पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मृदंगफल २८०७ मेख अनूपा । सोइ रव मधुर सुनहु सुरभूपा ।—तुलप्पी । (ख) मृद्धीकासव-शा पुं० [सं० द्राक्षासव । अंगर की शराब । काहू बीन गहा कर कार नाद मृदंग। सब दिन अनँद मृध-संशा पुं० [सं०] युन्छ । लड़ाई। बधावा रहस कूद इक संग। जायपी । (२) बाँस । मृनाल*-संज्ञा पुं० दे. "भृणाल"। मदंगफल-संज्ञा पुं० [सं० ] कटहल । पनश । मृन्मय-वि० [सं० ] मिट्टी का बना हुआ ।' मृदंगफलिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] तरोई । तोरई। मृन्मान-संज्ञा पुं० [सं०] कृआँ । कूप । मदंगी-संज्ञा स्त्री० [सं०] तरोई। तोरई। मृपा-अव्य० [सं०] झूठमठ । व्यर्थ । मदव-संशा पुं० [सं०] नाटक की भाषा में गुण के साथ दोष के वि० असल्य । झूठ । वैषम्य का प्रदर्शन ( नाट्यशास्त्र)। मृषान्व-संज्ञा पुं० [सं० ] मिथ्यात्व । असत्यता । झूठपन । मृदा--संज्ञा स्त्री० [सं०] मृत्तिका । मिट्टी। मृपाभापी-वि० [सं० मृपाभापिन ] झूठ बोलनेवाला । मृदाकर-संज्ञा पुं० [सं०] वन । मृपालक-संज्ञा पुं० [सं०] आम का पेद। ( इनमें थोड़े ही मुदिनी-संशा स्त्री० [सं० (१) अच्छी मिट्टी । (२) गोपीचंदन । दिन मंजरियों का अलंकार रहता है, इसी से इसका यह मदु-वि० [सं०] [ स्त्री. मृद्वी] (१) जो छूने में कड़ा न हो। नाम रखा गया है।) कोमल । मुलायम । नरम । (२) जो सुनने में कर्कश या मृपावाद-संज्ञा पु० [ स०] (1) झूठ बोलना । (२) शूर बात । अप्रिय न हो। जैसे, मृदु वचन । (२) सुकुमार । नाजुक। असत्य वचन । (४) जो तीब्र या बंगयुक्त न हो। धीमा मंद । जैसे, मृष्ट-वि० [सं० । शोधित । मृदु स्वर, मृदु गति। संज्ञा पुं० मिर्च। संज्ञा स्त्री० (१) घृत कुमारी । घोकुऔर । (२) मद जाति मृष्टि-संशा स्त्री० [सं०] परिशुद्धि । शोधन । पुरुप । जूही नामक फूल का पौधा । मैं-अश्य० [सं० मध्य, प्रा० मन्स, पु० हिं० महँ ] अधिकरण कारक मुदुकंटक-संज्ञा पुं० [सं०] कटपरैया। का चिह्न जो किसी शब्द के आगे लगकर उपके भीतर, मुदुखुर-संशा पुं० [सं०] घोड़ों के खुर का एक रोग। उसके बीच या उसके चारों ओर होना सूचित करता है। मदुगण-संशा पुं० [सं० ) नक्षत्रों का एक गण जिसमें चित्रा, आधार या अवस्थान-सूचक शब्द । जैसे,—वह घर में बैट। अनुराधा, मृगशिरा और रेवती ये चार नक्षत्र है। है। घड़े में पानी है। वह चार दिन में आवेगा । पैर में मदुच्छद-संशा पुं० [सं०] (1) भोजपत्र का पेद। (२) पील, मोजे या जूला पहनना। वृक्ष । (३) लाल लजाल। संज्ञा पुं० [ अनु० ] बकरी के बोलने का शब्द । मदता-संश स्त्री० [सं०] 10) कोमलता। मुलायमियता । (२) मंगनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मांगा ] ऐसे पशुओं की विष्टा जो छोटी - धीमापन । मंदता। छोटी गोलियों के आकार में होती है। लेडी । जैसे, बकरी मदुदर्भ-संज्ञा पुं० [सं०] साद कुश । को मंगनी, ऊँट की मंगनी। मदुपुष्प-संज्ञा पुं० [सं०] शिरीप वृक्ष । सिरिस । मेंबर-संशा पु० [अ० ] किमी सभा, समाज या गोष्टी में सम्मिलित मदुफल-संज्ञा पुं० [सं०] (१) मधु नारिकेल । नारियल । (२) व्यक्ति । पभासद । यदस्य । जैसे, काउन्सिल का मंबर। विकत वृक्ष । मेकदारा-संज्ञा पुं० [अ० मिनदार | परिमाण । मात्रा । अंदाज़ । मदुल-वि० [सं० ] कोमल । मुलायम । नरम । उ.-सुमन मेकस्ट-संज्ञा पुं० [सं०] विंध्य पर्वत का एक भाग जो रीवा राज्य सेज ते लगि रहे सुदरि तेरे गात । सुरभित ह मिद्धि के के अंतर्गत है और जिसमें अमरकंटक है। इसी पर्वत में भये मृदुल नाल जलजात । लक्ष्मणसिंह । (२) कोमल नर्मदा नदी निकली है । यह मेखला के आकार का है, हृदय । दयामय । कृपाल । उ.-मृदुल चित अजित कृत . इसी से इसे मेग्वल भी कहते है। गरलपान-तुलसी । (३) नाजुक । सुकुमार । उ०-मृदुल मकलकन्यका-संज्ञा स्त्री० [सं०] नर्मदा नदी। मनोहर सुदर गाता । सहत दुसह बन आतप बाता।- 'मेकलसुता-संशा सी० [सं०] नर्मदा नदी। तुलसी। मेक्षण-संशा पु० [सं०] एक प्रकार का यशपात्र । संज्ञा पुं० [सं०] (1) जल । पानी । (२) अंजीर । विशेष—यह चम्मच या करछी के आकार का और चार अंगुल मद्वी-वि० स्त्री० [सं०] (1) मृदु । कोमल । (२) कोमलांगी। चौड़ा तथा आगे की ओर निकला हुआ होता है। संवा स्त्री० कपिल द्राक्षा । सफेद अंगूर । मेख-सशा पुं० दे० "मेष"। मुहीका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (१) कपिल द्राक्षा। साकेद अंगर। संज्ञा स्त्री० [फा० ] (9) जमीन में गाड़ने के लिए एक और (२) अंगूर की शराब । द्राक्षासव । नुकीली गदी हुई लकही । खूटा ।