पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१०

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मूलद्रव्य २८०१ मूली का मेष, पुष का कन्या, वृहस्पति का धनु, शुक्र का तुला । दीवार । (४) ईश्वर । (५) मुलतान नगर जहाँ भास्कर और शनि का कुंभ है। मतलब यह कि इन इन राशियों में तीर्थ था। यदि ये ये ग्रह होंगे, तो मूलत्रिकोण में कहे जायेंगे। मूला-संज्ञा स्त्री० [सं] (1) सतावर । (२) मूल नक्षत्र । (३) (फलित ज्योतिष) पृथ्वी। (डिं.) मूलद्रव्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मूल धन । (२) आदिम च्य मूलाधार-संज्ञा पुं० [सं०] योग में माने हुए मानव शरीर के या भूत जिससे और द्रव्यों या भूतों की उत्पत्ति हुई हो। भीतर के छ: चक्रों में से एक धक जिसका स्थान गुदा और मूलद्वार-संज्ञा पुं० [सं०] प्रधान द्वार । सिंहद्वार । सदर शिभ के मध्य में है। इसका रंग लाल और देवता गणेश फाटक । माने गए हैं। इसके दलों की संख्या ४ और अक्षर व, श, मूलद्वारावती संज्ञा स्त्री० [सं० ] द्वारावती नगरी का प्राचीन प तथा स हैं। अंश जो आजकल की द्वारका से कुछ दूर प्राय: समुद्र के | भूलिष.-वि० [सं० ] मूल संबंधी। भीतर पड़ती है। संज्ञा पुं० कंद मूल खाकर रहनेवाला संन्यासी । मूलधन-संज्ञा पुं० [सं०] वह असल धन जो किसी व्यापार | मूलिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] औषधियों की जब । जड़ी । उ०- में लगाया जाय । पूंजी। (क) वैदिक बिधान अनेक लौकिक आचरत सुनि जानि के। मूलधातु-संज्ञा स्त्री० [सं०] मजा। बलिदान पूजा मुलिका मनि साधि राखी आनि के।- मूलपर्णी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मंडूकपर्णी नाम की ओषधि । तुलसी । (ग्व) आन्यो सदन सहित सोबत ही जी लौं पलक मूल पुरुष-संज्ञा पुं० [सं०] किसी वंश का आदि पुरुष । सथ से । परै न। जिय कुँवर निसि मिलै मूलिका कीन्हीं विनय पहला पुरस्खा जिससे वंश चला हो । सुग्वेन ।-तुलसी। मुलपुष्कर-संज्ञा पुं० [सं०] पुष्करमूल । मलिनी वर्ग-संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार ये सोलह प्रकार मूलपोती-संशा स्त्री० [सं०] छोटी पोय नाम का शाक । के मूल (ज)--नागदती, श्वेतवचा, श्यामा, निवृत्, मूल प्रकृति-संज्ञा स्त्री० [सं०] संसार को वीज-शकिया वह वृद्धदारका, सप्तला, श्वेतापराजिता, मूषकपर्णी, गोडंबा, आदिम सत्ता, संसार जिसका परिणाम या विकास है। ज्योतिष्मती, बिबी, क्षणपुष्पी, विषाणिका, अश्वगंधा, आया शक्ति । वि० दे० "प्रकृति"। द्रवती और क्षीरिणी । मूलफलद-संज्ञा पुं० [सं०] कटहल ।। मूली-संशा स्त्री० [सं० मूलक ] (१) एक पौधा जो अपनी लंबी मूलबंध-संज्ञा पुं० [सं०] (1) हठ योग की एक क्रिया जिसमें । मुलायम जड़ के लिए बोया जाता है। यह जड़ ग्वाने में सिद्धासन वा वज्रासन द्वारा शिश्न और गुदा के मभ्यवाले मीठी, चरपरी और तीक्ष्या होती है। भाग को दबाकर अपान वायु को ऊपर की ओर चहाते विशेष-मूली साल में दो बार बोई जाती है, इसमे प्रायः हैं। (२) तंत्रोपचार पूजन में एक प्रकार का अंगुलिन्यास । सब दिन मिलती है। मूली की जड़ नीचे की ओर पतली मूलबहण-संज्ञा पुं॰ [सं० ] (1) मूलीच्छेदन । (२) मूल नक्षत्र । और ऊपर की ओर मोटी होती जाती है। इसकी कई मूलभृत्य-संशा पुं० [सं०] पुश्तैनी नौकर । जातियां होती हैं। साधारण मूली एफ बालिश्त लेबी और मुलरस-संज्ञा पुं० [सं०] मोरट लता । मूर्धा । दो बाई अंगुल मोटी होती है। पर बड़ी मूली हाथ हाथ मुलविष-संज्ञा पुं० [सं०] जिसकी जद विषैली हो । जैसे, . भर लंबी और चार पाँच अंगुल तक मोटी होती है । नेपाल कनेर । देश में उत्पन्न होने के कारण इसे नेवाड़ या नेवार भी कहते मूलव्यसन-संज्ञा पुं० [सं०] वध का दं। मारण । है। यह खाने में मीठी होती है और इसमें कड़वापन या मृलशाकट-संज्ञा पुं० [सं० ] वह खेत जिसमें मूली, गाजर आदि चरपराहट नहीं होती। मूली का रंग सफेद होता है, पर मोटी जड़वाले पौधे बोए जाय। लाल रंग की मूली भी अब हिंदुस्तान में बोई जाने लगी मूलशोधन-संज्ञा पुं० [सं०] पुंडरीक वृक्ष । है, जिसे विलायती मूली कहते हैं। जड़ से सरसों के से मुलसर्वास्तिवाद-संज्ञा पुं० [सं० ] बौद्धों का एक संप्रदाय।। लंबे लंबे पसे ऊपर की ओर निकलते हैं। बीज छोटे और मूलस्थली-संज्ञा पुं० [सं०] भाला । बालबाल । उ.-कहूँ। काले होते है। इन बीजों में से एक प्रकार का दुर्गंधयुक्त वृक्ष मूलस्थली तोय पी। महामत मातंग सीमा न तेल निकलता है, जिसमें गंधक का बहुत कुछ अंश रहता छी। केशव । है। मूल अधिकतर कथा या शाक के रूप में पकाकर मूलस्थान-संशा स्त्री० [सं०] (1) भावि स्थान | पाप-दादा की। स्वाया जाता है। बीज दवा के काम में आते हैं । मूली जगह । पूर्वजों का स्थान । (२) प्रधान स्थान। (३) भीत।। साधारणतः उसेजक, मूत्रकारक और अश्मरीनाशक होती ७०१