पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४८६

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मुट्ठामुहर २७७७ मुड़िया प्राय: पहलवान आदि बाहों पर मोटाई दिखलाने या उ.-कोउ मुठुको घुनघुना डुला कोउ करताल बजावै ।- सुदरता बढ़ाने के लिए बाँधते हैं। रघुराज । मुट्ठामुहेर-संशा स्त्री॰ [दे१० ] युवती स्त्री । (कहार) मुड़क-संशा स्त्री० दे० "मुरक"। मट्टी-संशा स्त्री० [सं० मुष्टिका प्रा० मुहिआ ] (1)हाथ की वह मुद्रा मड़कना-कि० अ० दे० "मुरकना"। जो उँगलियों को मोड़कर हथेली पर दवा लेने से बनती है। मड़ना-कि० अ० [सं० मुरण लिपटना, फेरा न्याना ) (1) छड़ की बँधी हुई हथेली। (२) उतनी वस्तु जितनी उपर्युक्त मुद्रा तरह सीधो गई हुई वस्तु का कहीं से बल खाकर दूसरी के समय हाथ में आ सके । जैसे, एक मुट्री चावल। ओर फिरना । दबाव या आघात से लचना या झुक जाना। मुहा०-मुट्ठी में कब्जे में। अधिकार में । काबू में । वश में । घुमाव लेना । जैसे,—(क) द पर दाब पड़ी, इससे वह उ.-नीच कहा बिरहा करतो सखी होती कहूँ जु पै मीचु मुड़ गई । (ग्व) यह तार तो मड़ता ही नहीं है। इसे कैसे मुठी में । -पाकर । मुट्ठी गरम करना रुपया देना । भग लपेटें । (२) किसी धारदार किनारे या नोक का इस प्रकार देना । मुट्ठी बंद या बँधी होना-घर का भेद किसी को भालग झुक जाना कि यह आगे की ओर न रह जाय । जैसे, छुरी न होना । रहस्य प्रकट न होग। । मुट्ठी में रखा होना बहुत की धार या सूई की नोक मुड़ना । (३) लकीर की तरह सभाप होना । पास होना । जैसे,-कपड़े क्या यहाँ मुट्ठी में सीधे न जाकर घूमकर किसी ओर झुकना । वक्र होकर भिन्न रखे है जो तुम्हें दे दिए जाय ! दिशा में प्रवृत्त होना । जैसे,—आगे चलकर यह नदी (मा (३) उपर्युक्त मुद्रा के समय बंधे हुए पंजे की चौदाई का ! सड़क) दक्खिन की ओर मुड़ गई है। (५) चलते चलने मान । वैधी हथेली के बराबर का विस्तार । जैसे,—इसका सामने से किसी दूसरी ओर फिर ज्ञाना । दाएँ अथवा बाएँ किनारा मुट्ठी भर ऊँचा होना चाहिए। (४) हाथों से किसी घूम जाना । जैसे,—कुछ दूर जाकर दाहिनी ओर मुड़ के अंगों को विशेषतः हाथ पैर को पकड़ पकड़कर दबाने की: जाना, तो उसका घर मिल जायगा। (५) घुमकर फिर पीछे किया जिससे शरीर की थकावट दूर होती है। चंपी। की ओर चल पड़ना । पलटना । लौटना । क्रि० प्र०-भरना। संयोकि०---जाना। (५) एक प्रकार की छोटी पतली लकड़ी जिसके दोनों कि० अ० दे० "मुंड़ना"। सिरे कुछ मोटे और गोल होते हैं और जो छोटे बच्चों को मडला-वि० [सं० मुंह ] [स्त्री० मडलो ' जिसके सिर पर गोलने के लिए दी जाती है। इसे बच्चे प्रायः चूमा करते बाल न हों। बिना बालबाला । मुंडा। उ०--कच खुबिओं है। धुसनी । (६) घोड़े के सुम और टखने के बीच घर काजर कानी नकटी पहरै बेपरि । मुडली पटिया पारि का भाग। सँवार कोढ़ी लावै केसरि ।-सूर । मुठभेड़-संशा रखी० [ हिं. मूठ+भिड़ना ] (1) टक्कर । भित। मड़वाना-क्रि० स० [हिं, गुडना का प्रेर० रूप । (१) किसी को लड़ाई। (२) मेंट। सामना । मॅडने में प्रवृत्त करना । उस्तरे से बाल या रोएँ दूर कराना। मठिका-संगा सी० [सं० गाष्टिक ] (१) मुट्ठी। उ०-रावण सो (२) दे. "मुंडवाना"। भट भयो मुटिका के खाय को।-तुलसी। (२) घूसा। कि० स० [हिं० मुड़ना का प्रेर० रूप ] मुड़ने या घूमने में मुक्का । उ०--मुटिका एक ताहि कपि हनी । रुधिर बमत ! प्रवृत्त करना। धरती दनमनी।—तुलसी । मड़वारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मूट+वारी (प्रत्य॰) । (१) अटारी की मठिया-संज्ञा स्त्री० [सं० मष्टिका ] (1) छुरी, हँसिया आदि दीवार का खिरा । मुंडेरा। उ०—मुड़वारी रबिमणिन सँवारी। औज़ारों का वह भाग जो मुट्ठी में पकड़ा जाय । दस्ता । अनल झार छूटी छत्रिवारी ।-गुमान । (२) लेटे हुए मनुष्य बंट । (२) हाथ में रखी या ली जानेवाली वस्तु का वह का बह पार्श्व जिधर सिर हो। सिरहाना । (३) वह पार्च भाग जो मुट्ठी में पकड़ा जाता है। जैसे, घड़ी की मठिया, ! जिधर किमी पदार्थ का सिरा अथवा ऊपरी भाग हो। छाते की मटिया। (३) धुनियों का वह औजार जिससे वे | महर्ग-संश। पुं० [हिं० मड-+इर (प्रत्य०) (१) स्त्रियों की धुनकी की ताँत पर आघात करते हैं। साड़ी वा चादर का वह भाग जो ठीक सिर पर रहता है। मठी -संज्ञा स्त्री० दे. "मुट्ठी"। उ.-मुख पखारि मुहहर भिजै सीस सजल कर छ्वाइ।- मटकी-संशा स्त्री० [हिं० मूठ ] काठ का बना हुआ बच्चों का बिहारी । (२) सिर का अगला भाग। एक खिलौना जिसके दोनों सिरों पर गोलियों सी होती हैं । मड़ाना-क्रि० स० [सं० मुंडन ] सिर के सब बाल बनवाना। और बीच में पकड़ने की मूठ होती है। गोलियों में कंकद | मुंडन कराना । मुंडाना । भरे रहते हैं जिनके कारण हिलाने से वह बजता है । मुट्ठी। मड़िया -संज्ञा पुं० [हिं० मूंढना+श्या (प्रत्य॰)] वह जिसका