पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५०

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मंदामी २३४३ (२) शिष्ट या विनीस भाषा में उत्तमपुरुष, पुल्लिंग, बंदूक- संज्ञा पुं० [अ०] नली के रूप का एक प्रसिद्ध अन जो "मैं" के स्थान पर आनेवाला शब्द जैसे,—बंदा हाज़िर है, धातु का बना होता है। इसमें पीछे की ओर थोड़ा सा कहिये, क्या हुकुम है। स्थान बना होता है जिसमें गोली रखकर बारूद या इसी बंदानी-संज्ञा पुं० [?] (1) गोलंदाज़ । तोष चलानेवाला । प्रकार के किसी और विस्फोटक पदार्थ की सहायता से ( लश्करी)। (२) एक प्रकार का गुलाबी रंग जो पियाजी चलाई जाती है। इसमें से जो गोली निकलती है वह अपने रंग से कुछ गहरा और असली गुलाबी रंग से बहुत निशाने पर जोर से जा लगती है। इसका उपयोग मनुष्यों हलका होता है। को और दूसरे जीवों को मार डालने अथवा घायल करने बंदारु-वि० [सं० वंदार ] (1) बंदनीय । बंदन करने योग्य । के लिए होता है। आजकल साधारणतः सैनिकों को युद्ध (२) पूजनीय । आदरणीय । उ०-देव ! बहुलवृदारका में लाने के लिए यही दी जाती है। यह कई प्रकार की युद-संवार-पद बंदि मंदारमालोरधारी।—तुलसी । होती है। जैसे, कपाबीन, राइफल आदि। संज्ञा पुं० दे० "बंदाल"। क्रि० प्र०-चलाना।छोड़ना ।-दाग़ना ।--भरना । बंदाल-संज्ञा पुं० [ ? ] देवदाली । अधर बेल। मुहा०-बतूक भरना बंदूक चलाने के लिए उसमें गोली रखना। बंदि-संज्ञा स्त्री० [सं० बंदिन ] कैद । कारानिवास । उ०—(क) . बंदूक चलाना, छोड़ना, मारना या लगाना-बंदूक में गोला सिर पर कंस कबहुँ सुनि पाई। सकुल तुमहिं दिमाहिँ भरकर उसका घोडा दबाना जिससे गोली निकलकर निशाने पर राई। रघुनाय । (ख) बेद लोक सबै साखी, काह की जा लगे। बंदूक छतियाना-(१) बंदूक को छाता के साथ लगा. रती न राखी, रावन की बंदि लागे अमर मरन:-तुलसी। कर उसका निशाना ठीक करना । बदूक को ऐसी स्थिति में संज्ञा पुं० दे० "बदी"। करना जिससे गोली अपने ठीक निशाने पर जा लगे। (२) बंदिया-संज्ञा स्त्री० [हिं० बंदनी ] बंदी नामक भूषण जो स्त्रियाँ । बंदूक चलाने के लिए तैयार होना। सिर पर पहनती हैं। उ०-हाथ गहे गहिहौं हठ साथ बंदूकची-संज्ञा पुं० [फा०] बंदूक चलानेवाला सिपाही । जराय की बंदिया बेस दुसाला। बंदूखा-संज्ञा स्त्री० दे० "बात"। बंदिश-संज्ञा स्त्री० [फा०] (१) बाँधने की क्रिया या भाव। बंदेरी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० बंदा+ऐरी (प्रत्य॰)] दासी । चेरी । (२) प्रबंध । रचना । योजना । जैसे,—शकों की कैसी उ०-चदा हाथ इसकंदर बेरी । सकति छादि के भई अच्छी बंदिश है। उन्हें फंसाने के लिए बड़ी बड़ी बंदिशें बँदेरी।--जायसी। बाँधी गई हैं। बंदोबस्त-संशर पुं० [ फा०] (1) प्रबंध । इंतिज़ाम । (२) खेती क्रि० प्र०–बाँधना। के लिए भूमि को नापकर उसका राज्यकर निर्धारित करने (३) षड्यंत्र। का काम । बंदी-संशा पुं० [सं०] चारणों की एक जाति जो प्राचीन काल यौ०-बंदोबस्त इस्तमरारी-भूमि-संबंधी वह कर निर्धारण जिसमें में राजाओं का कीर्तिगान किया करती थी । भाट । फिर कोई कमी-वेशी न हो सके। मालगुजारी का इस प्रकार चारण । दे."वदी"। ठहराया जाना कि वह फिर घट बढ़ न सके । संशा स्त्री० [हिं० बंदनी ] एक प्रकार का आभूषण जिसे | (३) वह महलमा या विभाग जिसके सुपुर्द खेतों आदि स्त्रियाँ सिर पर पहनती है। दे. "वंदनी"। को नापकर उनफा कर निश्चित करने का काम हो। संशा पुं० [फा०] दी ! बंध-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बंधन । उ०—तासु वृत कि बंध तर यौ०-बंदीधर । बंदीख़ाना । अंदीछोर । आवा । प्रभु कारज लगि आपु बैंधावा ।-तुलसी । (२) __संज्ञा स्त्री० [फा०] [बंदा का स्त्री.] दासी। चेरी। गाँठ । गिरह । उ०-जेतोई मजबूत के हित वैध बाँधो बंदीखाना-संज्ञा पुं॰ [फा०] जेलखाना । कैदखाना । जाय । तेतोई तामें सरस भरत प्रेम रस आय।-रस- बंदीघर-संज्ञा पुं० [सं० बंदीगृह ] कैदखाना । जेलवाना। निधि । (३) कैद । उ०-कृपा कोप बध बंध गोसाई। बंदीछोर* -संज्ञा पुं० [फा० बंदी+हिं० छोर ] (1) कैद से मोपर करिय दास की नाई। तुलसी। (४) पानी रोकने छुदानेवाला। (२) बंधन से मुक्त करानेवाला। का धुस्स । बाँध । (५) कोकशास्त्र के अनुसार रति के बंदीवान-संज्ञा पुं० [सं० वदिन् ] कैदी । उ०—(क) मूभा को मुक्य सोलह भासनों में से कोई आसन । उ०—वले धाय क्या रोइये जो अपने घर जाय। रोइय बंदीवान को जोहाट नव कुंज दोउ मिलि किशलय सेज बिराजे । परिरंभन हाट विकाय।-कबीर । (ख) दावू बंदीवान है बंदी छोर सुख रास हास मृदु सुरति केलि सुख साजे । नाना बंध दिवान । अब जिन राखहुबंदि में मीरा-मेहरबान-दाद।। विविध रस क्रीडा खेलत स्याम अपार ।-सूर ।