता से मुंह साफ़ करना । (२) भोजन के उपरांत पान, मुख्यंत्रण-संज्ञा पुं० [सं०] घोरे या बैल आदि की लगाम । सुपारी आदि खाकर मुंह शुद्ध करना । मुखर-वि० [सं०] (1) जो अप्रिय बोलता हो । कटुभाषी। मुखशोधन-संज्ञा पुं० [सं० ] यह पदार्थ जिसके खाने से मुंह (२) बहुत बोलनेवाला। बकवादी। (३) प्रधान । अग्रगण्य । शुद्ध होता हो। (२) दालचीनी । (३) सज । संज्ञा पुं० (७) कौ । (२) शंख । वि० चरपरा। मुखरोग-संज्ञा पुं० [सं० ] ओंठ, मसूड़े, दाँत, जीभ, तालू या | मुखशोधी-संज्ञा पुं० [सं० मुखशोधिन् ] (1) मुँह को शुद्ध गले आदि में होनेवाले रोग जो वैद्यक के अनुसार सब करनेवाला पदार्थ । (२) जैवीरी नीबू। मिलाकर ६७ प्रकार के माने गए हैं। इन से ओंठों में मखशोष-संज्ञा पुं० [सं०] (1) तृषा । प्यास । (२) प्याप या होनेवाले ८ प्रकार के, मसूदरों में होनेवाले १३ प्रकार के, गरमी से मुंह सूखना। दांतो में होनेवाले ८ प्रकार के, जीभ में होनेवाले ५ प्रकार | मुखसंभव-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) भगवान् के मुख से उत्पन्न, के. तालू में होनेवाले ९ प्रकार के, कंठ में होनेवाले 14 बामण । (२) पुष्करमूल । पुहकरमूल । प्रकार के और सारे मुख में होनेवाले ३ प्रकार के है। मखसिंचन मंत्र-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का मंत्र जिससे मुखलांगल-संज्ञा पुं० [सं०] सूअर । जल फूंककर उस आदमी के मुंह पर छीटे दिए जाते है, मुखलिसी-संशा स्त्री० [अ०] छुटकारा । रिहाई। जिसके पेट में किसी प्रकार का विष उतर जाता है। क्रि० प्र०-करना ।-देना।—पाना।-मिलना।-होना। मुखसुर-संज्ञा पुं० [सं० ] तादी। मुखलेप-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्रकार का मुख-रोग। मुंह मखसूची-संज्ञा स्त्री० [सं० ] अमरे का वृक्ष । आनातक । का चट चट करना । (२) वह लेप जो मुँह पर शोभा या मखस्थ-वि० [सं०] जो ज़बानी याद हो । कंठस्थ । बर-ज़बान । सुगंध के लिए लगाया जाय। मुखस्राव-संज्ञा पुं० [सं०] (१) थूक । लार । (२) बालकों का मुखवल्लभ-संशा पुं० [सं०] (1) वह जो खाने में अच्छा लगे । एक रोग जिसमें उनके मुंह से बहुत अधिक लार बहसी स्वादिष्ट । (२) अनार का पेड़ । है। कहते है कि का से दृक्षित स्तन पीने से यह रोग मखवाचिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] प्राणी या पाढा नाम की होता है। टता। अंबष्ठा। मखाग्नि-संशा स्त्री० [सं०] (1) जंगल की आग। दावानल । मुखवाद्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मुँह से वम् वम् शन करना। (२) मृत व्यक्ति को चिता पर रखकर पहले उसके मुंह में ( शिवपूजन में) (२) मुंह से फेंककर बजाया जानेवाला आग लगाने की किया। बाजा । जैसे, शंख, शहनाई आदि । मुखाम-संशा पुं० [सं०] (1) भोंठ। (२) किसी पदार्थ का मुखवास-संशा पुं० [सं०] (1) गंधतृण । (२) सरबूज की अगला भाग। वि. जो ज़बानी याद हो। कंठस्थ । बर-जबान । जैसे,- मखवासन-संज्ञा पुं० [सं०] अनेक प्रकार की सुगंधित घोषधियों | उसे सारी गीता मुखाम है। ६९४