पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८५

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को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उसकी गामची या दुमची संबंध कारक को छोड़कर शेष कारकों में, विभक्ति में पिछादी की रस्सी के साम लगा रहता है। लगने से पहले प्राप्त होता है। जैसे, मुझको, मुझसे, क्रि०प्र०-बाँचना ।-लगाना । मुभमें। मुहा०-मुजम्मा लगाना-ऐसा काम करना जिससे कोई बात या मुझे-सर्व० [सं० मह्यम् , प्रा० मज्झम ] एक पुरुषवाचक सर्वनाम काम रुक जाय । रोक या आड़ लगाना । मुजम्मा लेना-आड़े जो उत्तम पुरुष, एकवचन और उभयलिंग है और वक्ता या हाथों लेना । खबर लेना। ठीक करना । उसके नाम की ओर संकेत करता है। यह "मैं" का वह मुजरा-संज्ञा पुं० [म.] (1) पहजो जारी किया गया हो। (२) रूप है जो उसे कर्म और संप्रदान कारक में पास होता है। वह रकम जओ फिली रकम में से काट ली गई हो । जैसे, इसमें लगी हुई एकार की मात्रा विभक्ति का चित्र है, इस- हमारे निकलते थे; वह हमने उसमें से मजरा लिए इसके आगे कारक चिह्न नहीं लगता । मुझको। जैसे,--- कर लिए। (क) मुझे वहाँ गए कई दिन हो गए । (ख) मुझे आज कई कि०प्र०—करना ।—देना ।—पाना। सेना। पत्र लिखने हैं। (३) किसी बड़े या धनवान आदि के सामने जाकर उसे मुटकना-वि० [हिं० मोटा+कना (प्रत्य॰)] आकार में छोटा या सलाम करना । अभिवादन । (४) वश्या का वह गाना जो साधारण, पर सुन्दर । जैसे, मुटकना सा बाग । बैठकर हो और जिसमें उसका नाच न हो। मुटका-संज्ञा पुं० [हिं० मोटा ? ] एक प्रकार का रेशमी वस्त्र जो क्रि० प्र०-फरना। सुनना ।-सुनाना।—होना । अधिकतर बंगाल में बनता है और धोती के स्थान में पह- मुजरद-वि० [अ० ] (1) जिसके साथ और कोई न हो। अकेला। नने के काम में आता है। (२) जिसका विवाह न हुआ हो। बिन-ब्याहा । (३) | मुटकी-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] कुलथी नामक अन्न । स्वरथी । जिसने संसार का त्याग कर दिया हो। मुटमुरी-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का भदई धान । मुजरंध-वि० [अ० ] सजरुवा किया हुआ । आजमाया हुआ। मुटाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मोटा+ई (प्रत्य॰)] (1) मोटापन । परीक्षित । जैसे, मुजरीव दया, मुजरंब नुसखा । स्थूलता । (२) पुष्टि । (३) अहंकार । धर्महा शेखी। (४) मुझराई-संज्ञा पुं० [हिं० मुजरा+ई (प्रत्य॰)] (1) वह जो मुजरा यह बेपरवाही या अभिमान को भरपूर भोजन मिलने या या सलाम करता हो । (२) वह व्यक्ति जो केवल सलाम | कुछ धन हो जाने से हो जाय । करने के लिए वेतन पाता हो। (३) बह जो मरसिया मुहा०-मुटाई चढ़ना=बहुत अधिक अभिमान होना । शेखी होना । पदसा हो। (५) काटने या घटाने की क्रिया। (५) काटी। मुटाई सपना-अभिमान चूर्ण होना । शेखी टूटना। था मुजरा की हुई रकम । मुटाना-क्रि० अ० [हिं० मोटा+आना (प्रत्य॰)] (1) मोटा हो मजराकर-संक्षा पुं० [सं० मुजर ] एक प्रकार का कंद जो उत्तर जाना । स्थूलांग हो जाना । (२) शेखीबाज़ हो जाना । अहं- भारत में होता है और जिसे मुंजास भी कहते हैं। वैद्यक में कारी हो जाना । अक्ष्माय हो जाना । उ-हमरे आवत यह कार्यत स्वादिध, वीर्यवर्धक तथा वात-पित्त नाशक रिस करत अस सुम गये मुदाय ।-विश्राम । माना गया है। मुटासा-वि० [हिं० मोटा+आ सा (प्रत्य॰)] वह जो खाने पीने से मुजरिम-संज्ञा पुं० [अ० ] वह जिस पर कोई जुर्म या अपराध मज़े में हो जाने या कुछ धन कमा लेने से बेपरवा और लगाया गया हो। जिस पर अभियोग लगाया गया हो। घमंत्री हो गया हो। अभियुक्त। मुटिया-संशा पुं० [हिं० मार गठरी+श्या (प्रत्य॰)] बोझ ढोने- मुजल्लद-वि० [ 10 ] जिसकी जिद बंधी हो । जिल्ददार। | वाला । मजदूर । मुजरिसम-वि० [अ०] रू-शरीर । प्रत्यक्ष । जैसे,-लीजिए, मुट्ठा-संज्ञा पुं० [हिं० मूठ ] (१) घास, फूस, तृण या सुंठल का आपके सामने मुजस्सिम खदे हैं। उतना पूला जितना हाथ की मुट्ठी में आ सके। (२) चंगुल मजारिया-वि० [अ०] जो जारी किया या कराया गया ! भर वस्तु । जितनी एक मुट्ठी में आ सके उतनी वस्तु । जैसे,- एक मुट्ठा आटा । (३) समेटा या बंधा हुआ समूह जी मुजावर-संज्ञा पुं० [अ० ] वह मुसलमान जो किसी पीर आदि मुट्ठी में आ सके। पुलिंदा । जैसे, कागज़ का मुट्ठा, तार का की दरगाह या रौजे पर रहकर वहां की सेवा का कार्य मुट्ठा । (४) शस्त्र या यंत्र आदि का वह अंश जो उसके प्रयोग करता हो और बढ़ावा आदि लेता हो। के समय मुट्ठी में पकड़ा जाय। बॅट । दस्सा । (५)धुनियों का मुज़िर-वि० [अ० ) नुकसान पहुंचानेवाला । हानिकारक । बेलन के आकार का वह औज़ार जिससे रूई धुनते समय मन-सौ. [हिं० मुझे ] मैं का यह रूप जो उसे कर्ता और तांत पर भाघात किया जाता है। (६) कपड़े की गही जो