पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५११

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मूल्य २८०२ मूसली है। मूत्रकृच्छ आदि रोगों में इसका सेवन हितकर है। । मूषिकांचन-सा पु. ( म० ] गणेश। भावप्रकाश के अनुसार छोटी मूली कटुरस, उष्णवीर्य, : मूषिका-सज्ञा सी० [सं०] (1) छोटा चूहा । चुहिया । (२) रुचिकारक, लघु, पाचक, त्रिदोषनाशक, स्वरप्रसादक तथा : मूसाकानी लता । ज्वर, श्वास, नामा रोग कठ रोग और चक्षु रोग को दूर मूपी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) सोना आदि गलाने की घरिया । करनेवाली है। यही मूली या नेवार रुग्वी, उरणवीर्य, गुरु | (२) बड़ा चूहा। और निदोषनाशक है। मुपीकरण-संशा पं० [म.] घरिया में धातु गलाने की क्रिया । पर्या-(छोटी मूली) शालाक । कटुक । मिश्र । वालेय। मूल्यायण-संज्ञा पुं० [सं०] गुप्त व्यभिचार से उत्पन्न पुरुष । मरुसंभव । चाणक्यमूलक । मूलकयोतिका । वह जिसके बाप का पता न हो। दोगला । मुहा०-(किमी को) मूली गाजर समझना-अति तुच्छ । मुस-संशा पु० [सं० भूप] चूहा । समझना । ना चीन गिनना । मूसदानी-संशा श्री० [हिं० मूस+यानी (सं० आधान)| चूहा (२) एक प्रकार का बांय । (३) जड़ी बूटी। मलिका। फँसाने का पिंजड़ा। मंशा स्त्री० [सं०] (१) ज्येष्ठी। (२) मत्स्यपुराण के अनुसार मूसना-क्रि० म० [सं० मूषण ] चुराकर उठा ले जाना । उ.- एक नदी का नाम । (क) मूपत पाँच चोर करि दंगा । रहत हितू है निसि दिन मूल्य-संज्ञा पुं० [सं०] किसी वस्तु के बदले में मिलनेवाला धन । संगा।-रधुनाथदास । (ख) सूरन के मिस ही मन मूसति दाम । कीमत। होस मसूमन ही फिरै कोठनि ।-देव । (ग) सुनितय वि० (१) प्रतिष्ठा के योग्य । कदर के लायक । (२) रोपने विरद रूप रम नागरि लीन्ही पलटि कछू सी । तेरे हती या लगाने योग्य ( पौधा ) । (३) जड़ से उखारने योग्य प्रेम संपति मवि यो संपति केहि भूमी।-सूर । (घ) (ग्वेत की फसल, जैसे, उर्द, मैंग आदि)। दिया मंदिर नियि करै उजेरा । दिया नाहिं घर मूसहिं मूल्यवान-वि. | सं० | जिपका दाम बहुत अधिक हो । बड़े घोरा ।-जायसी। दाम का । कीमती। संयो० कि०-ले जाना। मुशली-संज्ञा स्त्री० [सं० ] तालमूली।। मुसर-सज्ञा पु० [हिं० भूमल ) (१) दे. "भूगल" । उ०—गुन मुप, मूषक-संज्ञा पुं० [सं०] चूहा । उ०—बल विनु स्वास्थ : ज्ञान गुमान भभेरि बड़ी कलपटुप काटत मसर को।- पर अपकारी । अहि मृपक इव सुनु उरगारी।--तुलसी। तुलसी । (२) गँवार । अपढ़ । असभ्य । मपककर्णी-संशा मी० [सं०1 मूसाकानी नाम की लता। मूमरचंद-संज्ञा पुं० [सं० मूमर+चंद्र ] (१) अप० । गवार । आम्बुकर्णी। असभ्य । जड़ । (२) हटा कहा पर निकम्मा । मुसंडा । मूषकवाहन-संज्ञा पुं० [सं०] गणेश। मृसल-संज्ञा पुं० [सं० मुशल] (1) धान कुटने का एक औज़ार जो मूषकमारी-संज्ञा मी० [सं०] श्रुतश्रेणी नाम की लता। लंबा मोटा डंडा मा होता है और जिसके मध्य भाग में मुषा-संज्ञा स्त्री | सं०] (1) सोना आदि गलाने की घरिया । पकड़ने के लिए खड्डा सा होता है और छोर पर लोहे की तैजसावर्सिनी । (२) देवताड़ वृक्ष । (३) गोखरू का पौधा। माम जड़ी रहती है। (२) एक अस्त्र जिसे बलराम धारण (४) गवाक्ष । झरोखा। करते थे । (३) राम वा कृष्ण के पद का एक चिह्न । मृपाकर्णी-संशा सी० [सं० । मूसा कानी लता। मूसलधार-कि- वि० [हिं० मूसल+धार ] इतनी मोटी धार से, मूपातुत्य-संज्ञा पुं० [सं०] नीला थोथा । तृतिया। जितना मोटा ममल होता है। बहुत अधिक वेग से। मृपिक-संज्ञा पुं० [सं० 1 (8) चूहा। मूगा । (२) महाभारत के ' धारासार । जैसे, मसलधार पानी बरसाना । 30-उसने अनुसार दक्षिण के एक जनपद का प्राचीन नाम । आते ही ब्रजमंडल को घेर लिया और गरज गरज बड़ी बड़ी मुपिकपर्णी-संक्षा स्त्री० [सं०] जल में होनेवाला एक प्रकार बूंदों लगा मुसलधार जल बरसाने ।-लल्लूलाल । ___ का तृण । मूसला-संज्ञा पुं॰ [हिं० मूमल ] वह जद जो मोटी और सीधी पर्या०-न्यग्रोधी । चिना। उपचित्रा । द्रवती । संथरी । कुछ दूर तक ज़मीन में चली गई हो, जिसमें इधर उधर वृपा । वृषपर्णी । आम्बुपर्णी । सूत या शाखाएँ न फूटी हो । झखरा का उलटा। मूषिकसाधन-संशा पुं० [सं०] तंत्र का एक साधन जिसके विशेष-जब दो प्रकार की होती है—एक शखरा, दूसरी मिन्द्व, हो जाने से, कहा जाता है कि मनुष्य चूहे की बोली मूसला। समझ कर उसमे शुभ-अशुभ फल कह सकता है। मूसली-मंका पुं० [ मुशली ] हल्दी की जाति का एक पौधा मूषिकांक-संज्ञा पुं० [सं०] गणेश ।

जिसकी जा औषध के काम में आती है और पुष्टई मानी