पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४९३

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मुरदारी मुरवा (२) अपवित्र । (३) बेदम । बेजान । जैसे,--हाथ का : मगरिपु-संज्ञा पुं० [सं०1 मुर नामक दैत्य को मारनेवाले, विष्णु। चमड़ा मुरदार हो गया है। मुरारि । उ----सूर मुररिपु रंग रंगे सखि सहित गोगल। संज्ञा पु० [फा०] वह जानवर जो अपनी मौत में मरा हो और जिसका मांस खाया न जा सकता हो। मरिया -संशा स्त्री० दे० "मुरी" | उ.-त्रिभुवन माथ जो मग्दारी-ज्ञा पुं० [फा० मरदार+ई (प्रत्य॰)] अपनी मौत से , भंजन लागे श्याम मुररिया दीना । चाँद सूर्य दुर गोपा मरे हुए जानवर का चमड़ा। कीन्हों माँझ दीपकिय तीना--कबीर। मुरदा संख-सज्ञा पुं० [फा० मरदार संग ] एक प्रकार का औषध : मुरल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) प्राचीन काल का एक प्रकार का बाजा जो के हुग सीमे और सिंदूर से बनता है। जिस पर धमदा मढ़ा हुआ होता था । (२) एक प्रकार की मुरदासन-संक्षा ५० दे० "मुरदासंख"। उ०-मिरिच मोचरम्प मछली। __ मैदा लकरी । मुरदासन मनुसिल मिसमरी।-सूदन । मुरला-संशा स्त्री० [सं०] (1) नर्मदा नदी । (२) केरल देश की मुरदामिंधी-संक्षा श्री. दे. "मुरदा संख"। काली नाम की नदी। मुरधर-मंशा 0140 मझधग] मरवाद देश का प्राचीन नाम । मरलिका-संगा स्त्री० [सं०] मुरली । बसी। याँसुरी। उ०- 30-(क) मुरधर देश में थिलौंदा नाम ग्राम एक तहाँ : (क) अखियनि की सुधि भूलि गई। श्याम अधर मृदु के निवासी संत दूसरे मुरारिदास 1-रघुराज । (ख) मुरधर सुनत मुरलिका चकृत नारि भई -सूर। (ख) उर पर ग्वद्ध भूप सथ आज्ञाकारी । रामनाम बिस्वास भक्तपद-राज. . पदिक कुसुम धनमाला अंग धुकधुकी बिराजै। चित्रित बाहु व्रतधारी।--प्रियादास । पाँचिओं पांच हाय मुरलि.का छाजै।—सूर । (ग) बन बन मरना*-त्रि० अ० दे. "मुड़ना"। उ०—(क) एकसे एफ रणवीर : गाय चरावत डोलत काँध कमरिया राजै । लकुटी हाथ गरे जोधा प्रबल मुरत नहि नेक अति सबल जी के।-सूर। गुंजमाला अधर मुरलिका बाजै।-सूर। (ब) तुरत सुरत करें दुरत मुरत नैन जुरि नीठ । डौंडी दे मरलिया-संशा स्त्री० [सं० मुरलिका ] मुरली। वंशी। 30- गुन रावरे कहै कनोदी दीठ-बिहारी। खड़ी एक पग तप कियो सहि बहु भांति देवागि। ताही मगपरना-मंशा पुं० [हिं० मूड-सिर+पारना=रखना ] फेरी पुन्यन मुरलिया रहत स्याम मुख लागि ।-सुकवि । करके सौदा बेचनेवालों का बुकचा । सिर पर रखकर बेचने विशेष-हिन्दी में शब्द के अंत में जोरे हुए आ, वा, या आदि की वस्तुओं का बोझ । उ.-ऊधो बेगि मधुबन जाहु ।। अक्षर कुछ विशिष्टता सूचित करते हैं; जैसे, 'हरवा' का अर्थ हम विरही नारि हरि धिन कौन कर नियाहु । तहीं दीजै होगा-हार विशेष' । इसी प्रकार मुरलिया का अर्थ भी मुरपना नफो तुम कछु वाहु । जो नहीं ब्रज में थिकानो "मुरली विशेष" होगा। नगर नारी माहु । सूर वे सब सुनत लैहैं जिय कहा मरली-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) बाँसुरी नाम का प्रसिद्ध पाजा जो पछिताहु ।---सूर । मुँह से फूंककर बजाया जाता है। वंशी । मरब्बा-संदा पुं० [अ० मुरम: चीनी या मिसरी आदि की चाशनी विशेष-इस अर्थ में इस शब्द के साथ "वाला" या उसका में रक्षित किया हुआ फलों या मेवों आदि का पाक को कोई पर्याय लगने से "श्रीकृष्ण" का अर्थ निकलता है। उत्तम खाद्य पदार्थों में माना जाता है। (२) एक प्रकार का चावल जो आसाम में होता है। क्रि० प्र०-डालना ।-पड़ना । बनाना । मुरलीधर-संज्ञा पुं० [सं०] मुरली धारण करनेवाले, श्रीकृण । मंशा पुं० [अ० मुरम्बअ ] (1) ऐसा चतुष्कोण जिसके चारों उ---गिरिधर ब्रजधर मुरलीधर धरनीधर पीतांबरधर भुज बराबर हों। (२) किसी अंक को उसी अंक से गुणन , मुकुटधर गोपधर उर्गधर शंखधर शारंगधर चक्रधर गदाधर फरने से प्राप्त फल । वर्ग। रस धरें अधर सुधाधर ।-सूर । वि० उसी अंक से गुणम द्वारा प्राप्त । वर्गीकृत । जैसे, मरलीमनोहर-संज्ञा पुं० [सं०] श्रीकृष्ण का एक नाम । मुख्बा गज़। मरलीवाला-संज्ञा पुं० [सं० मुरली+हिं० वाला (प्रत्य०) ] मरन्बी-संज्ञा पुं० [अ० ] (1) पालन करनेवाला । (२) रक्षक ।। श्रीकृष्ण । आश्रयदाता। (३) सहायक मददगार । मरवा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) एकी के ऊपर की हड्डी के चारों मरमर्दन-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु या श्रीकृष्ण । मुरारि । और का घेरा। पैर का गिहा। उ-(क) एदिन यदि मरमराना-क्रि० अ० [ मुरमुर से अनु० } (1) ऐंठन खाकर टूट ' गुलु फन चढ़ो मुख न बचो दवाइ । सो चित चिकने जपन जाना । चूर चूर हो जाना । सुरमुर होना । (२) की या यदि तितहि परी विछिलाइ ।-रामसहाय । (ख) लखि खरी चीज का टूटने पर शन्द करना । प्रभु पाछे पाउँ पसारा । परसि वही मुरवन तक धारा- सगुन