पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५०२

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मूंगफली मुहाके । मम बैज शशि वाम मेष मधि उभव नोफ छवि की रात को अधिक उड़ते हैं। ये पत्तियों पर बरे देते हैं माले:--रघुराज। जिससे पत्तियाँ सूख जाती हैं। ये कीड़े धूप और साफ दिनों मुहावरा-संज्ञा पुं० [} (1) लक्षणा या व्यंजमा द्वारा सिख में बहुत हानि पहुंचाते हैं। इनसे खेत के खेत की फसल वाक्य या प्रयोग जो किसी एक ही बोली या लिखी जाने काली हो जाती है। पानी बरसने पर ये नष्ट हो जाते हैं। वाली भाषा में प्रचलित हो और जिसका अर्थ प्रत्यक्ष खुरल। (अभिधेय ) अर्थ से विलक्षण हो। किसी एक भाषा में | मुहर्स-संज्ञा पुं० [सं०] (1) काल का एक मान । दिन रात का दिखाई पड़नेवाली असाधारण शब्द-योजना अथवा प्रयोग । तीसवाँ भाग । (२) निर्दिष्ट क्षण या काल । समय । जैसे, जैसे, "लाठी खाना" मुहावरा है; क्योंकि इसमें "खाना" शुभ मुहूर्स । (३) फलिस ज्योतिष के अनुसार गणमा करके शब्द अपने साधारण अर्थ में नहीं आया है, लाक्षणिक अर्थ निकाला हुआ कोई समय जिस पर कोई शुभ काम ( यात्रा, में भाया है। लाठी खाने की चीज नहीं है, पर बोल-चाल विवाह ) आदि किया जाय । में "लाठी खाना" का अर्थ "लाठी का प्रहार सहना" लिया | क्रि०प्र०-निकलना।-निकालना-देखना।-दिखलाना। जाता है। इसी प्रकार "गुल खिलाना", "घर करना", मँग-संवा स्त्री० पुं० [सं० मुद्र] एक अन्न जिसकी दाल बनती है। "धमा खींचमा", "चिकनी चुपकी बातें" आदि मुहावरे विशेष-मुंग भादों में प्राय: साँवा आदि और अनों के साथ के अंतर्गत हैं। कुछ लोग इसे "रोजमर्रा" या "बोलचाल" बोई जाती है और अगहन में कटती है। इसके पौधे की भी कहते हैं। (२) अभ्यास । आदत । जैसे,—आजकल रहनियाँ लता के रूप में इधर उधर फैली होती है। एक मेरा लिखने का मुहावरा छूट गया है। एक सीके में सेम की तरह तीन तीन पत्सियाँ होती हैं। क्रि० प्र०-छूटना।बालना। पदना । फूल मी या बैंगनी होते हैं। फलियाँ बाई तीन अंगुल की मुहासिब-संज्ञा पुं० [अ०] (1) हिसाब जाननेवाला । गणितज्ञ । पतली पतली होती है और गुच्छों में लगती है। फलियों के (२) पड़ताल करनेवाला । आंकनेवाला । हिसाब लेनेवाला। भीतर ५-६ लंबे गोल दाने होते हैं, जिनके मुंह पर की उ०—सूर आप गुजरान मुहासिब लै जवाब पाचार्ष-सूर । चिदी उर्द की तरह स्पष्ट नहीं होती । मूंग के लिए बलुई मुहासिबा-संज्ञा पुं० [अ०] (1) हिसाब । लेखा । उ०—सूर मिट्टी और योड़ी वर्षा चाहिए । मूंग कई प्रकार की होती दास को यह मुहासिवा दस्तक कीजै माफ । -सूर । है-हरी, काली, पीली। हरी या पीली मूंग अच्छी समझी (२) पूछ ताछ। जाती है और सोना मूंग कहलाती है। पैक में मूंगरूखी, मुहासिरा-संज्ञा पुं० [40] युद्ध भादि के समय किले या पाच लघु,धारक, कफन, पिसनाशक, कुछ घायुवर्षक, नेत्रों के लिए सेना को चारों ओर से घेरने का काम । घेरा। हितकर और ज्वरनाशक कही गई है। बम ग के भी प्रायः मुहासिल-संज्ञा पुं० [अ० ](१) आय । आमदमी। (२) लाभ । यही गुण हैं। मूंग की दाल बहुत हलकी और पथ्य समझी मुनाफा । मफा । (३) विक्री भादि से होनेवाली माय । जाती है। इसी से रोगियों को प्रायः दी जाती है। इससे मुहि*-सर्व० दे. "मोहि"। बसी, पापड, लड्डू आदि भी बनते हैं। मुहिब्ध-संशा पुं० [अ० ] प्रेम रखनेवाला । दोस्ती रखनेवाला । पर्या--सूपश्रेष्ट । वर्णाई । रसोत्तम । भुक्तिप्रद । इयानंद । दोस्त । मित्र सुफल । वाजिभोजन । मुहिम-संशा स्त्री० [अ० ] (1) कोई कठिन या क्या काम ।। मुहा०-छाती पर मूंग बलना-दे० "छाती" । मूंग की दाल भारी, मारके का या जान जोखों का काम । (२) लदाई। खानेवाला-पुरुषार्थ-हीन । निर्बल । डरपोक । युद्ध । समर । अंग। (३) फौज की भाई । आक्रमण। | मूंगफली-संहा बी० [हिं० मूंग+फली] (1) एक प्रकार का उ.-आये तेरे गन पै जे मुहीम अखत्यार । कितेन | . क्षुप जिसकी खेती फलों के लिए प्रायः सारे भारत में की मनसूबा गये इन सौं शुरकै हार। रसनिधि। जाती है। यह क्षुप तीन चार फुट तक ऊँचा होकर पृथ्वी मुहिर-संशा पुं० [सं०] कामदेव । पर चारों ओर फैल जाता है। इसके ठल रोएँदार होते हैं वि० मूर्ख । अछि। और सीकों पर को दो जोड़े पसे होते हैं, जो आकार में मुहीम-संका सी० दे० "मुहिम"। चकवच के पत्तों के समान शाकार, पर कुछ लंबाई लिए महा-भव्य [सं०] बार बार फिर फिर । होते है। सूर्यास्त होने पर इसके पत्तों के जोदे आपस में यौ०-मुहुर्मः। मिल जाते है और सूर्योदय होने पर फिर अलग हो जाते मुहपुची-संज्ञा स्त्री० [देश॰ काले रंग का एक प्रकारका छोटा हैं। इसमें अरहर के फूलों के से चमकीले पीले रंग के २-३ बीका जो मूंगफली की फसल को नष्ट कर देता है। ये फूल एक साथ और एक जगह लगते हैं। इसकी जद में