पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१

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बंधक २३४४ बंधष विशप-मुख्य सोलह आसन ये हैं--(१) पभासन ।। खुल या विखर न सके या अलग न हो सके। बद्ध होना । (२) नागपाद। (३) लतावेष्ट । (४) अर्द्धसंपुट। (५) छूटा हुआ न रहना । बाँधा जाना । (२) ररसी आदि कुल्शि । (६) सुदर । (७) केशर । (८) हिल्लोल । (९) द्वारा किसी वस्तु के साथ इस प्रकार संबंध होना नरसिंह । (१०) विपरीत । (११) क्षुब्धक । (१२) धेनुक। कि कहीं जा न सके । जैसे, घोड़ा बँधना, गाय (१३) उत्कंठ। (१४) सिंहासन । (१.५) रतिनाग । बँधना। (१६) विद्याधर । (६) योग शास्त्र के अनुसार योग संयो० क्रिया०-जाना । साधन की कोई मुद्रा। जैसे, उड्डियानवैध, मूलबंध, विशेष-इस क्रिया का प्रयोग, अन्यान्य अनेक क्रियाओं की जालंधर बंध, इत्यादि । (७) निबंध-रचना । गद्य या : भाँति, उस चीज़ के लिए भी होता है जो बाँधी जाती है, पद्य लेख तैयार करना । उ०–ताते तुलामी कृत कथा । और उसके लिये भी जिससे बांधते हैं। जैसे, (क) रचित महषि प्रबंध । विरची उभय मिलाय के राम सामान बँधना, (ख) गठरी बँधना और (ग) रस्सी स्वयंवर बंध । -रघुराज । (6) चित्रकाध्य में छंद की ईंधना। ऐसी रचना जिससे किसी विशेष प्रकार की आकृति या (३) कैद होना । बंदी होना। (४) स्वच्छंद न रहना । चित्र बन जाय । जैसे, प्रबंध, कमलबंध, खड्गबंध, . ऐसी स्थिति में रहना जिसमें इच्छानुसार कहीं आ जान चमरबंध इत्यादि। (९) जिससे कोई वस्तु बांधी जाय। सकें या कुछ कर न सकें। प्रतिबंध रहना । फँसना । बंद। जैसे, रमी, फीता इत्यादि । (१०) लगाव । अटकना । (५) प्रतिज्ञा या वचन आदि से बद्ध होना। फेसाव । उ०~बेधि रही जग बासना निरमल मेद सुगंध। : शर्त वगैरह का पाबंद होना । (६) गैठना । ठीक होना। नेहि अरधान भंवर सब लुबुधे तजहि न बंध।-जायसी। दुरुस्त होना । जैसे, मजमून बँधना । (७) क्रम (19) शरीर। (१२) बनानेवाले मकान की लंबाई और निर्धारित होना । कोई बात इस प्रकार चली चले, यह चौड़ाई का योग । स्थिर होना । चला चलनेवाला कायदा ठहराना । बंधक-सा बी०स०1 (1) वह वस्तु जो लिए हुए ऋण के ! जैपे, नियम बँधना, बारी बँधना। उ-तीनहुँ लोकन बदले में धनी के यहाँ रख दी जाय। रेहन । (ऐसी वस्तु । की तरुणीन की वारी बँधी हुती दंड दुह की ।-केशन । ऋण चुकाने पर वापस हो जाती है।) (4) प्रेमपाश में बद्ध होना । मुग्ध होना। उ०-अली क्रि० प्र०—करना ।रग्वना ।-धरना। कली हो तें बध्यो आगे कौन हवाल ।-बिहारी । (२) विनिमय । यदला करनेवाला । (३) वह जो बांधता विशेष-दे. “बाँधना"। हो। बांधनेवाला। सक्षा पु० [सं० बंधन | (१) वह वस्तु ( कपड़ा या रस्सी बंधकी-समात्रा . [ स० ] (1) व्यभिचारिणी स्त्री। बदचलन आदि) जिससे किसी चीज़ को बाँध । बाँधने का माधन । औरत । (२) यया या रंडी। (२) वह थैली जिसमें स्त्रियाँ सीने पिरोने का सामान बंधन-सज्ञा पु० सं० | (१) बाँधने की किया । (२) रखती हैं। वह जिससे कोई चीज़ बाँधी जाय । जैसे,—इसका बंधन बँधनि-सशा स्त्री० [ स. वचन, मिबधना । (१) बंधन । ढीला हो गया है। (३) वह जो किसी की स्वतंत्रता जिसमें कोई चीज़ बँधी हुई हो। (२) जो किसी चीज़ की आदि में बाधक हो । प्रतिबंध । फँसा रखनेवाली वस्तु । स्वतंत्रता आदि में बाधक ही। उलझाने या फंसानेवाली जैग, संपार में बाल बनों का भी बड़ा भारी बंधन होता चीज़ । उ.-मीता मन वा बँधनि ते कौन सकै अब है। (४) वध । हत्या। (५) हिंसा। (६) रस्सी। छोरि ।-सनिधि । (७) वह स्थान जहाँ कोई बांध कर रखा जाय ।। बंधनी-सज्ञा स्त्री० [सं० 1 (1) शरीर के अंदर की वे मोटी कारागार ! कैदखाना । (८) शिव । महादेव । (१) शरीर नसें जो संधिस्थान पर होती है और जिनके कारण दो का संधिस्थान । जोड़। अवयव आपस में जुड़े रहते है। शरीर का बंधन । महा-बंधन ढीला करना बहुत अधिक मारना पाटना। (२) (वह) जिससे कोई चीज़ बाँधी जाय । जैसे, रस्सी, बंधनग्रंथि-सभा स्त्री० [सं०] शरीर में वह हही जो किसी सिक्कड़ आदि। जोड़ पर हो। बंधनीय-सज्ञा पु० [सं०] सेतु । पुल। बंधनपालक-सना पु० [म. ] वह जो कारागार का रक्षक हो। वि. जो बाँधने के योग्य हो। बँधना-क्रि० अ० [स. वधन ] (1) बंधन में आना बंधमचनिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक योगिनी का नाम। होरी तागे आदि ये घिरकर इस प्रकार कसा जाना कि बंधव-संश पुं० "बाँधब"। मा