पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४९८

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मुश्कमेंहदी मुसकराना और पाला भी जा सकता है। यह चूहे, गिलहरी आदि लागा ।-तुलसी । (३) एक प्राचीन परिमाण जो किसी के खाकर रहता है। इसकी कई आतियाँ होती है। जैसे, मत से ३ तोले का और किसी के मन मे ८ तोले का होता भोंडर, लकाटी इत्यादि। था । (५) चोरी । (५) दुर्मिश । अकाल । (६) ऋषि नामक मुश्कमेंहदी-संज्ञा स्त्री० [ फा . मुश्क-+मेंहदी ] एक प्रकार का छोटा ओषधि । (७) मोखा नामक वृक्ष । (6) राज्य का एक पौधा जो बागों में शोभा के लिए लगाया जाता है। नाम । (१) कैस के दरबार का एक मल । मुष्टिक । उ.- मुश्किल-वि० [अ०] कठिन । दुष्कर । दुस्साध्य । को चाणूर मुष्टि सब मिलिकै जानत हो सब जी के । -- संज्ञा स्त्री० (१) कठिनता । दिक्कत । (२) मुसीबत ।। सूर । (१०) छुरे, तलवार आदि की मूंठ । बेंट। विपत्ति । संकट। पर्या०-आम्र । चतुर्थिका । प्रकुंच । पोदशी । बिल्व । क्रि० प्र०—आना।-पड़ना ।-में पड़ना। । मुष्टिक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) राजा कंस के पहलवानों में से मुहा०-मुश्किल आसान होना-संकट टलना। एक जिस पलदेवजी ने मारा था । उ०-तहँ नृप सुत मल्ल मुश्की-वि० [फा०] (1) कस्तूरी के रंग का । काला । श्याम । | है शल तोशल चानूर । मुष्टिक कृट सु पाँच ये समर सूर (२) जिसमें मुश्क मिला हो । जिसमें कस्तूरी पड़ी हो। भरपूर ।-गोपाल । (२) मुक्का । चूसा। उ.-एक बार जैसे, मुश्की जरदा। हनि मुष्टिक मारा। गिरा अवनि करि घोर चिकारा।- संज्ञा पुं० वह घोड़ा जिसका सारा शरीर काला हो। विश्राम । (३) चार अंगुल की नाप । उ०—पर तिल यव में मुश्त-संज्ञा पुं० [फा०] मुट्ठी। अंगुल होई । चतुरांगल कर मुष्टिक सोई।-विश्राम । (४) यौ...-.एकमुश्त-एक साथ । एक ही बार । (प्रायः रुपयों के लेन मुट्ठी। (५) सुनार । (६) तांत्रिकों के अनुसार एक उप- देन के संबंध मे ही बोलते है।) जैसे,—उसने सब रुपए करण जो बलिदान के योग्य होता है। एकमुश्त दे दिये। मुष्टिकांतक-संज्ञा पुं० [40] मुष्टिक नामक मलं को मारनेवाले, मुश्तहिर-वि० [ अ० ] जिसका प्रश्तहार दिया गया हो। जो यलदेव । प्रसिद्ध किया गया हो। मुष्टिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मुक्का । चूंसा । उ०-वृक्ष मुश्ताक-बि० [अ०] (1) इच्छा रखमेवाला । चाडनेवाला। पाषाण को जब उहाँ नाश भयो मुष्टिका युद्ध दोऊ प्रचारी। (२) प्रेमी । आशिक -सूर । (२) मुट्ठी। मपल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) मूसल । (२) विश्वामित्र के पुत्र ! मुष्टिदेश-सहा पुं० [सं० ) धनुष का मध्य भाग जो मुट्ठी में का नाम । पकड़ा जाता है। मुषली-संशा स्त्री० [सं०] (1) तालमूलिका । (२) छिपकली। मुष्टियुद्ध-संज्ञा पुं० [सं० ] यह लड़ाई जिसमें केवल मुक्कों से मषित-वि० [सं० 1 (1) चुराया हुआ । मूसा हुआ। (२) ठगा | प्रहार किया जाय । मेवाजी । हुआ। वंचित । मुष्टियोग-संशा पुं० [सं० } (१) हठ योग की कुछ किया जो मुषीवन्-संज्ञा पुं० [सं०] चोर। शरीर की रक्षा करने, पल बढ़ाने और रोग दर करनेवाली मषुर* -संज्ञा स्त्री० [सं० मुखर ] गूंजने का शन्द । गुंजार । मानी जाती हैं। (२) किसी बात का कोई छोटा और उ०-हेम जलज कल कलिन मध्य जनु मधुकर मुषुर सहज उपाय । सोहाई।-तुलसी। मुष्टक-संज्ञा पुं० [सं० ] सरसों। मुष्क-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अंडकोष । (२) मोखा नाम का मुसका-संज्ञा पुं० दे० "मुश्क"। वृक्ष । (३) चोर । (४) हेर । राशि । मुसनि* -संशा स्त्री० [हिं० मुस्काना मुसकराहट । उ०-(क) वि. मांसल। सकल सुगंध अंग भरि भोरी पिय निरनत मुसकनि मुखमोरी मुष्कफ-संज्ञा पुं० [सं०] मोखा नाम का वृक्ष । परिरभन सरोरी। हरिदास । (ख) अटके नैन माधुरी मकर-संक्षा पुं० [सं०] (9) अंडकोष । (२) पुरुष की मूद्रिय । मुसकनि अमृतवचन स्रवनन को भावत । -सूर। मकशून्य-संज्ञा पुं० [सं०] (१) वह जिसके अंडकोष निकाल | मुसकनिया-संज्ञा स्त्री० दे० "मुसकान" । उ०-मनमोहन की लिए गए हों । बधिया। (२) वह जो इस क्रिया के उपरांत सुतरी बोलन मुनि मन हरत सुहँस मुकनियाँ ।--सूर । अन्त:पुर में काम करने के लिए नियुक्त हो। मुसकराना-क्रि० अ० [सं० स्मय+] ऐसी आकृति बनाना मु-संज्ञा पुं० [सं०] चोरी। जिससे जान पड़े कि हँसना चाहते हैं। ऐसी कम हँसी मुष्टि-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) मुट्ठी । (२) मुक्का। चूंसा। उ. जिसमें न दाँत निकले, न शब्द हो। बहुत ही मन्द रूप तब सुग्रीव विकल होर भागा। मुष्टि प्रहार बन सम | से सना होठों में हंसना । मृतु दास । मंद हास ।