पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४९

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बंदगी २३४२ बाहर न जा सके और बाहर की चीज़ अंदर न पा सके। जो अनेक बातों में मनुष्य से बहुत कुछ मिलता जुलता जैसे, किवाद आप से आप बंद हो गए । इसका टकना होता है। इसकी प्रायः पैंतिस जातियाँ होती हैं जिनमें बंद कर दो। (७) जिसका कार्य रुका हुआ या स्थगित से कुछ तो एशिया और यूरोप और अधिकांश उत्तरी तथा हो । जैसे,—कल वातर बंद था । (4) जो बला न चलता दक्षिणी अमेरिका में पाई जाती है। इनमें से कुछ जातियाँ हो। जो गति या व्यापारयुक्त न हो। रुका हुआ। थमा तो बहुत ही छोटी होती है, इतनी छोटी कि जेब तक में हुआ। जैसे, मेहं बंद होना, घड़ी बंद होना, सवाई बंद आ सकती है और कुछ इतनी बड़ी होती हैं कि उनका होना । (९) जिसका प्रचार, प्रकाशन या कार्य आदि रुक । आकार आदि मनुष्य के आकार तक पहुँच जाता है। गया हो। जो जारी न हो। जिसका सिलसिला जारी हो। छोटी जातियों के बंदर चारों हाथों-पैरों और बड़ी जैसे,-(क) इस महीने में कई समाचारपत्र बंद हो गए। जातियों के दोनों पैरों से चलते हैं । प्रायः सभी (ख) घाटा होने के कारण उन्होंने अपना सब कारवार : जातियाँ वृक्षों पर रहती है। पर कुछ ऐसी भी होती बंद कर दिया । (10) जो किसी तरह की कैद में हो। हैं जो वृक्षों के नीचे किसी प्रकार की छाया आदि का वि० दे० "व"। प्रबंध करके रहती और जंगलों आदि में घूमती हैं। प्राय: बंदगी-संशा स्त्री० फा0 ] (1) भक्तिपूर्वक ईश्वर की बना। सभी जातियों के बंदरों की शारीरिक गठन आदि मनुष्यों ईश्वराराधन । (२) सेवा । खिदमत । (३) आदाब । की सी होती है। इसीलिए ये "वानर" ( आधे मनुष्य ) प्रणाम । सलाम । कहे जाते हैं। ये केवल फल और अन आदि ही खाते बंदगोभी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बंद+गोभी ] करमकल्ला । पातगोभी।। हैं, मांस बिलकुल नहीं खाते । कुछ जातियों संज्ञा पुं० [सं० वंदनी: गोरोचन । (१) रोचन । रोली। के बंदरों के मुंह में ३२ और कुछ के मुंह में ३६ दाँत (२) ईगुर । सिंदुर । संदुर । उ०-बदन भाल नयन विच होते हैं। इनमें बहुत कुछ बुद्धि भी होती है और ये सहज काजर-गीत । में पाले तथा सिखाये जा सकते हैं तथा इनसे अनेक प्रकार बंदन-संज्ञा पुं० दे. "वंदन"। के छोटे बड़े काम लिए जा सकते हैं। प्रायः सभी जातियों बंदनता-संज्ञा स्त्री० [सं० वंदनता ] वंदनीयता । आदर या वंदना के बंदर झुंडों में रहते है, अकेले नहीं। ये एक बार में केवल किये जाने की योग्यता। उ०-वहि बंदत हैं सब केशव एक ही बचा देते हैं। इनमें शक्ति भी अपेक्षाकृत बहुत होती ईश ते बंदनता अति पाई।-केशव! है। चिंपैजी, ओरंगोटंग, गिबन, लंगूर आदि सब इसी बंदनवार-संज्ञा पुं० [सं० वंदनमाला ] फूल, पत्ते, दूर इत्यादि। जाति के हैं। की बनी हुई वह माला जो मंगल कार्यों के समय द्वार पर्या-कपि । मर्कट । बलीमुख । शाखामृग । आदि पर लटकाई जाती है। फूलों या पत्तों की झालर मुहा०-दर-पुरकी या बंदर-भवकी ऐसी थमकी या डाँट जो मंगल सूचनार्थ द्वार पर या खंभों और दीवारों आदि डपट जो केवल डराने या धमकाने के लिए ही हो। ऐसी धमकी में बांधी जाती है। तोरण। जो दृढ़ या बलिष्ठ से काम पड़ने पर कुछ भी प्रभाव न रख बंदना-संज्ञा स्त्री० दे. "वदना"। सकती हो। त्रि० स० [सं० वंदन ] प्रणाम करना । नमस्कार करना। संशा पुं० [फा० ] समुद्र के किनारे जहाज़ों के ठहरने के वंदना करना। उ०-दउँ सहि धरणि धरि माया। लिए बना हुआ स्थान | बंदरगाह । -तुलसी। बंदरगाह-संज्ञा पुं० [फा०] समुद्र के किनारे का वह स्थान जहाँ बंदनी-संज्ञा स्त्री० [सं० वंदनी-माथे पर बनाया हुआ चिह्न ] स्त्रियों। जहाज़ ठहरते हैं। का एक भूषण जो आगे की ओर सिर पर पहना जाता है। बंदरा-संसा पुं० दे० "बनरा"। इसे बंदी वा सिरवंदी भी कहते हैं। बंदली-संशा पुं० [देश॰] रूहेलखंड में पैदा होनेवाला एक वि० दे. "वंदनीय"। उ०-गौरी सम जगवंदनी नारि प्रकार का धान जिसे रायमुनिया और तिलोकचंदन भी सिरोमणि आप। रघुराज।। कहते हैं। बंदनीमाल-संज्ञा स्त्री० [सं० वंदनमाल ] वह लंबी माला जो बंधान-संज्ञा पुं० [सं० वंदी+बान ] बंदीगृह का रक्षक दिखाने गले से पैरों तक लटकती हो। 30-अंजन होय न लसत का अफ़सर । तौ दिगइन मैन विसाल । पहराई जनु मदन गुरु श्याम ! बंदसाला-संज्ञा पुं० [सं० वंदीशाला ] वह स्थान जहाँ कैदी रखे वंदनी-माल।--रसनिधि । __जाते हों। बंदीगृह । कैदखाना । जेल । बंदर-संज्ञा पुं० [सं० वानर ] एक प्रसिद्ध स्तमपायी चौपाया बंदा-संज्ञा पुं॰ [फा०](१)सेवक ।वास जैसे,ये सबखुदावंदे हैं।