पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८३

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मुखातिब २७७४ मुगल पठान मस्वातिष-वि० [फा० ] जिससे बात की जाय। जिससे कुछ मुख्य-वि० [सं० ] सब में बचा। अपर या आगे रहनेवाला । कहा जाय। प्रधान। भेडा मुहा--(किपी की तरफ) मुखातिब होना=(१) किसी की संज्ञा पुं० (१) यज्ञ का पहला कल्प । (२) वेद का अध्ययन ओर घूम कर उससे बातें करना । (२) किसी की बात सुनने के और अध्यापन । (३) अमांत मास । लिए उसकी ओर प्रवृत्त होना । मुख्यचांद्र-संज्ञा पुं० [सं०] चांद मास के दो विभागों में से मखापेक्षक-संज्ञा पुं० [सं०] दूसरों का मुंह ताकनेवाला दूसरों एक । शुक्ल प्रतिपदा से लेकर अमावास्या तक का काल जो के सहारे रहनेवाला । दूसरों की कृपा पर रहनेवाला । 'अति चांद्र मास' भी कहलाता है। वि० दे० "मास"। मखापेक्षा-संज्ञा स्त्री० [सं०] दूसरों का मुँह साफना । दूसरों के मुख्यता-संज्ञा स्त्री० [सं०] मुख्य होने का भाव । प्रधानता। ___ आश्रित रहना। ता। मुखापेक्षी-संशा पुं० [सं० मुखापेक्षिन् ] वह जो दूसरों का मुंह मुख्यसर्ग-संज्ञा पुं॰ [सं०] स्थावर सष्टि । ताकता हो। दूसरों के सहारे रहनेवाला । दूसरे की कृपा- मुगदर-संज्ञा पुं० [सं० मुग्दर ] लकड़ी की एक प्रकार की गावदुमी, रष्टि के भरोसे रहनेवाला । आश्रित । लंबी और भारी मुगरी जिसका प्रायः जोड़ा होता है और मखामय-संशा पुं० [सं०] मुँह में होनेवाला रोग । मुखरोग। जिसका उपयोग व्यायाम के लिए किया जाता है। जोदी। मुखार्जक संज्ञा पुं० [सं०] बनतुलसी का पौधा । बबरी विशेष—इसमें ऊपर की ओर पकड़ने के लिए पतली मुठिया होती है और नीचे का भाग बहुत मोटा होता है। दोनों मुखालिफ़-वि० [ अ० ] (1) जो खिलाफ हो । विरुख पक्ष का । हाथों में एक एक मुगदर उठा लिया जाता है और विरोधी । (२) शत्रु । दुश्मन । (३) प्रतिद्वंद्वी।। बारी से हर एक मुगदर पीठ के पीछे से धुमाकर सामने मुखालिफ़त-वि० [अ०] (1) विरोध । (२) शत्रुता । दुश्मनी । लाते और उलटे बल में ऊपर की ओर खड़ा करते हैं। इससे मुखालु-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का बया मीठा कद जिसे बाहुओं में बहुत बल आता है। स्थूलकंद, महाकंद या दीर्धकद भी कहते हैं। वैद्यक में क्रि० प्र०-फेरना ।—हिलाना । यह मधुर, शीतल, रुधिकारी, वातवर्धक तथा पित्त, शोष, । मुगना-संज्ञा पुं० [हिं० मुनगा ] सहिजन । मुनया। दाह और प्यास को दूर करनेवाला माना गया है। मुगरा-संज्ञा पुं० दे० "मोगरा"। मुखासव-संज्ञा पुं० [सं०] (1) थूक । (२) लार । मगरेला -संज्ञा पुं० [हिं० मैंगरैला ] कलौंजी या मंगरैला नामक मुखारत्र-संज्ञा पुं० [सं०] केकदा। दाना, जिसका म्पवहार मसाले में होता है।। मानव-संशः पुं० [सं०] मुह से बहनेवाली धूक या लार । मुगल-संज्ञा पुं० [फा०] [स्त्री० मुगलानी ] (1) मंगोल देश का मुखिक-संज्ञा पुं० [सं०] मोखा नामक वृक्ष । निवासी। (२) तुकों का एक श्रेष्ठ वर्ग जो साप्तार देश का मुखिया-संज्ञा पुं० [सं० मुख्य+इया (प्रत्य॰)] (1) नेता । प्रधान । निवासी था। इस वर्ग के लोगों ने इधर कुछ दिनों तक सरदार । जैसे,-वे अपने गाँव के मुखिया हैं। (२) वह भारत में आकर अपना साम्राज्य स्थापित करके चलाया था। जो किसी काम में सबसे आगे हो। किसी काम को सब इस वर्ग का पहला सम्राट् बाबर था, जिसने सन् १५२६ ई. से पहले करनेवाला । अगुआ। (३) बल्लभ संप्रदाय के में भारत पर विजय प्राक्ष की थी। अकबर, जहाँगीर, मंदिरों का वह कर्मचारी जो मूर्ति का पूजन करता और शाहजहाँ और औरंगजेब इसी जाति के और बायर के शज भोग आदि लगाता है। ऐसा कर्मचारी प्रायः पाफ विद्या थे। इन लोगों के शासन काल में साम्राज्य बहुत विस्तृत में भी निपुण हुआ करता है। .. हो गया था। परंतु औरंगजेब की मृत्यु (सन् १७०७ ई.) मुखुली-संज्ञा स्त्री० [सं०] बौदों की एक देवी का नाम । के उपरांत इस साम्राज्य का पतन होने लगा और सन् मुखोल्का-वि० [सं० ] दावामि । १८५७ में उसका अंस हो गया । (३) मुसलमानों के चार मख्तलिफ़-वि० [अ०] (1) भिन्म । अला । पृथक । (२) अनेक वों में से एक वर्ग जो शेखों और सैयदों से छोटा तथा प्रकार का । तरह तरह का। पठानों से बड़ा और श्रेष्ठ समझा जाता है। मुरष्तसर-वि० [अ०] (1) जो थोड़े में हो। संक्षिप्त । (२) मुगल -वि० [फा० मुगल+ (प्रत्य॰)] मुगलों का सामुगलों छोटा । (३) अल्पायोड़ा। की तरह का । जैसे, मुगलई पाजामा, मुगलई कुरता मुस्तार-संज्ञा पुं० दे० "मुखतार"। मुगलाई हड्डी। विशेष—इसके यौगिक शब्दों के लिए दे. "मुखसार" के मुगल पठान-संज्ञा पुं० [फा०] एक प्रकार का खेल जो जमीन पर यौगिक । खाने खींचकर सोलाकंकरियों से खेला जाता है। गोटी।