पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४९६

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मुलकी २७८७ मुलायम मुलमची। मुसुफानि मिसरहू कस करि राखी। सर्व दोषहर राम नाम या बिजली आदि की सहायता से, अथवा और किसी विशेष की कीरति भाखी। बातन ही बहराय और की और कथा प्रक्रिया से किसी धातु पर चढ़ाया जाता है। किसी चीज़ किय । सुफवि चतुर सब समुझि गए लखि मुलकित पर चढ़ाई हुई सोने या चाँदी की पतली तह । पिलट । पर-तिय।-सुकवि। (ख) सकुच्चि सरकि पिय निकट ते कलाई । झोल। मुलकि कछुक सन तोरि । कर आँचर की ओट करि जमु विशेष साधारणत: मुलम्मा गरम और ठंढा दो प्रकार का हानी मुख मोरि ।-बिहारी । (ग) कवि देव कछू मुलकै होता है। जो मुलम्मा कुछ विशिष्ट क्रियाओं से आग की पुलकै उरकै उर प्रेम कलोलनि पै।-देव । सहायता से चढ़ाया जाता है, वह गरम कहलाता है, और मुलकी-वि० [अ० मुल्क ] (१) दे. "मुल्फी"। (२) देशी। जो बिजली की बैटरी से अथवा और किसी प्रकार बिना विलायसी का उलटा। उ०-पाति सिंधु मुलकी तुरंगन आग की सहायता के पढ़ाया जाता है, वह ठंढा मुलम्मा के कुलकी बिसाल ऐसी पुलकी सुचाल तैसी दुसकी। कहलाता है। टले की अपेक्षा गरम मुलम्मा अधिक स्थायी -गोपाल। होता है। मलज़िम-वि० [अ० ] जिसके ऊपर किसी प्रकार का इलजाम यौ०-मुलम्मासाज़ मुलम्मा चदानेवाला । मुलमनी । लगाया गया हो। जिस पर कोई अभियोग हो। अभियुक्त। (२) किसी पदार्थ, विशेषत: धातु आदि को चाँदी या सोने मुलतवी-वि० [अ० मुल्तवी ] जो कुछ समय के लिए रोक दिया। का दिया हुआ रूप । गया हो। जिसका समय टाल दिया गया हो। स्थगित ।। क्रि० प्र०-करना।-चढ़ना ।-चढ़ाना । —होना । जैसे,—(क) अब आज वहाँ का जाना मुलतवी रखिए। (३) वह बाहरी भक्फीला रूप जिसके अंदर कुछ भी न हो। (ख) जलसा दो दिन के लिए मुलतवी हो गया। ऊपरी तड़क-भड़का क्रि० प्र०—करना ।—रखना ।-रहना । —होना। मुलम्मासाज-संशा पुं० [अ०+फा०] किसी धातु पर सोना मुलतानी-वि० [हिं० मुलतान (नगर) ] मुलतान का । मुलतान या चांदी आदि चढ़ानेवाला । मुलम्मा करनेवाला । संबंधी। संशा स्त्री० (७) एक रागिनी जिसमें गांधार और धैवत मुलहठी -संज्ञा स्त्री० दे. "मुलेठी"। कोमल, शुद्ध निषाद और तीन मध्यम लगता है। इनके मुलहान-वि० [सं० मूल नक्षत्र+हा (प्रत्य॰)] (1) जिसका अतिरिक्त तीनों स्वर शुखु लगते है। शास्त्र में इसे श्रीराग जन्म मूल नक्षत्र में हुआ हो। (२) उपद्रवी । शरारती । की रागिनी कहा है और हनुमत् के मत से यह दीपक राग नटखट । उ०-उर में उलहे मुलहे है उरोज सरोज करें की रागिनी है। इसके गाने का समय २१ से २४ दंड तक ___ गुनदासव के।-सुदरीसर्वस्व । है। (२) एक प्रकार की बहुत कोमल और चिकनी मिट्टी | मुला-संज्ञा पुं० [अ० मुल्ला ] मौलवी। मुला। उ.--आठ जो मुलतान से आती है। इसका रंग बादामी होता है। बाट बकरी गई माँस मुलाँ गए खाय। अजहूँ म्बाल खटीक और यह प्राय: सिर मलने में साबुन की तरह काम में: के भिस्त कहाँ ते जाय । कबीर। आती है। इससे सोनार लोग सोना भी साफ करते हैं। मुलाकात-संज्ञा स्त्री० [अ० ] (1) आपस में मिलना । एक दूसरे और छीपी लोग इससे अनेक प्रकार के रंगों में अस्तर देते का मिलाप । भेंट । मिलन । (२) मेल-मिलाप । हेलमेल । हैं। साधु आदि इससे कपड़ा रंगते हैं। रस्त-जन्त । (३) प्रसंग । रति-क्रीला । महा-मुलतानी करना छीट छापने के पहले कपड़े को मुलतानी मुलाकाती-संज्ञा पुं० [अ० मुलाकात+ई (प्रत्य॰)] वह जिससे मिट्टी में रंगना। मुलाकात या जान पहचान हो। परिचित । मुलना-संशा पुं० [अ० मौलाना ] मौलधी । मुल्ला । उ-मुलाज़िम-संज्ञा पुं० [अ० ] (१) पास रहनेवाला । प्रस्तुत रहने- बाम्हन ते गदहा मला आन देव ते कुत्ता । मुलना ते मुरगा | वाला । उपस्थित रहनेवाला । (२) नौकर । धाकर । भला सहर जगावे सुसा। कबीर। सेवक । दास मलमची-संज्ञा पुं० [हिं० मुलम्मा+ची (प्रत्य॰)] किसी चीज़ पर मुलाज़िमत-संज्ञा स्त्री० [अ० ] सेवा । नौकरी । चाकरी । सोने या चौदी आदि का मुलम्मा करनेवाला। गिलट | मुलामा-वि० दे० "मुलायम"। करनेवाला । मुलम्मासाज़। मुलायम-वि० [अ०] (1) 'सख्त' का उलटा। जो कहान मुलम्मा-वि० [अ० ] (1) चमकता हुआ । (२) जिस पर सोना हो। (२) नाम । हलका । मन्द । धीमा । ढीला । जैसे,- या चाँदी चदाई गई हो। सोना या चौदी बढ़ा हुआ। आजकल सोने का बाज़ार मुलायम है। (३) नाजुक । संक्षा पुं० (१) वह सोना या चाँदी जो पत्तर के रूप में, पारे । सुकुमार। (४) जिसमें किसी प्रकार की कठोरता या