पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/५२३

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मेलना २८१४ मेष मेलनानि .. स० [हि. मेल+ना (प्रत्य॰)] (1) मिलाना। मेव-संज्ञा पुं० । देश. ] राजपूताने की ओर बसनेवाली एक लुटेरी (२) डालना रखना । उ०—जे कर कनक कचोरा भरि भरि जाति । मेवाती। उ०-बि-बन में दौरन रगे जब त मेलन नेल फुलेल । -सूर । (३) धारण कराना । पहनाना। तब हग मेव । तब तें कदे सनेहिया मन छन लै केव। उ.....-सिय जयमाल राम उर मेली।-सुलगी। -रसनिधि । कि अ. इकट्ठा होना । एकत्र होना । जुटना। उ. विशेष-मेव पहले हिंद थे और मेवात में बसने थे। पर बलरसगर लछमन सहित कपिसागर रनधीर । जयवागर मुसलमानी बादशाहत के जमाने में ये मुसलमान हो गए। रघुनाथ जू मेले सागर नीर । अब ये लोग लूट-पाट प्रायः छोड़ते जा रहे हैं। मलमल्लार-भला ५० [सं० । पद रागिनी जिसकी स्वरलिपि इस मेवड़ी-सक्षा मा० [ देश . ] निर्गुडी । सँभाल। प्रकार है--प स स रे म प ध प स ध प म ग रे स। मेवा-संज्ञा पुं० [फा० । (१) खाने का फल । (२) किशमिश, मेलधु-सं-11 १५० ! म. ] दवात । बादाम, अग्नरोट आदि सुग्याए हुए यढ़िया फल । मेलामा ५० {H० मलक ] (१) बहुत से लोगों का जमावड़ा। मंज्ञा पुं० [ 10 ] सूरत के गन्ने की एक जाति जिय भीड़-भाड़। (२) देवदर्शन, उत्सव, ग्रेल, तमाशे आदि के 'अवजुरिया' भी कहते हैं। लिये बहुत से लोगों का जमावड़ा। जैसे, माघमेला, : मेवाटी-संशा पी० [ फा मवा+बाटी ] एक पकवान जिसके अंदर हरिहर क्षेत्र का मेला । मेवे भरे रहते हैं। उ.-फूटि जाय फन फनीराज को समोसा यौल-मेला-ठेला। सम फदि जाय कच्छप की पीठ ह मेवाटी सी।गोपाल । मक्षा 10 | मं०] (१) बहुत से लोगों का जमावड़ा । (२) मवाइ-संशा पुं० [ देश ] (1) राजपूताने का एक प्रांत जिसकी मिलन । समागम । मिलाप । (३) स्याही । रोशनाई । (१) प्राचीन राजधानी चित्तौर थी और आजकल उदयपुर है। अंजन । (५) महानीली। (२) एक राग जो मालकोप राग का पुत्र माना जाता है। मला-ठला-मशा १० [हिं० मेला+टेला धक्का | भीड़ भाड़ और मेवाड़ी-मंशा पं० [हि मेवान । मेवाड़ प्रदेश का निवासी। धक्का । जमावदा । जैग्ने, मेले-ठेले में स्त्रियों का जाना वि० मेवाद में होनेवाला । मेवाद से संबंध रखनेवाला। ठीक नहीं। मेवाद का। मेलानंदा-ममा स्त्री . | 0 ] दवात । मेवात-संज्ञा पुं० [सं०] राजपूताने और सिंध के बीच के प्रदेश मलाना-कि० म० [हिं० मेल ] (1) मेलना का प्रेरणार्थक रूप का पुराना नाम । (२) रेहन या गिरवी रखी हुई वस्सु को रुपया देकर छुड़ाना। मेवातो-संज्ञा पुं० [हिं० मेवात+१ (प्रत्य॰)] मेवात का रहनेवाला। मली-भा पुं० [हि मल ] वह जिससे मेल-जोल हो । वह मेवाफरोश-संज्ञा पुं० [फा० ] फल या मेवे बेचनेवाला। जिनमे अनिष्ट परिचय हो । मुलाक़ाती । संगी। साथी। : मेवासा*-संशा ५० [हि मवामा ] (1) किला । गढ़ । (२) रक्षा वि० हेल-मेल, रग्बनेवाला । जल्दी हिल-मिल जानेवाला।। का स्थान । (३) घर । ३०-कवीर हरि की गति का मन जिग्मकी प्रवृत्ति लोगों को मित्र बनाने की हो। यारयाश । में बहुत हुलास । मेवामा भान नहीं होन चहै निज जैसे,---वह बड़ा मेली आदमी है। दाम-कबीर। मल्टिंग कंटल-संक्षा पु0 1 0 ] परेम गलाने की देगधी । मेवासी-संज्ञा पुं० [हिं० मेवासा ] (1) घर में रहनेवाला । घर यह एक ढकनेदार दोहरा बरतन होता है। नीचे के बरतन का मालिक । उ0~मन मेवासी मूड़िये केशहि मुड़े में पानी भरकर उपके अंदर दूसरा धरतन रखकर उसमें काहि । जो कुछ किया सो मन किया केशों किया कछ परेस भर देते हैं और ढककर आंच पर चढ़ा देते हैं। नाहि -कवीर । (२) किले में रहनेवाला । संरक्षित और पानी की भाप में मरेम गल जाता है। गल जाने पर उसे प्रथला । 30-कबिरा मन मेवासी भया दस करि सकै न रोलर मोल्ड में ढाल देते हैं, जिससे वह जम जाता है कोय । सनकादिक रिषि सारखे तिनके गया बिगोय।- और स्याही देने का बेलन तयार होकर निकल आता है। कबीर। (छापास्वाना) मेप-संज्ञा पुं० [सं० } (1) भेड़ । (२) बारह राशियों में से एक मल्हनामा बा [ देश० ] एक प्रकार की नाव जिसका सिक्का जिसके अंतर्गत अश्विनी, भरणी और कृत्तिका नक्षत्र का खड़ा रहता है। प्रथम पाद पड़ता है। इस राशि पर सूर्य वैशाख में -कि० अ० (१) कोश या पीया से बार बार इस करवट मे रहते हैं। राशियों की गणना में इसका नाम सत्र से उस करवट होना । छटपटाना । बेचैन होना । (२) कोई पहले पड़ता है। इसकी आकृति मेष के समान मानी गई काम करने में आनाकानी करके समय बिताना। है। यह राशि सूर्य का उच्च स्थान है। इसमें जब तक सूर्य